फिल्म रिव्यू: दबंग जूली की प्रेम कहानी 'मिर्जा जूलिएट'
नई अभिनेत्रियों मे पिया बाजपेयी में ताजगी है। वह किसी की नकल करती नहीं दिखती। दर्शन कुमार उनका साथ देने में कहीं-कहीं पिछड़ जाते हैं।
By मनोज वशिष्ठEdited By: Updated: Thu, 06 Apr 2017 02:33 PM (IST)
-अजय ब्रह्मात्मज
कलाकार: दर्शन कुमार, पिया बाजपेयी, चंदन रॉय सान्याल, प्रियांशु चटर्जी, स्वानंद किरकिरे आदि।निर्देशक: राजेश राम सिंह
निर्माता: ग्रीन एपल मीडिया, फलांश मीडिया, शेमारू एंटरटेनमेंटस्टार: *** (तीन स्टार)
जूली शुक्ला उर्फ जूलिएट की इस प्रेम कहानी का हीरो रोमियो नहीं, मिर्जा है। रोमियो-जूलिएट की तरह मिर्जा-साहिबा की प्रेम कहानी भी मशहूर रही है। हाल ही में आई ‘मिर्जिया’ में उस प्रेम कहानी की झलक मिली थी। ‘मिर्जा जूलिएट’ में जूलिएट में थोड़ी सी साहिबा भी है। राजेश राम सिंह निर्देशित ‘मिर्जा जूलिएट’ एक साथ कई कहानियां कहने की कोशिश करती है। जूली शुक्ला उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर में रहती है। दबंग भाइयों धर्मराज, नकुल और सहदेव की इकलौती बहन जूली मस्त और बिंदास मिजाज की लड़की है। भाइयों की दबंगई उसमें भी है। वह बेफिक्र झूमती रहती है और खुलेआम पंगे लेती है। लड़की होने का उसे भरपूर एहसास है। खुद के प्रति भाइयों के प्रेम को भी वह समझती है।उसकी शादी इलाहाबाद के दबंग नेता पांडे के परिवार में तय हो गई है। उसके होने वाले पति राजन पांडे कामुक स्वभाव के हैं। वे ही उसे जूलिएट पुकारते हैं। फोन पर किस और सेक्स की बातें करते हैं, जिन पर जूलिएट ज्यादा गौर नहीं करती। अपने बिंदास जीवन में लव, सेक्स और रोमांस से वह अपरिचित सी है। मिर्जा के लौटने के बाद उसकी जिंदगी और शरीर में हलचल शुरू होती है। मिर्जा का ममहर मिर्जापुर में है। बचपन की घटनाओं की वजह से उसे मामा के परिवार का सहारा लेना पड़ता है। गुस्से में अबोध मिर्जा से अपराध हो जाता है। उसे बाल सुधार गृह भेज दिया जाता है। वहां के संरक्षक उसके जीवन की दिशा तय कर देते हैं।
बड़े होने पर वह सामान्य जिंदगी जीने की गरज से अपराध की दुनिया छोड़ कर मिर्जापुर लौटता है। वहां उसकी मुलाकात बचपन की दोस्त जूलिएट से होती है और फिर वह उसका रोमियो बन जाता है। मिर्जा और जूलिएट के रोमांस में दुविधाएं हैं। जूलिएट इस प्रेम संबंध में भी लापरवाह रहती है। उसे तो बाद में एहसास होता है कि वह मिर्जा से ही मोहब्बत करती है। इस मोहब्बत में अड़चन हैं राजन पांडे और उसके तीनों भाई। कहानी इस पेंच तक आने के बाद उलझ जाती है। लेखक और निर्देशक कभी रोमांस तो कभी राजनीति की गलियों में मिर्जा और जूलिएट के साथ भटकने लगते हैं। बाकी किरदारों को स्पेस देने के चक्क्र में फिल्म का प्रवाह शिथिल और बाधित होता है। अदाकारी के लिहाज से पिया बाजपेयी ने जूलिएट के किरदार को बखूबी पर्दे पर पेश किया है।नई अभिनेत्रियों मे पिया बाजपेयी में ताजगी है। वह किसी की नकल करती नहीं दिखती। अभिनय के निजी मुहावरे और ग्रामर से वह जूलिएट को साधती हैं। दर्शन कुमार उनका साथ देने में कहीं-कहीं पिछड़ जाते हैं। उनके किरदार के गठन की कमजोरी से उनका अभिनय प्रभावित होता है। उद्दाम प्रेमी के रूप में वे निखर नहीं पाते। राजन पांडे के रूप में चंदन राय सान्याल की हाइपर अदाकारी शुरू में आकर्षित करती है, लेकिन बाद में वही दोहराव लगने लगती है। हां, स्वानंद किरकिरे ने किरदार की भाषा, लहजा और अंदाज पर मेहनत की है। वे याद रह जाते हैं। प्रियांशु चटर्जी कुछ ही दृश्यों में जमते हैं।‘मिर्जा जूलिएट’ में इलाकाई माहौल अच्छी तरह से आया है। निर्देशक और उनकी टीम ने परिवेश पर ध्यान दिया है। हमें कुछ नए देसी किरदार भी इस फिल्म में मिले हैं। उनकी रिश्तेदारी और उनकी भाषा कहीं-कहीं खटकती है। इस फिल्म में भी ‘स्त्री की ना’ है। न जाने क्यों लेखक-निर्देशक उस ना पर नहीं टिके हैं।अवधि:125 मिनट