Goodbye Review: अमिताभ बच्चन ने बर्थडे से पहले फैंस को दिया तोहफा, आपको इमोशनल कर देगी 'गुडबाय' की कहानी
Goodbye Review अमिताभ 11 अक्टूबर को 80 साल के हो रहे हैं बर्थडे से पहले उन्होंने गुडबाय में अपनी दमदार एक्टिंग से साबित कर दिया कि वो सदी महानायक क्यों हैं। यहां पढ़ें फिल्म गुडबाय का पूरा रिव्यू।
By Ruchi VajpayeeEdited By: Updated: Fri, 07 Oct 2022 09:20 PM (IST)
प्रियंका सिंह, मुंबई। जीवन का अंतिम सत्य मृत्यु है। जन्मदिन पर क्या करना है, इसके बारे में तो खूब योजनाएं बनाई जाती हैं। लेकिन इस दुनिया को कैसे अलविदा कहना है, इसकी योजना भला कौन बनाता है। इसी के आसपास निर्देशक और लेखक विकास बहल ने फिल्म गुडबाय की कहानी रची है। मुंबई में रह रही वकील तारा (रश्मिका मंदाना) अपना पहला केस जीतने की खुशी में पार्टी कर रही होती है। मां का कॉल आता है, लेकिन वह काट देती है। अगले दिन पता चलता है कि चंडीगढ़ में रह रही उसकी मां गायत्री भल्ला (नीना गुप्ता) का निधन हो गया है।
रीति-रिवाजों आस्था हैं या विज्ञान
उसके पिता हरीश भल्ला (अमिताभ बच्चन) उससे नाराज हैं। जब वह घर पहुंचती है, तो वहां गायत्री के शव के नाक में रूई डालकर, पैरों के अंगूठों को आपस में बांधकर लिटाया गया है। तारा को यह सब रीति-रिवाज पसंद नहीं आते हैं। वह पिता से कहती है कि इसमें कोई लॉजिक नहीं है। पिता कहता है कि यह रीति-रिवाज हजारों साल से चले आ रहे हैं। गायत्री के तीन और बेटे हैं। बड़ा बेटा करण (पावेल गुलाटी) अपनी पत्नी डेजी (एली अवराम) के साथ अमेरिका से लौटता है। गोद लिया बेटा अंगद (साहिल मेहता) दुबई से आता है। तीसरा बेटा नकुल (अभिषेक खान) पर्वतारोही है, वह सारी रस्में खत्म होने पर पहुंचता है। क्या इन रीति-रिवाजों में कोई लॉजिक है या फिर यह विज्ञान है, जिसे आस्था से जोड़ा जा रहा है।
इंटरवल में भटक जाती है फिल्म
निर्देशक विकास ने अपने इंटरव्यू में बताया था कि उन्हें इस फिल्म को बनाने का आइडिया अपने दोस्त से मिला था। जिसके पिता ने उससे कहा था कि मेरे जाने के बाद सारे रीति-रिवाज एक दिन में ही खत्म कर देना, क्योंकि मैं श्रीकृष्ण के साथ वक्त बिता रहा होऊंगा और तुम इन रीति-रिवाजों से मुझे परेशान करोगे। मृत्यु और अंतिम संस्कार पर कॉमेडी ड्रामा बनाना आसान नहीं होता है। विकास की कोशिश अच्छी है, लेकिन अंत तक वह यह समझा नहीं पाते हैं कि क्या रीति-रिवाज में वह कोई लॉजिक ढूंढना चाह रहे हैं या वह भी इसे विज्ञान मानते हैं। मध्यांतर के बाद फिल्म विषय से भटकती है।
कई जगह इमोशनल करती है गुडबाय
एक बिंदू पर लगता है कि अब फिल्म को खत्म हो जाना चाहिए, लेकिन उसके बाद तीसरे बेटे की एंट्री होने की वजह से फिल्म और लंबी हो जाती है। कुछ तस्वीरों के जरिए युवा हरीश के गायत्री को प्रपोज करने वाले सीन दिखाए गए हैं। उसमें युवा अमिताभ की तस्वीरों को देखना दिलचस्प है। गायत्री की मौत के बाद उनके बच्चों का अपनी मम्मी के नंबर पर मैसेज करने के बारे में सोचना, हरीश का पत्नी की मौत के तुरंत बाद बैठकर अंतिम संस्कार के सामानों की लिस्ट बनाना, अस्थियां बहाने से पहले पत्नी की अस्थियों से बात करना कि इन रस्मों में वक्त ही नहीं मिला बात करने का, घर के डॉग का मालकिन के लिए उदास होना, यह दृश्य भावुक करते हैं।रश्मिका मंदाना ने किया बॉलीवुड डेब्यू
अंतिम संस्कार में शामिल होने आई गायत्री की दोस्तों का उसकी याद में वाट्सअप ग्रुप के नाम पर चर्चा करना हो, चाय की कप उठाते हुए पीपी का कहना कि चूल्हा नहीं जल सकता है, लेकिन चाय ठीक है या किसी पारिवारिक मित्र या सदस्य का बिना बुलाए आगे बढ़कर सारी रस्में समझाने का ठेका ले लेना, वास्तविकता के करीब ले जाता है।अमिताभ बच्चन अपनी अदायगी से एक बार फिर फिल्म को अपने नाम कर लेते हैं। नीना गुप्ता की पर्दे पर मौजूदगी चेहरे पर मुस्कान ले आती है। रश्मिका मंदाना की यह हिंदी डेब्यू फिल्म है। उनका हर चीज के पीछे लॉजिक ढूंढने का कारण समझ नहीं आता है।हालांकि उन्होंने स्क्रिप्ट के दायरे में अच्छा काम किया है।