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Ghoomer Review: क्रिकेट पर बनी सबसे अलग फिल्म, अभिषेक-संयमी ने सिखाया जिंदगी का फलसफा

Ghoomer Movie Review क्रिकेट की पृष्ठभूमि पर कई फिल्में बनीं मगर ज्यादातर क्रिकेट के उस पक्ष का दिखाती हैं जिसे ग्लैमरस माना जता है। मगर आर बाल्की निर्देशित घूमर क्रिकेट के उस पहलू को दिखाती है जब खिलाड़ी अपनी फिजिकल कमी की वजह से खेलने में अक्षम हो जाता है और कैसे वो पावसी के लिएळ संघर्ष करता है। अभिषेक बच्चन कोच और संयमी शिष्या बनी हैं।

By Manoj VashisthEdited By: Manoj VashisthUpdated: Thu, 17 Aug 2023 05:31 PM (IST)
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अभिषेक बच्चन और संयमी खेर की फिल्म क्रिकेट पर है। फोटो- एक्स
स्मिता श्रीवास्तव, मुंबई। कई बार कुछ अप्रत्‍याशित घटनाएं जीवन का रुख मोड़ देती हैं। इनसे दो तरह से निपटा जा सकता है, या तो आप उस घटना का शोक मनाकर खुद को कोसते रहें और निराशा के गर्त में जीते रहें। या फिर उन चुनौतियों से जूझते हुए अपने जीवन का मार्ग प्रशस्त करें।

आर बाल्की निर्देशित फिल्‍म घूमर ऐसी ही प्रेरणादायक कहानी है, जो जीवन से निराश न होने और चुनौतियों का सामना करते हुए आगे बढ़ने का संदेश देती है।

क्या है घूमर की कहानी?

फिल्‍म की कहानी अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में पदार्पण करने जा रही अनीना दीक्षित (संयमी खेर) की है। उसकी दादी (शबाना आजमी) और पिता (शिवेंद्र सिंह डूंगरपुर) उसके क्रिकेटर बनने के सपने को बढ़ावा देते हैं। उसका प्रेमी जीत (अंगद बेदी) भी उसके इस सफर का हमसफर है।

हालांकि, भारतीय टीम के लिए मैच खेलने से पूर्व ही एक दुघर्टना में उसका दाहिना हाथ कट जाता है। जिंदगी से निराश और हताश अनीना की जीवन जीने की इच्‍छा ही खत्‍म हो जाती है। उसकी जिंदगी में पूर्व क्रिकेटर पैडी उर्फ पदम सिंह सोणी (अभिषेक बच्‍चन) उम्‍मीद लेकर आता है।

अपने कड़वे अतीत की वजह से शराबी पैडी कुंठाग्रस्‍त है। वह अनीना को एक हाथ से क्रिकेट खेलने के लिए प्रशिक्षित करता है। कठिन ट्रेनिंग के बावजूद कड़ी मेहनत, क्रिकेट के प्रति जुनून और भारतीय टीम का हिस्‍सा बनने की चाहत किस प्रकार अनीना के सपने को साकार करती है, फिल्‍म इस संबंध में है।

कैसा है फिल्म का स्क्रीनप्ले, संवाद और अभिनय?

हिंदी सिनेमा में क्रिकेट आधारित बायोपिक फिल्‍मों की बात करें तो काफी हद तक खिलाड़ियों के फर्श से अर्श पर आने पर केंद्रित रही हैं। उसमें टीम के भीतर की राजनीति, चयन प्रक्रिया और खिलाड़ी के वित्तीय संघर्ष जैसे पहलुओं का समावेश होता हैं।

आर बाल्‍की संबंधों की ही कहानियां कहते हैं, लेकिन किसी अनछुए पहलू को उजागर करते हैं। ‘घूमर’ घिसी पिटी लीग से इतर क्रिकेट आधारित मार्मिक और प्रेरक कहानी है। यह अनीना के निजी जीवन संघर्ष पर केंद्रित है। बाहरी दुनिया की राजनीति और चुनौतियों में यह फिल्‍म बिल्‍कुल नहीं जाती।

सही मायने में आर बाल्‍की ने ‘घूमर’ में एक खिलाड़ी की हताशा और दोबारा मौका देने को एक नए आयाम के साथ प्रस्‍तुत किया है। उन्‍होंने सरस तरीके से दोनों किरदारों (पैडी और अनीना) की सोच, हताशा व समझ को कहानी में गूंथा है। आर बाल्‍की की फिल्‍मों में लिंग भेद, उम्र से संबंधित भूमिकाओं, अंधविश्वासों और रूढ़ियों को भी सहजता से खारिज कर दिया जाता है।

शबाना आजमी अनीना की क्रिकेट विशेषज्ञ दादी की भूमिका में हैं। उनका क्रिकेट प्रेमी किरदार पुरानी रूढियों को धता बताता है कि महिलाएं क्रिकेट खेल के नियम, कानून और उनके खानपान को लेकर अनभिज्ञ हैं। क्रिकेट की पिच पर महिला क्रिकेटरों को पिछले कुछ अर्से से बढ़ावा मिलने लगा है, लेकिन क्रिकेट विशेषज्ञ के तौर पर महिलाओं को शायद ही देखा गया हो।

शबाना का किरदार ऐसी ही महिला क्रिकेट प्रेमियों का प्रतिनिधित्व करता है, जो महिला क्रिकेट विशेषज्ञ बनने की दक्षता रखती हैं। वहीं क्रिकेट टीम में दोबारा मौका न मिलने की पीड़ा, अपनी ग्‍लानि और सख्‍त कोच पैडी की भूमिका में अभिषेक बच्‍चन का अभिनय प्रशंसनीय है।

हताश खिलाड़ी की मनोदशा के चित्रण के लिए उन्‍हें कई चुटकीले, भावनात्मक और तार्किंक संवाद मिले हैं। वह अपने किरदार में विश्‍वसनीय लगे हैं। एक हाथ गंवाने के बाद भारत के लिए खेलने की भूख को क्रिकेटर से अभिनेत्री बनीं संयमी ने बहुत संजीदगी से जीया है।

बिना हाथ गेंदबाजी करने की कल्‍पना मात्र से ही रोंगटे खड़े हो जाते हैं। ऐसे में संयमी का एक हाथ से पिच बनाने लेकर गेंदबाजी सीखने के कौशल को पर्दे पर दर्शाना प्रशंसनीय है। किरदार को लेकर की गई उनकी कड़ी मेहनत पर्दे पर साफ झलकती है।

वहीं, पैडी की घरेलू सहायिका रसिका (इवांका दास) के हिस्‍से में कई दिलचस्‍प सीन आए हैं। उनके माध्यम से हम पैडी के जीवन के कई अनछुए पहलुओं से परिचित होते हैं। अनीना के प्रेमी जीत के किरदार में अंगद बेदी हैं। कम संवाद के बावजूद उनकी संवेदनाएं उभर कर आई हैं।

इस फिल्‍म में उनके पिता और पूर्व भारतीय क्रिकेटर बिशन सिंह बेदी भी मेहमान भूमिका में हैं। लीजेंड्री क्रिकेटर को पर्दे पर देखना अच्‍छा लगता है। अपनी फिल्‍मों के लिए हिंदी सिनेमा के महानायक अमिताभ बच्‍चन को खुद के लिए लकी चार्म मानने वाले फिल्‍म में क्रिकेट कमेंटेटर की मेहमान भूमिका में प्रभावित करते हैं।

उनका अंदाज लुभावना है। हालांकि, बेटे अभिषेक के साथ उनका कोई भी सीन नहीं हैं। खेल आधारित फिल्‍मों का अंत पूर्वानुमानित होता है। कहानी में कसाव और रोमांच हो तो दर्शक उससे बंधे रह पाते हैं। फिल्‍म का क्‍लाइमैक्‍स रोमांचक है। हालांकि, उसमें काफी सिनेमाई लिबर्टी ली गई है।

एक हाथ गंवाने वाली खिलाड़ी को टीम में शामिल करने के पीछे तर्क है कि पूर्व भारतीय कप्‍तान मंसूर अली खान पटौदी ने एक आंख से कम दिखने के बाद भी दुनिया भर में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया। क्‍या वाकई भारतीय क्रिकेट टीम एक हाथ से गेंदबाजी करने वाले प्रतिभाशाली क्रिकेटर को मौका देगी? अगर इन सवालों को छोड़ दिया जाए तो घूमर सपनों को कभी न मरने देने की कहानी है।

अवधि: 2 घंटा 15 मिनट 

रेटिंग: तीन स्टार