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Dancing On The Grave Review: जब इंसान के साथ हुआ भरोसे और इंसानियत का कत्ल, इमोशनल भी करता है शो

Dancing On The Grave Review ओटीटी स्पेस में कई ऐसी डॉक्युमेंट्रीज मौजूद हैं जिनमें कत्ल की जघन्य वारदातें दिखायी गयी हैं मगर बेंगलुरु का शाकरी मर्डर केस इसलिए अलग है क्योंकि इसमें सिर्फ एक इंसान का कत्ल नहीं हुआ बल्कि इंसानियत ने भी दम तोड़ा।

By Manoj VashisthEdited By: Manoj VashisthUpdated: Fri, 21 Apr 2023 08:14 PM (IST)
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Dancing On The Grave Review Amazon Prime Video Documentary Series. Photo- Instagram
नई दिल्ली, जेएनएन। नेटफ्लिक्स पर पिछले कुछ वक्त से रियल लाइफ पर आधारित क्राइम स्टोरीज पर बनी डॉक्युमेंट्री सीरीज लाने का सिलसिला जारी है। 'इंडियन प्रिडेटर' शीर्षक के तहत नेटफ्लिक्स ने चार ऐसी डॉक्युमेंट्री सीरीज रिलीज की हैं, जिनमें देश के विभिन्न हिस्सों में घटित अपराध की दहलाने वाली दास्तान दिखायी गयी हैं। 

इसी तर्ज पर अमेजन प्राइम वीडियो अपनी पहली लोकल क्राइम डॉक्युमेंट्री लेकर आया है, जिसका शीर्षक है- 'डांसिंग ऑन द ग्रेव'। इस डॉक्युमेंट्री में नब्बे के शुरुआती सालों में बेंगलुरु में हुई कत्ल की एक सनसनीखेज घटना की पड़ताल की गयी है।

इस केस में जिस तरह से कत्ल हुआ वो तो अपने आप में हिला देने वाली घटना है ही, लेकिन उससे ज्यादा यह भरोसे और इंसानियत की हत्या का मसला लगता है। 

हालांकि, सिक्के का दूसरा पहलू यह है कि पुलिस को जांच के दौरान मिले सारे सबूत जिस शख्स को कातिल बता रहे थे और जेल में सजा काट रहा है, वो खुद को निर्दोष मानता है। डॉक्यु सीरीज केस के इस हिस्से को भी बखूबी दिखाती है। श्रद्धानंद के नजरिए से भी केस को दिखाया गया है।

'डांसिंग ऑन द ग्रेव' 21 अप्रैल को प्राइम वीडियो पर स्ट्रीम कर दी गयी है। डॉक्युमेंट्री में पुराने फोटोग्राफ्स, वीडियो क्लिप्स और संबंधित लोगों की बाइट्स के जरिए कहानी को आगे बढ़ाया गया है।

हाइ प्रोफाइल कत्ल की हैरतअंगेज कहानी

'बेताल' और 'घूल' फेम पैट्रिक ग्राहम निर्देशित इस डॉक्युमेंट्री सीरीज में बेंगलुरु के एक प्रभावशाली परिवार की महिला शाकरे नमाजी के कत्ल की साजिश और इसके हैरतअंगेज खुलासे की कहानी दिखायी गयी है।

47 साल की शाकरे के कत्ल का आरोप उनके दूसरे पति मुरली मनोहर मिश्रा उर्फ श्रद्धानंद पर लगा था। आरोप था कि पति ने शाकरे की सम्पत्ति के लिए उनकी हत्या की और घर में जिंदा दफ्न कर दिया।

Photo- screenshot/youtube trailer

मैसूर के दीवान की पोती शाकरे नमाजी बेहद खूबसूरत थीं और 19 साल की उम्र में उनकी शादी भारतीय विदेश सेवा के अधिकारी अकबर खलीली से हो गयी थी। दोनों के चार बेटियां हुईं। डिप्लोमैट होने के कारण काम के सिलसिले में अकबर अक्सर बाहर रहते थे, जिसका असर शादी पर पड़ने लगा।

मुरली मनोहर मिश्रा उर्फ श्रद्धानंद से शाकरे की मुलाकात 1982 में बेंगलुरु में हुई थी। पति से तलाक लेने के बाद शाकरे ने श्रद्धानंद से शादी कर ली। शाकरे के इस कदम से हर कोई हैरान था। डॉक्युमेंट्री में रिश्तेदारों के जरिए बताया गया है कि शाकरे और श्रद्धानंद के बीच कोई मेल नहीं था। इस शादी से कोई खुश नहीं था। परिवार ने साथ छोड़ दिया। 

डॉक्यु सीरीज दिखाती है कि श्रद्धानंद से शादी के कुछ अर्से बाद परिवार और शाकरे के बीच प्रॉपर्टी को लेकर विवाद शुरू हो गया था। श्रद्धानंद के मुताबिक, इसको लेकर कभी-कभी उनके बीच झगड़े भी होते थे। 

शाकरे1991 में अचानक गायब हो गयीं। बड़ी बेटी सबा उनसे रोज फोन पर बात करती थी। फिर अचानक बात होनी बंद हो गयी। श्रद्धानंद ने भी कोई ठोस जवाब नहीं दिया। पूछने पर टालता रहता था। आखिर 1992 में सबा ने बेंगलुरु के अशोक नगर पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज करवायी थी कि उनकी मां का कई महीनों से कोई अता-पता नहीं है।

1994 में कर्नाटक पुलिस ने शाकरे का कंकाल घर से ही बरामद किया। पुलिस के अनुसार, श्रद्धानंद ने कत्ल करने और दफ्नाने के आरोप को कबूल किया था। 

शाकरे का कत्ल 28 अप्रैल 1991 को हो गया था। मारने से पहले उन्हें नशा दिया गया था। इसके बाद उन्हें गद्दे में लपेटकर ताबूत जैसे बक्से में बंद कर दिया गया था। फिर इस बॉक्स को दफना दिया गया। जब शाकरे का कंकाल बाहर निकाला गया और गद्दा हटाया गया तो क्रूरता के बारे में सोचकर लोगों की रूह कांप गयी। शम्स ताहिर खान बताते हैं कि ताबूत के अंदर नाखूनों के हजारों निशान थे। 

डॉक्युमेंट्री में उस वक्त के विजुअल भी दिखाये गये हैं, जिनमें पुलिस श्रद्धानंद को गिरफ्तार करके उनके घर ले जाती है और वो उस जगह की निशानदेही करते हैं, जहां दफनाया गया था।

इमोशनल करती है डॉक्युमेंट्री

लगभग आधा घंटा अवधि के चार एपिसोड्स में फैली डॉक्युमेंट्री में इस सच्ची घटना को इस तरह दिखाया गया है कि दिलचस्पी बनी रहती है और एक क्राइम शो की तरह यह आगे बढ़ती। फाइल फुटेज और फोटो पर नैरेशन पकड़कर रखता है। इस केस से जुड़े सभी पहलुओं को कवर करने की कोशिश की गयी है।

शाकरे खलीली के परिवार, उस वक्त के पुलिस अधिकारी, पब्लिक प्रोसीक्यूटर, जज, शाकरे के कर्मचारी, घटना को कवर करने वाले पत्रकार और बचाव पक्ष के वकील के इंटरव्यूज हैं। इनमें शाकरे की मां और बेटी सबा की भी बाइट्स हैं, मगर सबसे बड़ी हाइलाइट खुद श्रद्धानंद का इंटरव्यू है, जो जेल में लिया गया है। 

अब उम्रदराज हो चुके श्रद्धानंद से केस के बारे में सुनना एक अलग ही रोमांच देता है। उनका अपना वर्जन इस इंटरव्यू में दिखाया गया है। वो पत्नी के साथ अपने संबंधों, आरोपों और शादी के बाद आयीं दिक्कत और चुनौतियों के बारे में बताते हैं। 

नये-पुराने दृश्यों के बीच नाटकीय रूपांतरण के जरिए निरंतरता बनायी गयी है। शाकरे का ऑडियो भी डॉक्युमेंट्री सीरीज में सुनाया गया है। यह सब देखकर, सुनकर जहन में सवाल भी उठता है, आखिर क्यों एक शानदार जिंदगी को इस तरह जाना पड़ा?

आखिरी एपिसोड में कर्नाटक हाई कोर्ट के पूर्व जज इस केस को Rarest Of Rare बताते हैं। वहीं, डिफेंस के वकील कहते हैं कि इस केस में रेयर जैसा कुछ नहीं है, क्योंकि ऐसा कोई सबूत नहीं पेश किया गया था, जो यह बताये कि यह इंसान आदतन अपराधी है और जैसे ही बाहर आएगा, फिर एक अपराध करेगा।

इस केस को लड़ने वाले वकीलों की दलीलें बांधकर रखती हैं। दोनों पक्ष मजबूत तर्क पेश करते हैं।  इनके इंटरव्यूज सुनकर लगता है, जैसे अदालत में जिरह देख रहे हों। 

निर्देशक- पैट्रिक ग्राहम

अवधि- आधा घंटा अवधि के चार एपिसोड्स।

रेटिंग- ***