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Crew Review: उड़ान भरने के बाद क्रैश हो जाती है करीना कपूर खान, तब्बू और कृति सैनन की क्रू

Crew की कहानी एक दिवालिया होने की कगार पर पहुंच चुकी एयरलाइंस कम्पनी की तीन कर्मचारियों पर केंद्रित है जो सोने की तस्करी में लिप्त हो जाती हैं। करीना कपूर खान (Kareena Kapoor Khan) तब्बू और कृति सेनन ने ये किरदार निभाये हैं। फिल्म का निर्देशन राजेश ए कृष्णन ने किया है। एकता कपूर और रिया कपूर फिल्म की निर्माता हैं। ऑल वुमन फिल्म सिनेमाघरों में रिलीज हो गई है।

By Jagran News Edited By: Manoj Vashisth Updated: Fri, 29 Mar 2024 11:43 AM (IST)
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क्रू सिनेमाघरों में रिलीज हो गई है। फोटो- इंस्टाग्राम
स्मिता श्रीवास्तव, मुंबई। कभी सबसे चर्चित एयरलाइंस में एक रही किंगफिशर के दीवालिया होने के बाद इसका मालिक विजय माल्‍या (Vijay Malya) लेनदारों से बचने के लिए विदेश भाग गया। कंपनी के इस स्थिति में पहुंचने तक कर्मचारियों की तनख्‍वाह में कटौती या वेतन न मिलने की खबरें आ रही थीं।

इसी थीम पर निधि मेहरा और मेहुल सूरी ने ‘क्रू’ (Crew) की कहानी, स्‍क्रीनप्‍ले और संवाद लिखे हैं। फिल्‍म में कोहिनूर एयरलाइंस के मालिक का नाम विजय माल्या की जगह विजय वालिया रखा गया है, जो बार-बार माल्‍या की याद दिलाता है।

दिलचस्‍प बात यह है कि भारत सरकार भले ही विजय माल्‍या का अभी तक प्रत्‍यर्पण नहीं करा पाई, लेकिन निर्माता एकता कपूर की तीन एयर होस्‍टेस वालिया को वापस लाने में कामयाब रहती हैं। उसके साथ हजारों करोड़ों का सोना भी लाती हैं।

क्या है क्रू की कहानी?

कोहिनूर एयरलाइंस में कार्यरत गीता सेठी (तब्‍बू), जैस्मिन (करीना कपूर) और हरियाणा की दिव्‍या राणा (कृति सैनन) के साथ पूछताछ के साथ कहानी आरंभ होती है। उन पर सोने की तस्करी का संदेह है। छह महीने से उन्‍हें तनख्‍वाह नहीं मिली है। गीता कंपनी द्वारा पीएफ मिलने के बाद अपना रेस्‍त्रां खोलने के इंतजार में हैं।

अपने नाना के साथ रह रही जैस्मिन आर्थिक तंगी से परेशान है। दिव्‍या एयर होस्‍टेज है, लेकिन घर में बता रखा है कि पायलट है। इन विमान परिचायिकाओं के हाथ जैकपाट लगता है। विमान में सीनियर अधिकारी राजवंशी (रमाकांत दयामा) को हार्ट अटैक आता है। उसके शरीर पर सोना बंधा मिलता है।

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गीता उसकी सूचना देती है, लेकिन बाद में वे तस्‍करी करने वाले को खोजती हैं और खुद ही चॉकलेट के आकार में सोने की तस्‍करी करने लगती हैं। इस बीच कंपनी दीवालिया होती है। उन्‍हें चेयरमैन विजय वालिया (शाश्‍वत चटर्जी) की असलियत पता चलती है कि वही सोने की तस्करी के पीछे है। बस फिर तीनों भगोड़े वालिया को पकड़ने और सोना वापस लाने विदेश चल देती हैं।

कैसा है स्क्रीनप्ले और संवाद?

निर्देशक राजेश ए कृष्णन इससे पहले लूटकेस का निर्देशन कर चुके हैं। यहां पर क्रू के साथ उनकी उड़ान डगमगा गई है। कई दृश्‍य बचकाने हो गए हैं। कंपनी के ऑफिस में ताला पड़ने के बावजूद तीनों वहीं बैठकर योजना बनाती हैं। तीनों की ड्यूटी हमेशा साथ लगती है। तीनों आसानी से हर काम को अंजाम दे लती हैं।

कस्‍टम अधिकारी जयवीर सिंह (दिलजीत दोसांझ) संवादों में ईमानदार और साहसी दिखाया है, लेकिन फिल्‍म में गलती से नजर नहीं आता। एचआर हेड मनोज मित्तल (राजेश शर्मा) अकेले ही वालिया के सोने को अल बुर्ज भेज रहा है, यह भी हजम नहीं होता।

विदेश में वालिया का पीछा करने से लेकर उसके प्‍लेन को हाइजैक करते हुए तीनों को देखकर लगता है, इन पर हिंदी फिल्‍मों का बहुत प्रभाव है। आईडी से फोटो बदलना, होटल में हाउस किपिंग की नौकरी करना, सफाई कर्मचारी की मदद लेना, फोन पर सेक्‍स चैट जैसे घिसे-पिटे फार्मूले हैं, जो कई हिंदी फिल्‍मों का हिस्‍सा रहे हैं।

वर्तमान में एयरपोर्ट पर इतनी सुरक्षा है, जहां से कैंची भी नहीं ले जा सकते। वहां से यह एयर होस्‍टेस 12 किलो सोने की तस्‍करी करने में आसानी से कामयाब हो जाती हैं। लेखक ने एक दृश्‍य में दीवालिया हुई एयरलाइंस के कर्मचारियों के दर्द को फिल्‍म का हिस्‍सा बनाकर सहानुभूति बटोरने की कोशिश की है।

यह जेट एयरवेज के कर्मचारियों की यादों को ताजा करती है, जब नरेश गोयल दीवालिया घोषित हुए थे। इसी तरह कभी प्‍लेन ना उड़ाने वाली दिव्‍या राणा (कृति सैनन) हरियाणा के ऊबड़-खाबड़ रनवे पर किताब पढ़कर विमान उतारती है। यह स्थितियां हास्‍य पैदा नहीं करती। 

कहां डगमगाई फिल्म?

बहरहाल, कहानी की शुरुआत रोमांचक तरीके से होती है, जैसे विमान का टेकऑफ होता है, लेकिन जैसे ही उड़ान भरने की बारी आती है, यह क्रैश हो जाती है। फिल्‍म में चोली के पीछे गाने का रीमेक है। यह थिरकाता है, लेकिन फिल्‍म की थीम के अनुरूप नहीं लगता है। फिल्‍म में द्विअर्थी संवाद कॉमेडी के लिए इस्‍तेमाल किए गए हैं। यह बीच-बीच में गुदगुदाने का काम करते हैं।

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तब्‍बू, करीना और कृति की तिकड़ी को पर्दे पर एक साथ देखना अच्‍छा लगता है। तीनों काफी स्‍टाइलिश लगी हैं। विजय वालिया के किरदार में शाश्वत चटर्जी की प्रतिभा का भरपूर इस्तेमाल करने में निर्देशक चूक गये। कपिल शर्मा तब्बू के पति की मेहमान भूमिका में हैं, मगर कॉमिक दृश्यों में कुछ जोड़ नहीं पाये।

इसमें दो राय नहीं कि यह कॉसेंप्‍ट अच्‍छा है, लेकिन कॉमेडी के साथ यह घिसे-पिटे फार्मूले में ही बंधकर रह गई। अगर स्‍क्रीनप्‍ले दमदार होता, तो निसंदेह यह अच्‍छी फिल्‍म होती।