Move to Jagran APP

Dunki Review: बजते-बजते रह गया शाह रुख खान की 'डंकी' का डंका, राजकुमार हिरानी की सबसे कमजोर फिल्म

Dunki Movie Review शाह रुख खान की फिल्म डंकी सिनेमाघरों में रिलीज हो गयी है। राजकुमार हिरानी के निर्देशन में उन्होंने पहली बार काम किया है। हिरानी एक खास तरह का सिनेमा बनाने के लिए जाने जाते हैं जो भावनाओं के उतार-चढ़ाव के साथ सामाजिक संदेश भी देता है। मुन्नाभाई एमबीबीएस पीके और 3 ईडियट्स ऐसी ही फिल्में हैं। अब वो डंकी लेकर आये हैं।

By Jagran News Edited By: Manoj Vashisth Updated: Thu, 21 Dec 2023 02:05 PM (IST)
Hero Image
डंकी रिलीज हो गई है। फोटो- इंस्टाग्राम
स्मिता श्रीवास्तव, मुंबई। Dunki Movie Review: डॉन्की, जिसे आम बोलचाल में 'डंकी मारना' कहा जाता है, उसका अर्थ है- किसी देश में अवैध तरीके से प्रवेश लेना। अवैध तरीके से देश में प्रवेश पाने के लिए जिस रास्ते का इस्तेमाल किया जाता है, उसे डॉन्की रूट कहा जाता है।

दुनिया में ऐसे कई देश हैं, जहां डंकी रूट मशहूर हैं। डंकी रूट उन लोगों द्वारा अपनाया जाता है, जिन्‍हें उस देश का वीजा नहीं मिलता है। भारतीय सिनेमा को मुन्‍ना भाई एमबीबीएस, लगे रहो मुन्‍ना भाई, थ्री इडियट्स, पीके जैसी मनोरंजक, सार्थक और संदेशपरक फिल्‍में देने वाले राजकुमार हिरानी ने अब इसी विषय पर अपनी फिल्‍म डंकी बनाई है।

बेहतर जीवन की तलाश और ज्‍यादा पैसा कमाने की चाहत की वजह से कई लोग डंकी रूट अपनाते हैं। फिल्‍म का विषय संवेदनशील और अहम है, लेकिन पटकथा में कसाव ना होने की वजह से लड़खड़ा गई है।

क्या है डंकी की कहानी?

कहानी का आरंभ लंदन में उम्रराज मनु (तापसी पन्‍नू) के अस्‍पताल से भागने से होता है। वह वकील पटेल (देवेन भोजानी) से भारत का वीजा ना मिलने की स्थिति में हार्डी (शाह रुख खान) का नंबर निकालने को कहती है। कहानी पंजाब आती है।

यह भी पढ़ें: Shah Rukh Khan की Dunki देखकर निकला फैन क्यों हुआ निराश? राजकुमार हिरानी के निर्देशन पर बोल दी ऐसी बात

25 साल बाद अपने प्रेमी हार्डी को फोन करके दुबई आने के कहती है। मनु अपने दो दोस्‍तों बुग्‍गू लखनपाल (विक्रम कोचर) और बल्‍ली (अनिल ग्रोवर) से भी लंदन से दुबई साथ चलने को कहती है। वहां से उनके अतीत की परतें खुलनी आरंभ होती हैं। फौज में पदस्‍थ हार्डी पंजाब के लोल्‍टू में किसी का सामान लौटाने आया होता है।

उसकी मुलाकात मनु से होती है, जो घर की खस्‍ता आर्थिक हालत की वजह से इंग्‍लैंड जाना चाहती है। बल्‍ली और बुग्‍गू की भी पारिवारिक दिक्‍कतें हैं। हार्डी उन्‍हें आइईएलटी (IELT) परीक्षा में शामिल होने को कहता है, ताकि छात्र वीजा पर वे इंग्‍लैंड जा सकें, पर सबका अंग्रेजी में हाथ तंग होता है।

वे अंग्रेजी की क्‍लास ज्वाइन करते हैं, जहां पर सुखी (विक्‍की कौशल) लंदन जाने के लिए बेचैन है। घटनाक्रम मोड़ लेते हैं और सुखी आत्‍मदाह कर लेता है। उसकी मौत हार्डी को झकझोर देती है। वह मनु और बाकी दोस्‍तों को डंकी रूट से लंदन ले जाने में जुट जाता है। 

स्क्रीनप्ले में कहां चूकी फिल्म?

फि‍ल्‍म के आखिर में बताया गया है कि हर साल दस लाख लोग डंकी मारते हैं। हालांकि, राजकुमार हिरानी, कनिका ढिल्‍लों और अभिजात जोशी द्वारा लिखी यह कहानी उस मुद्दे की गहराई में उतर नहीं पाती है। शुरुआत में किरदारों को स्‍थापित करने में लेखकों ने काफी समय ले लिया है।

मध्‍यातंर के बाद जब सब डंकी मारते हैं तो उन्‍हें किन दुश्‍वारियों का सामना करना पड़ता है, यह कहानी उसे सतही तौर पर छूती है। फिल्‍म में कुछ भावनात्‍मक दृश्‍य हैं, लेकिन वह भावुक नहीं करते। करीब पांच साल पहले आई फिल्‍म लव सोनिया में मानव तस्‍करी के मुद्दे को बहुत गहराई से दर्शाया गया था।

फिल्‍म में मनु का किरदार एक जगह कहता है- यह जमीन अंग्रेजों ने अपनी फैक्‍ट्री में बनाई है, रब की जमीन है, हमारी जमीन भी उतनी है, जितनी उनकी... यह तो अशिक्षा को दर्शाता है। कल्‍पना करें, अगर वीजा प्रणाली ना हो तो दुनिया में किस प्रकार की अराजकता होगी।

यह भी पढ़ें: Dunki Twitter Review- दर्शकों को आया मजा या हुए बोर? डंकी पर जनता ने सुना दिया अपना फैसला

एक दृश्‍य में हार्डी कहता है- मेरा देश जैसा है, मेरा है। मैं यहा रहने के लिए अपने देश को गाली नहीं दूंगा। फौजी होने के बावजूद वह यह बात कैसे कह सकता है। उसे तो कहना चाहिए था, मुझे अपने देश पर गर्व है। भले ही शरण न मिले देश को बुरा नहीं कहूंगा।

25 साल के अंतराल में उनकी जिंदगी कैसी रही, उसका कोई जिक्र कहानी में नहीं है। सुखी अपनी शादीशुदा प्रेमिका को लंदन से लाना चाहता है, पर लड़की का पिता उससे बात क्‍यों नहीं करता, उसकी वजह स्‍पष्‍ट नहीं है। जब चारों लंदन पहुंचते हैं तो एक कमरे में करीब 25 लोगों के एक साथ रहने का दृश्‍य झकझोरता नहीं है।

अपनी असल स्थिति को घर से छुपाने को लेकर बल्‍ली का संवाद स्‍वजनों की आकांक्षाओं को भी दर्शाता है। यह हृदयविदारक दृश्‍य था, पर उतना प्रभावी नहीं बन पाया। एक कमी यह भी रही कि इनमें कोई भी गांव से निकलकर शहर नहीं आया, जहां वह कोई हाथपांव मारता। फिल्‍म में गरीबों को वीजा ना मिलने की बात अतार्किक लगती है।

कैसा है कलाकारों का अभिनय?

कलाकारों की बात करें तो मनु और हार्डी की प्रेम कहानी उबर नहीं पाई है। इस प्रेम कहानी को लेकर शाह रुख और तापसी की केमिस्‍ट्री रंग नहीं जमा पाई। मेकअप से झुर्रियां उकेरने के बावजूद तापसी कहीं से उम्रदराज नहीं लगतीं, ना ही उनकी चाल ढाल या हावभाव में कोई बदलाव नजर आता है।

युवावस्‍था के दौरान शाह रुख काफी जवान लगते हैं। सुखी के रूप में विक्‍की कौशल का अभिनय उम्‍दा और शानदार है। वह याद रह जाते हैं। सहयोगी भूमिका में आए विक्रम कोचर और अनिल ग्रोवर ने अपनी अदाकारी से किरदार को खास बनाया है।

यह भी पढ़ें: Dunki Box Office- 10 सालों में Christmas पर आईं 14 फिल्में, 4 रहीं फ्लॉप, शाह रुख की 'डंकी' पर टिकीं निगाहें?

फिल्‍म में बीच-बीच हल्‍के फुल्‍के क्षण हैं जो चेहरे पर मुस्‍कान लाते हैं। फिल्‍म को बनाने के पीछे राजकुमार हिरानी की मंशा अच्‍छी है, लेकिन फिल्‍म तार्किक नहीं बन पाई है। ये उनकी सबसे कमजोर फिल्म है। डंकी का डंका इस बार बजते बजते रह गया है।