Dukaan Review: आउटडेटेड है सरोगेसी पर बनी ये 'दुकान', मोनिका पंवार के अभिनय ने साधी कमजोर फिल्म
सरोगेसी के विषय पर आई कृति सैनन की फिल्म मिमी सफल रही थी। फिल्म में कृति ने सरोगेट मदर का रोल निभाया है। कुछ यही किरदार दुकान में मोनिका पंवार ने प्ले किया है। हालांकि कहानी के विस्तार में काफी अंतर है। दुकान सरोगेसी के व्यावसायिकरण को रेखांकित करती है और इसके अच्छे-बुरे परिणामों को कहानी में साथ लेकर चलती है। पढ़ें पूरा रिव्यू।
स्मिता श्रीवास्तव, मुंबई। सरोगेसी यानी किराए की कोख। इस विषय पर आई कृति सैनन अभिनीत फिल्म मिमी भी एक लड़की की कहानी थी, जो पैसों की खातिर मां बनती है। हालात के चलते वह अपने बच्चे को खुद पालने का निर्णय लेती है। अब लेखक जोड़ी सिद्धार्थ और गरिमा ने भी इसी विषय को उठाया है।
बतौर निर्देशक यह उनकी पहली फिल्म है। वह इसके लेखक और निर्माता भी हैं। उनकी यह ‘दुकान’ सरोगसी की है। माता-पिता बनने के सुख से वंचित लोगों के लिए उम्मीदों की दुकान है। सरोगेट मां को इसके बदले ढाई से तीन लाख रुपये मिलते हैं। साथ ही उनकी सुख-सुविधा का पूरा ध्यान रखा जाता था। इतना पैसा शायद ही इन औरतों के पति कमा सकें।
क्या है दुकान की कहानी?
सरोगसी के जरिए मां बनने जा रही ऐसे ही कई महिलाओं की बातचीत से फिल्म शुरू होती है। दीया (मोनाली ठाकुर) और उसका पति अरमान (सोहम मजूमदार) पुलिस में जैस्मीन (मोनिका पंवार) के खिलाफ शिकायत दर्ज कराते हैं, जो सरोगेसी से उन्हें बच्चा देने वाली होती है।यह भी पढ़ें: Movies In Cinemas: चुनावी सरगर्मी के बीच 'मैदान' में 'बड़े मियां छोटे मियां', साउथ और हॉलीवुड भी ठोक रहे ताल
इस गांव में सरोगेसी क्लीनिक सरेआम चल रहे हैं, पर पुलिकर्मी की अनभिज्ञता पहले ही सीन में चौंकाती है। वहां से जैस्मीन की जिंदगी की परतें खुलनी शुरू होती हैं। पिता के अपनी बेटियों के साथ संबंध अच्छे नहीं होते। छुरी जैसी जुबान और दिल में समाज कल्याण रखने वाली 17 साल की जैस्मीन अपने से दोगुने आदमी सुमेर (सिकंदर खेर) से शादी करती है, जिसकी पहले से एक बेटी है। जैस्मीन बच्चा नहीं चाहती।
अनिच्छा के बावजूद मां बनती है। अचानक से आए भूकंप में उसकी जिंदगी बदल जाती है। पति का निधन हो जाता है। बेटी की शादी के लिए जैस्मीन सरोगेट मां बनना तय करती है, ताकि दहेज के पैसों का इंतजाम कर सके। उसके बाद दीया के आग्रह पर वह सरोगेट मां बनती हैं।बच्चों से प्यार ना करने वाली जैस्मीन को इस बच्चे से प्यार हो जाता है। वह भाग जाती है। चार साल बाद जैस्मीन को पुलिस पकड़ने में कामयाब रहती है। जेल से वापसी के बाद वह बेटे की वापसी को लेकर लड़ाई लड़ती है।