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Dahaad Web Series Review: सोशल ड्रामा के साथ जबरदस्त क्राइम थ्रिलर है दहाड़, सोनाक्षी सिन्हा का दमदार डेब्यू

Dahaad Web Series Review दहाड़ का निर्देशन रीमा कागती और रुचिका ओबेरॉय ने किया है। सीरीज राजस्थान के छोटे कस्बे में सेट है जहां फैली कई बुराइयों को रेखांकित करते हुए आगे बढ़ती है। सोनाक्षी के साथ गुलशन देवैया विजय वर्मा और सोहम शाह ने प्रमुख किरदार निभाये हैं।

By Manoj VashisthEdited By: Manoj VashisthUpdated: Fri, 12 May 2023 01:39 AM (IST)
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Dahaad Web Series Review Staring Sonakshi Sinha. Photo- Instagram
नई दिल्ली, जेएनएन। लव जिहाद के सामाजिक और सियासी अस्तित्व और मायनों पर बहस की जा सकती है, पर इससे पूरी तरह ठुकराया नहीं जा सकता। सिनेमाघरों में चल रही फिल्म 'द केरल स्टोरी' लव जिहाद के उस रूप को दिखाती है, जो बेहद डरावना है। 

फिल्म बताती है कि कैसे मासूम लड़कियों को प्रेम जाल में फंसाकर एक समुदाय के युवक उनसे शादी करते हैं और फिर सीरिया, यमन जैसे देशों में जाकर आइएसआइएस का गुलाम बना देते हैं। दहलाने वाली कहानी लोगों को काफी पसंद आ रही है, साथ ही परेशान भी कर रही है। 

प्राइम वीडियो की वेब सीरीज 'दहाड़' के संदर्भ में 'द केरल स्टोरी' का जिक्र करना इसलिए प्रासंगिक है, क्योंकि जब सीरीज की शुरुआत होती है तो तस्वीर ऐसी ही खिंचती है, मानो लव जिहाद जैसी कोई कहानी ओटीटी स्पेस में देखने जा रहे हों, मगर यकीन मानिए, यह बस स्क्रीनप्ले का 'छलावा' है, कहानी कुछ और ही निकलती है।

हां, लव जिहाद की कथित घटनाओं को लेकर भ्रामक सूचनाएं किस तरह किसी निर्दोष की जान जोखिम में डाल सकती हैं, 'दहाड़' इस पर भी रोशनी डालती है। 

लव जिहाद, जातिगत भेदभाव, ऊंचनीच, आर्थिक तंगी और दहेज की मांग के चलते लड़कियों पर शादी का दबाव... जैसे तमाम मुद्दों पर कमेंट करते हुए 'दहाड़' आगे बढ़ती है, लेकिन अपने मकसद से भटकती नहीं है और एपिसोड-दर-एपिसोड एक बेहतरीन इनवेस्टिगेटिव थ्रिलर के रूप में सामने आती है। सामाजिक मुद्दों पर टिप्पणी करने के साथ सीरीज पुलिस तंत्र की अच्छाइयों और बुराइयों पर भी बात करती है।

क्या है 'दहाड़' की कहानी?

'दहाड़' की कथाभूमि राजस्थान का मंडावा कस्बा है, जहां के पुलिस स्टेशन में अंजलि भाटी (सोनाक्षी सिन्हा) सब इंस्पेक्टर है। उसे एक लापता लड़की का पता लगाने का केस सौंपा जाता है। यह केस पैंडोरा बॉक्स साबित होता है।

तफ्तीश जैसे-जैसे आगे बढ़ती है, ऐसे मामलों की झड़ी लग जाती है, जिनमें लड़की पहले लापता होती है और फिर कुछ वक्त बाद उसकी लाश एक सार्वजनिक शौचालय में दुल्हन के लिबास में मिलती है। देखने में मामूली लगने वाला केस एक बड़ा स्कैंडल बन जाता है। मारी गयी लड़कियों की संख्या बढ़ते-बढ़ते 27 हो जाती है। इन लाशों का दायरा झुंझुनू जिले से बाहर निकल जाता है। 

लड़कियों के मरने का पैटर्न अंजलि की इस थ्योरी को सपोर्ट करता है कि कोई सीरियल किलर काम कर रहा है।जांच के क्रम में संदेह की सुई मंडावा के गर्ल्स कॉलेज में साहित्य के टीचर आनंद स्वर्णकार (विजय वर्मा) पर ठहरती है। हालांकि, आनंद को देखकर यह यकीन करना मुश्किल है कि इस सबके पीछे वो है। क्या पुलिस सीरियल किलर को पकड़ पाती है? क्या आनंद पर पुलिस का शक करना बेबुनियाद है? लड़कियों की लाश आखिरकार सार्वजनिक शौचालयों में ही क्यों मिलती थी? इन सब सवालों के जवाब दहाड़ में आगे मिलते हैं।

कैसा है 'दहाड़' का स्क्रीनप्ले?

रीमा कागती और जोया अख्तर ने दहाड़ सीजन एक की इस कहानी को स्क्रीप्ले के जरिए आठ एपिसोड्स में फैलाया है और क्लाइमैक्स अगले सीजन का संकेत देता है। स्क्रीनप्ले के कई दृश्य ऐसे गढ़े गये हैं कि वो कोई ना कोई संदेश देते हैं। कहीं-कहीं तो सिर्फ एक्शन से ही काम चलाया गया है, संवाद की जरूरत ही नहीं पड़ती। 

सीरीज की शुरुआत मंडावा में एक जिम से होती है, जहां अंजलि अपने दोस्त के साथ प्रैक्टिस कर रही है। क्लास पूरी होने के बाद दोनों बाहर की ओर निकलते हैं। लड़का गुरुजी के पैर छूता है, मगर अंजलि नहीं छूती। 

या फिर थाने में बैठा कॉन्सेटबल नीची जाति के किसी शख्स से बात करने के बाद अपने कमरे को शुद्ध करने के लिए अगरबत्ती जलाता है। यह दृश्य जातिगत भेदभाव की समाज में गहरी पैठ को जाहिर करने के लिए काफी है।

या वो दृश्य जब सीरियल किलिंग्स के आरोपी आनंद स्वर्णकार के पिता के घर की तलाशी लेने पुलिस पहुंचती है तो वो अंजलि भाटी को छोड़कर बाकी सभी को अंदर जाने की अनुमति दे देता है, क्योंकि अंजलि पिछड़ी जाति की है। यह दृश्य जाति के अहंकार की पराकाष्ठा दिखाता है, जहां एक सरकारी अफसर की हैसियत सिर्फ इसलिए कुछ नहीं है, क्योंकि वो एक जाति विशेष से ताल्लुक रखती है। 

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पुलिस जब गुमशुदा लड़कियों के घर पहुंचती है तो माता-पिता की प्रतिक्रिया झकझोर देती है। गरीबी, दहेज की मांग और सामाजिक दबाव ने उनकी भावनाओं को इतना ठंडा कर दिया है कि बेटी का भागकर शादी कर लेना उनके लिए वरदान बन गया है। इसीलिए, उनकी खोज-खबर लेने की उन्हें कोई परवाह नहीं। 

खुद अंजलि की मां उसके लिए लड़का ढूंढ रही है और निरंतर शादी के लिए दबाव बना रही है। शादी का यही दबाव आगे चलकर इस कहानी के एक ट्विस्ट से भी जुड़ता है। दहाड़ एक ओर क्राइम ड्रामा की लाइंस पर आगे बढ़ती है तो साथ ही कई सामाजिक विद्रूपताओं का आइना भी बनती है।  

कैसा है 'दहाड़' के कलाकारों का अभिनय?

दहाड़ की कहानी के साथ इसके किरदारों का खाका जिस तरह खींचा गया है, वो भी सीरीज की हाइलाइट है।रीमा और रुचिका ओबेरॉय के निर्देशन में कलाकारों ने सधी हुई परफॉर्मेंस दी है। 

पिछड़ी जाति से होने का दंश, शादी के लिए मां की निरंतर उलाहना, नौकरी की जिम्मेदारियां... इस सबके बीच तीखे तेवरों वाली पुलिस सब इंस्पेक्टर अंजलि भाटी के किरदार में सोनाक्षी सिन्हा जमती हैं। सोनाक्षी का यह वेब सीरीज डेब्यू उनकी पिछली कुछ फिल्मों से कहीं बेहतर है।

थानाध्यक्ष देवी लाल सिंह के किरदार में गुलशन देवैया हैं। ईमानदार, उसूलपसंद और सुलझा हुआ अफसर। सिचुएशन को सम्भालने में सिद्धहस्त है। गुलशन ने इस किरदार के लिए जो संतुलित भाव-भंगिमाएं रखी हैं, उससे यह किरदार विश्वसनीय और बहुत नैचुरल बन गया है। देवी सिंह के किरदार की कुछ निजी समस्याएं भी हैं।

इसी थाने में एक और किरदार है- कैलाश पर्घी, जिसे सोहम शाह ने निभाया है। कैलाश, अंजलि से सीनियर है। मगर, अपनी हरकतों के कारण जलील होता रहता है। दिल का बुरा नहीं है, लेकिन प्रमोशन की उत्कट चाहत में कुछ ऐसे काम कर जाता है, जो कानून और उसूलों के नजरिए से गलत हैं।

पुलिस अफसर होने के बावजूद बच्चियों के लिए हो रहे अपराध उसे मानसिक तौर पर इतना डरा देते हैं कि खुद पिता बनने से कतराने लगता है। सोहम ने इस किरदार की परतों को कामयाबी के साथ पेश किया है। इन तीनों किरदारों के जरिए पुलिस अफसरों की निजी जिंदगी और ऑफिस की उलझनों को भी दिखाया गया है। 

आनंद स्वर्णकार के किरदार में विजय वर्मा की यह परफॉर्मेंस यादगार रहेगी। उन्हें सबसे परतदार किरदार मिला है, जिसमें उन्हें अभिनय के कई रंग दिखाने को मिले हैं। विजय ने इस मौके को भुनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी और बड़ी सहजता के साथ किरदार को जिया है। आनंद जैसा दिखता है, वैसा है नहीं। उसका एक परेशान करने वाला अतीत भी है, जिसका उसके व्यक्तित्व की संरचना और कहानी से गहरा ताल्लुक है। 

विजय की बेवफा पत्नी वंदना के किरदार में जोआ मोरानी ने ठीक काम किया है। जोआ पहली बार इतने वयस्क किरदार में नजर आयी हैं और वंदना के द्वंद्व को पेश करने में वो सफल रही हैं। दहाड़ की सबसे बड़ी खूबी यह भी है कि सबको पता है, कातिल कौन है, मगर इसका रोमांच उस तक पहुंचने की प्रक्रिया से निकलता है। रियल लोकेशंस पर शूट होने की वजह से दहाड़ की कहानी और पृष्ठभूमि ऑथेंटिक नजर आती है।

कलाकार- सोनाक्षी सिन्हा, गुलशन देवैया, सोहम शाह, विजय वर्मा, जोआ मोरानी आदि।

निर्देशक- रीमा कागती, रुचिका ओबेरॉय।

निर्माता- रीमा कागती, जोया अख्तर, फरहान अख्तर, रितेश सिधवानी।

प्लेटफॉर्म- प्राइम वीडियो

अवधि- लगभग 50 मिनट प्रति एपिसोड, 8 एपिसोड्स 

रेटिंग- ***1/2