Guns And Gulaabs Review: राज एंड डीके की सीरीज की जान हैं इसके किरदार, आदर्श गौरव ने मारी बाजी
Guns And Gulaabs Review राज एंड डीके निर्देशित सीरीज में राजकुमार राव दुलकर सलमान आदर्श गौलव गुलशन देवैया और टीजे भानु मुख्य भूमिकाओं में हैं। यह क्राइम कॉमेडी सीरीज है जो नब्बे के दौर में दिखायी गयी है। राज एंड डीके इससे पहले द फैमिली मैन और फर्जी सीरीज लेकर आये थे। इस सीरीज में फैमिली मैन दुलकर सलमान बने हैं।
By Manoj VashisthEdited By: Manoj VashisthUpdated: Fri, 18 Aug 2023 09:30 PM (IST)
नई दिल्ली, जेएनएन। 'द फैमिली मैन' और 'फर्जी' के बाद राज एंड डीके की जोड़ी तीसरी वेब सीरीज 'गंस एंड गुलाब्स' के साथ हाजिर है। यह सीरीज नेटफ्लिक्स पर रिलीज हुई है। पहली दोनों वेब सीरीज प्राइम वीडियो पर आयी थीं। 'गंस एंड गुलाब्स' से राज एंड डीके का नेटफ्लिक्स पर खाता खुला है।
राज एंड डीके की फिल्मोग्राफी को फॉलो करने वाले उनके कहानी कहने और दिखाने के अंदाज से वाकिफ होंगे। परिस्थितियां चाहे जो हों, राज निदीमोरु और कृष्णा डीके के दृश्यों में ह्यूमर की परत निरंतर चलती है। अगर कहानी 'गंस एंड गुलाब्स' जैसी हो, तब तो दृश्यों को मजेदार बनाने का भरपूर स्कोप रहता है। राज एंड डीके ने इस सीरीज में मौके का खूब फायदा उठाया है। किरदारों के गढ़ने से लेकर उनके स्क्रीन पर प्रस्तुतिकरण तक ह्यूमर बना रहता है। हालांकि, इस क्रम में सीरीज में कुछ जगहों पर ठहराव महसूस होता है। गंस एंड गुलाब्स एक क्राइम कॉमेडी ड्रामा सीरीज है, जो बेहतरीन स्टार कास्ट से सजी है, मगर टुकड़ों में प्रभावित करती है।
क्या है सीरीज की कहानी?
कहानी 90 के दौर में एक काल्पनिक कस्बे गुलाबगंज दिखायी गयी है, जहां जुर्म की दुनिया को अफीम के अवैध कारोबार से खाद पानी मिलता है। इस कारोबार के एक छोर पर भाई साहब यानी गांची (सतीश कौशिक) है, जबकि दूसरे छोर पर नबीद (नीलेश दिवेकर) है, जो कभी गांची का ही गुर्गा हुआ करता था, मगर गांची का बेटा छोटा गांची (आदर्श गौरव) पैदा होने के बाद उसने भाई साहब से बगावत करके पड़ोसी कस्बे शेरपुर में अपनी अलग सत्ता बना ली।फिलहाल गांची का सबसे बड़ा दुश्मन नबीद ही है। गांची का खत्म करने के लिए नबीद ने बॉम्बे से कॉन्ट्रैक्ट किलर चार कट आत्माराम (गुलशन देवैया) बुलाया है। आत्माराम इसकी शुरुआत गांची के राइट हैंड बाबू टाइगर से करता है। बाबू का बेटा टीपू (राजकुमार राव) अपने पिता को पसंद नहीं करता और उसके दिल में बाप के लिए बिल्कुल फीलिंग्स नहीं हैं।वो बाइक-स्कूटर का मिस्त्री है और उसका सपना गुलाबगंज में टीपू टाइगर के रूप में नहीं, टीपू मोटर के तौर पर मशहूर होना है। उसकी जिंदगी अपनी दुकान से शुरू होकर स्थानीय स्कूल में अंग्रेजी की टीचर चंद्रलेखा (टीजे भानु) पर खत्म होती है, जिसे वो बेपनाह एकतरफा मोहब्बत करता है।
भाई साहब को कोलकाता के सुकांतो से अफीम का बहुत बड़ा ऑर्डर और एक महीने का वक्त मिलता है, मगर घर पर हुए एक हादसे में वो जख्मी हो जाता है और कोमा में चला जाता है। अब इस ऑर्डर को पूरा करने की जिम्मेदारी छोटा गांची उठाता है, क्योंकि उसे पिता की नजरों में खुद को काबिल साबित करना है। उसका सबसे बड़ा दर्द यही है कि सीनियर गांची उसे किसी लायक नहीं समझता।ऑर्डर को पूरा करने के रास्ते में सबसे बड़ी बाधा नारकोटिक्स ब्यूरो का अधिकारी अर्जुन वर्मा (दुलकर सलमान) है, जो हाल ही में दिल्ली से गुलाबगंज पहुंचा है। अर्जुन दिल्ली में डीसीपी के पद पर था, मगर 60 करोड़ के एक राजनीतिक भ्रष्टाचार की लपेट में आने की वजह से गुलाबगंज पहुंच गया। अर्जुन ईमानदार है और अपनी पत्नी मधु (पूजा गोर) और बेटी ज्योत्सना (सुहानी सेठी) से बहुत प्यार करता है।
अर्जुन का भी एक सीक्रेट है- उसका प्रेम प्रसंग (श्रेया धन्वंतरि- कैमियो)। अर्जुन की जांच की वजह से दिल्ली की जेल में बंद आइएएस अफसर प्रताप (वरुण बडोला- कैमियो) उसे बर्बाद करना चाहता है। इसके लिए वो अर्जुन के प्रेम प्रसंग को उसकी पत्नी तक पहुंचाने की धमकी देता है।
कोई रास्ता ना देख अर्जुन उससे बहुत बड़ी रकम देने की डील करता है।प्रताप की मांग पूरी करने के लिए अर्जुन के पास अब बस एक ही तरीका है। गुलाबगंज और शेरपुर की सारी वैध-अवैध अफीम की डिलीवरी सुकांतो को देकर मिली रकम से प्रताप को देकर अपना पीछा छुड़ाये।क्या अर्जुन इस योजना में सफल हो पाता हैं? क्या छोटा गांची अफीम की खेप सुकांतो को देकर डील पूरी कर पाता है? क्या नबीद गांची को बर्बाद कर पाता है? अफीम के अवैध कारोबार में टीपू कहां फिट होता है और क्या लेखा जी उसका प्यार कबूल करती हैं? इन्हीं सवालों में गुलाबगंज की पूरी कहानी और रोमांच छिपा है।
कैसे हैं स्क्रीनप्ले और संवाद?
इस कहानी को निर्देशक-क्रिएटर राज एंड डीके और लेखक सुमन कुमार ने लगभग एक-एक घंटे के सात एपिसोड्स (चैप्टर्स) में फैलाया है। पहले एपिसोड 'हर इंसान में शैतान है' की शुरुआत टीपू के पिता बाबू टाइगर की हत्या के दृश्यों से होती है, जहां चार कट आत्माराम के किरदार का इंट्रोडक्शन होता है।इसके बाद एक-एक करके टीपू, भाई साहब, छोटा गांची, चंद्रलेखा, टीपू के दोस्त और अर्जुन वर्मा के किरदार कहानी में जुड़ते जाते हैं। पहले एपिसोड में पूरी सीरीज का खाका खिंच जाता है कि गुलाबगंज में दर्शक क्या देखने वाला है। दूसरे से छठे एपिसोड में इन सभी किरदारों के ट्रैक्स अलग-अलग चलते हैं, साथ में यह कहानी की जरूरत के हिसाब से एक-दूसरे टकराते भी रहते हैं। कहानी जैसे-जैसे आगे बढ़ती है। नब्बे के दौर का गुलाबगंज और इसके अतरंगी किरदार दर्शक को अपनी ओर खींचने लगते हैं, मगर एपिसोड्स लम्बे होने की वजह से कुछ जगहों पर कहानी खिंची हुई लगती है।सभी कलाकारों को दाद देनी होगी कि स्क्रीनप्ले या स्टोरी की शिथिलता को उन्होंने अपने अभिनय से साध लिया है। दृश्य ऊबाऊ लगता है, मगर किरदार दर्शक को उठने नहीं देते। दूसरे एपिसोड में सतीश कौशिक के जाने के बाद सीरीज थोड़ा लड़खड़ाती है, पर उसे छोटा गांची, नबीद और अर्जुन के ट्रैक ने रोमांचक बनाये रखा है। इस बीच टीपू के 'पाना टीपू' बनने का ट्विस्ट सीरीज को दिलचस्प बनाने में मदद करता है। स्कूली बच्चों का ट्रैक अलग चलता है, मगर चंद्रलेखा और अर्जुन की बेटी ज्योत्सना के जरिए यह मुख्य कथानक से जुड़ता भी है। टीपू, चंद्रलेखा और छात्र गंगाराम का लव ट्रायंगल चेहरे पर मुस्कान ला देता है।नब्बे की छाप...
गंस एंड गुलाब्स का रोमांच आखिरी एपिसोड रात बाकी में चरम पर पहुंचता है। सातवें और आठवें चैप्टर को मिलाकर एसिपोड सात बनाया गया है। यह एक घंटा 21 मिनट का सबसे लम्बा एपिसोड है और कई चौंकाने वाले मोड़ इसमें आते हैं। आखिरी एपिसोड का स्क्रीनप्ले भी नॉन-लीनियर फॉर्मेट में है। दृश्य ट्विस्ट के हिसाब से कुछ मिनट या घंटे के लिए अतीत में जाते रहते हैं, जिसके चलते एपिसोड की अवधि परेशान नहीं करती। स्क्रीनप्ले में दृश्यों को इस तरह गढ़ा गया है कि नब्बे की छाप हर कहीं नजर आती है। अर्जुन का कैसेट से गाने सुनना। झंकार बीट्स से बोर होने के बाद जमाने को दिखाना है फिल्म की कैसेट शहर से मंगाना। लव लेटर लिखने के लिए नन्नू का अंग्रेजी गानों को टेपरिकॉर्डर पर बजाना। कैम्पा कोला, बालों का स्टाइल, हल्की सर्दी के मौसम में पहने जाने वाले स्वेटर, जैकेट, ढीली जींस के अंदर टी-शर्ट दबाना... नब्बे के दशक को स्थापित करने में साज-सज्जा विभाग ने सराहनीय काम किया है। संवादों में उस दौर का एहसास बना रहता है। गंस एंड गुलाब्स, स्कूली बच्चों के किरदारों के जरिए 90s में दसवीं-बारहवीं कक्षा में पढ़ रही पीढ़ी के साथ उस दौर में जवान हो चुकी जनरेशन की यादों को कुरेदती है।कैसा है कलाकारों का अभिनय?
गंस एंड गुलाब्स का सबसे बड़ा आकर्षण किरदारों का चित्रण और कैरक्टर ग्राफ है। हर प्रमुख किरदार को गढ़ने में उसके चारित्रिक गुणों के हिसाब से जो आकार दिया गया है, वो पकड़कर रखता है। सीनियर गांची के रोल में दिवंगत सतीश कौशिक का किरदार अंत तक रहता है, मगर सक्रिय दो एपिसोड्स में ही है। सतीश का किरदार गंस एंड गुलाब्स की पृष्ठभूमि को कामयाबी के साथ सेट करता है। टीपू का किरदार राजकुमार बेहद सहजता के साथ निभाया है। पिता की मौत से ज्यादा दोस्त की हत्या का बदला लेने के लिए बेकरार पाना टीपू जिस तरह लेखा जी के प्रेम में डूबा है, उसे राव ने बेहतरीन ढंग से प्रदर्शित किया है। हालांकि, कुछ ऐसी किरदार उन्होंने अनुराग बसु की फिल्म लूडो में निभाया था, जो मिथुन चक्रवर्ती से ऑब्सेस्ड रहता है, अंग्रेजी टीचर चंद्रलेखा के किरदार में टीजे भानु प्रभावित करती है। दुलकर सलमान का यह हिंदी वेब सीरीज की दुनिया में डेब्यू है। सीरीज में उनका किरदार अर्जुन वर्मा बेहद अहम है। इस किरदार के सीक्रेट्स, लाइफ की उलझनें ट्विस्ट्स के लिए जिम्मेदार है। दुलकर ने अर्जुन के किरदार को शिद्दत से जीया है। जिस एक्टर ने सबसे अधिक प्रभावित किया, वो आदर्श गौरव हैं। आदर्श ने जुगनू यानी छोटा गांची का रोल निभाया है। बाप की तारीफ के लिए तड़पते बेटे का यह किरदार कुछ हद तक मिर्जापुर के मुन्ना भइया की तर्ज पर लगता है, मगर आदर्श ने इसे मुन्ना की नकल नहीं बनने दिया। हालांकि, क्लाइमैक्स में इस किरदार का ट्विस्ट गैरजरूरी लगता है, मगर सम्भवत: दूसरे सीजन का सिरा है।गंस एंड गुलाब्स का सबसे दिलचस्प और अपनी मौजूदगी से रोमांच जगाने वाला किरदार आत्माराम ही है, जिसे दहाड़ पुलिस अफसर गुलशन देवैया ने निभाया है। इस किरदार के साथ जुड़े कल्ट की बातें मजेदार लगती हैं कि उसे सात जिंदगियों को वरदान मिला हुआ है।नब्बे के संजू बाबा से प्रेरित हेयरस्टाइल आत्माराम की धार को और पैना करता है। सीरीज का डार्क ह्यूमर सबसे ज्यादा इसी किरदार की देन है और गुलशन ने चार कट आत्माराम को जैसे ओढ़ लिया है। इस किरदार को एक्सप्लोर करने की काफी संभावना है। बैकग्राउंड स्कोर, संपादन और सिनेमैटोग्राफी ने दृश्यों की रोचकता बढ़ाने में मदद की है। अवधि- लगभग एक घंटे के सात एपिसोड्स रेटिंग- तीन स्टार
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