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Gadar 2 Review: बाइस साल बाद फिर मचा गदर, तारा सिंह के किरदार में सनी देओल की जोरदार वापसी

Gadar 2 Review गदर 2001 में रिलीज हुई थी। इस फिल्म के समय नौजवान पीढ़ी उम्र के चौथे दशक में होगी जिसके लिए गदर 2 यादों का खजाना लेकर आयी है। हालांकि गदर की रिलीज के समय जन्म लेने वाली पीढ़ी को सीक्वल लाउड लग सकता है लेकिन फिल्म के जज्बात अपनी जगह ठीक हैं और सनी की अदाकारी ने उसे विश्वसनीय बनाया है।

By Manoj VashisthEdited By: Manoj VashisthUpdated: Fri, 11 Aug 2023 04:44 PM (IST)
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गदर 2 में सनी देओल ने तारा सिंह का रोल निभाया है। फोटो- ट्विटर
प्रियंका सिंह, मुंबई। 22 साल बाद गदर: एक प्रेम कथा की कहानी आगे बढ़ी गदर 2 में। साल 2001 में रिलीज हुई 'गदर- एक प्रेम कहानी' को आगे बढ़ाने के लिए अनिल शर्मा ने किसी नई कहानी और किरदारों को नहीं चुना। उन्होंने तारा सिंह, सकीना और जीते के साथ कहानी को आगे बढ़ाया है।

क्या है 'गदर 2' की कहानी?

कहानी शुरू होती है कि गदर- एक प्रेम कथा के फ्लैश बैक दृश्यों से, जिसमें साल 1954 में तारा सिंह (सनी देओल) अपने बीवी सकीना और बेटे जीते को पाकिस्तान से वापस हिंदुस्तान ले आता है। देश विभाजन में अपना परिवार खो चुका पाकिस्तानी सेना का जनरल हमीद इकबाल (मनीष वाधवा) हिंदुस्तानियों से नफरत करता है।

वह तारा से भी बदला लेना चाहता है, जिसने पाकिस्तानी सेना के 40 जवानों को मार गिराया था। वहां से कहानी 17 साल आगे बढ़ती है और साल 1971 में आती है। तारा सिंह परिवार के साथ खुशहाल जीवन व्‍यतीत कर रहा है। जीते का पढ़ाई में मन नहीं लगता, वह बंबई (मुंबई) जाकर अभिनय करना चाहता है।

तारा उसे हॉस्टल भेजना चाहता है, ताकि वह पढ़-लिखकर अफसर बने। इस बीच भारत-पाकिस्तान के बीच युद्ध शुरू होता है। भारतीय सेना तारा की मदद लेती है, जो अपने साथ कई ट्रक लेकर युद्ध क्षेत्र में जवानों को गोला-बारूद पहुंचाने के लिए जाता है। हमीद, तारा को पहचान लेता है, वह उसे बंधक बनाना चाहता है।

जीते को लगता है कि उसके पिता पाकिस्तान की कैद में हैं, इसलिए वह उन्हें ढूंढने पाकिस्तान चला जाता है, लेकिन तारा पाकिस्तान में है ही नहीं। क्या होगा, जब तारा लौटेगा और बेटे को बचाने के लिए पाकिस्तान पहुंचेगा?

कैसा है फिल्म का स्क्रीनप्ले, संवाद और अभिनय?

तारा और सकीना 22 साल बाद पर्दे पर वही कैमिस्ट्री ले आते हैं। हालांकि, इस बार फिल्म उन दोनों की प्रेम कहानी पर नहीं है, ऐसे में दोनों के साथ में सीन बहुत कम हैं। फिल्म के निर्देशक अनिल शर्मा की तारीफ करनी होगी कि उन्होंने गदर की सफलता को गदर 2 में भुनाने का प्रयास नहीं किया है।

वह उस पाकिस्तान के उस गली-मोहल्ले में गए जरूर गए हैं, जहां तारा गया था, लेकिन कोई भी आइकॉनिक सीन रीपीट करने की गलती उन्होंने नहीं की है। उदाहरण के तौर पर उन्होंने तारा के हैंडपाइप उखाड़ने वाले सीन को बड़ी ही चतुराई से दिखाया है, जहां तारा उसे उखाड़ता नहीं है, बल्कि देखता है और पाकिस्तानियों को 22 साल पहले वाले तारा की याद आ जाती है, जिसने हैंडपाइप उखाड़कर पाकिस्तान में गदर मजा दिया था।

इस बार अनिल ने सनी से बिजली का खंभा और बैलगाड़ी का चक्का उखड़वाया है, जो सीटियां और तालियां बटोरता है। लेखक शक्तिमान तलवार लिखित इस फिल्म की अवधि अखरती है, जिसे लगभग बीस मिनट कम किया जा सकता था।

जीते और मुस्कान (सिमरत कौर) के प्रेम-प्रसंग वाले दृश्यों और क्लाइमैक्स में ड्रामा कम करके अवधि को छोटा करने की गुंजाइश थी। गदर की ही तरह इस फिल्म में मुख्य किरदार तेज आवाज में अपने संवाद बोलते दिखेंगे, जो उनके लिए सामान्य है, जिन्होंने पहली गदर देखी है।

हालांकि, इतना चिल्लाकर बात करना नई पीढ़ी को अटपटा लग सकता है। विजुअल इफेक्ट्स के जमाने में भी अनिल ने असली विस्फोट फिल्म में किए हैं, जो युद्ध को वास्तविक दिखाता है।

  • अगर हर पाकिस्तानी ने हिंदुस्तान मुर्दाबाद का नारा भी लगाया ना तो उनकी आवाज हमारे बॉर्डर तक भी नहीं पहुंचेगी और अगर हर हिंदुस्तानी ने जिंदाबाद का नारा लगाया तो उसकी आवाज की गूंज तुम सबको फाड़ देगी...
  • अगर यहां (पाकिस्तान) के लोगों को दोबारा मौका मिलेगा हिंदुस्तान में बसने का तो आधा से ज्यादा पाकिस्तान खाली हो जाएगा...
  • तुम्हारा ये सियासीपन तुम्हें भिखारी बना देगा, कटोरा लेके घूमोगे भीख भी नहीं मिलेगी...
शक्तिमान के कई ऐसे कई दमदार डायलॉग्स हैं, जो अपने देश के लिए सम्मान और बढ़ा देते हैं। तारा सिंह के रोल में सनी देओल को देखकर कहीं से भी नहीं लगा कि 22 साल बाद वह इस किरदार में लौटे हैं। वह जब भी पर्दे पर आते हैं, छा जाते हैं। जब पर्दे पर नहीं होते, तो उनके आने का इंतजार रहता है।

अमीषा पटेल थोड़ी सी ड्रामैटिक लगी हैं, लेकिन तारा के साथ जब भी फ्रेम में होती हैं, अच्छी लगती हैं। मनीष वाधवा अपने अभिनय का अनुभव इस फिल्म में दिखाते हैं। जीते की भूमिका में उत्कर्ष से बेहतर कास्टिंग नहीं हो सकती थी।

बचपन के जीते को उत्कर्ष दोबारा पर्दे पर उसी सच्चाई से निभाते हैं। सिमरत कौर छोटी सी भूमिका में याद रह जाती हैं। 'गदर- एक प्रेम कथा' में तारा के दोस्त गुल खान का रोल निभा चुके मुश्ताक खान को और स्क्रीनस्पेस देने की जरूरत थी।

दिवंगत अभिनेता अमरीश पुरी और दर्मियां सिंह का किरदार निभाने वाले विवेक शौक की कमी फिल्म में खलती है।

  • उड़ जा काले कावां...
  • मैं निकला गड्डी लेकर...
गाने जहां पुराने दौर को ताजा करते हैं तो वहीं दिल झूम झूम... और चल तेरे इश्क में... गाना कर्णप्रिय है।