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I Want To Talk Review: पत्नी से तलाक, बेटी नाराज, बीमारी का शिकार, अभिषेक की खामोशी करती है ढेर सारी बातें

अभिषेक बच्चन को हिंदी सिनेमा में काम करते हुए दो दशक से ज्यादा का समय हो चुका है। जैसे-जैसे जूनियर बच्चन अपने करियर में आगे बढ़ रहे हैं वैसे-वैसे वह खुद के लिए चुनौती से भरे किरदार चुन रहे हैं। घूमर के बाद अभिषेक अपनी फिल्म आई वॉन्ट टू टॉक के साथ ऑडियंस के बीच आ चुके हैं। क्या मूवी के साथ आपको बिताना चाहिए अपना वीकेंड पढ़ें रिव्यू

By Smita Srivastava Edited By: Tanya Arora Updated: Fri, 22 Nov 2024 01:58 PM (IST)
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आई वॉन्ट टू टॉक रिव्यू/ फोटो- Jagran Graphics
स्मिता श्रीवास्तव, मुंबई। हमारे जीवन में कदम-कदम पर संघर्ष है, इसलिए सफलता उसी को मिलती है जो परिस्थितियों से डरता नहीं, बल्कि उसका डटकर सामना करता है। यह सिर्फ कागजी बातें नहीं है। फिल्मकार शूजित सरकार के दोस्‍त अर्जुन सेन ने वास्तविक जीवन में इसे साबित किया है।

अर्जुन को गले में कैंसर के बाद तमाम स्‍वास्‍थ्‍य संबंधी दिक्‍कतों से जूझना पड़ा। उसके बावजूद उन्‍होंने अपनी जिंदगी की जंग लड़ी। अर्जुन ने अपने जीवन के इन खट्टे मीठे अनुभवों को 'रेजिंग ए फादर नामक' किताब में व्‍यक्‍त किया है। इसी किताब पर शूजित ने फिल्‍म 'आइ वांट टू टॉक' फिल्‍म बनाई है। यह किताब मुख्‍य रुप से पिताओं को अपने बच्चों की जरूरतों को समझने और उनके साथ मजबूत संबंध बनाने पर है।

बीमारी और बेटी से सवालों से जूझते पिता की अद्भुत कहानी

कहानी अमेरिका में रह रहे हैं अप्रवासी भारतीय अर्जुन सेन (अभिषेक बच्‍चन) की है। मार्केटिंग की नौकरी करने वाला अर्जुन शब्‍दों से ही खेलता है। उसे पसंद नहीं कि कोई उसे मैनिपुलेटिव (Manipulative) यानी जोड़ तोड़ करने वाला बुलाए। पत्‍नी से उसका तलाक हो चुका है। उसकी करीब आठ साल की बेटी रेया (पर्ल डे) है। अचानक से उसे पता चलता है कि वह एक ऐसी स्वास्थ्य समस्या से ग्रस्त हो जाता है जो उसके जीवन के लिए खतरा बन सकती है। यही नहीं इससे उसकी बोलने की क्षमता भी प्रभावित हो सकती है।

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वह निराशा के गर्त में डूब जाता है। डाक्‍टरों के मुताबिक उसकी जिंदगी के महज सौ दिन बचे हैं। इस कड़वी हकीकत, अनगिनत अस्पताल के चक्कर के साथ अर्जुन और उसकी बेटी रेया के रिश्ते की भी एक तरह से परीक्षा होती है। एक दिन उसकी बेटी उससे कहती है कि अगर आप मुझे जानते हैं तो बताइए कि मेरी सबसे अच्छी दोस्त कौन है? मेरा पसंदीदा रेस्‍त्रां कौन सा है? जब हम साथ में होते हैं तो क्‍या करना पसंद है?

Photo Credit- Instagram 
तीनों के सही जवाब दे पाने में अर्जुन नाकाम होता है। फिर वह एक पेपर लेकर आती है जिसमें कई गोलाकार बने होते हैं उसमे अर्जुन सबसे आखिर में होता है। बातचीत के परिणामों ने उन्हें अपनी बेटी के साथ दोस्ती करने और एक अधिक विचारशील, बेहतर अभिभावक बनने की यात्रा पर अग्रसर करता है। इस दौरान अर्जुन की अलग-अलग तरह की बीस सर्जरी होती है।

पिता की मनोदशा को सहजता से शूजित सरकार ने पर्दे पर उतारा 

अक्‍टूबर, सरदार उधम फिल्‍म के बाद शूजित सरकार ने एक बार फिर मर्मस्पर्शी विषय को छुआ है। फिल्‍म धीमी गति से बढ़ती है इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता, लेकिन पिता पुत्री के संबंधों के साथ मेडिकल दिक्‍कतों को दर्शाते हुए यह उसे मार्मिक बनाती है। तमाम स्‍वास्‍थ्‍य समस्‍याओं से जूझ रहे अर्जुन की अंदरुनी भावनाओं, तकलीफों और मनोदशा को शूजित खामोशियों के साथ सहजता से व्‍यक्‍त करते हैं।

अच्‍छी बात यह है कि अस्‍पताल और बीमारी के बीच झूल रहे अर्जुन के साथ यह फिल्म अपने दृष्टिकोण में आशावादी और सहज बनी रहती है। घर चलाने से लेकर अस्पताल के चक्‍कर काटना, उनके मोटे बिल, तमाम तरह की सर्जरी के साथ अर्जुन की कहानी सरलता से कही गई है। शूजित ने इस जटिल विषय के साथ हृयूमर को भी जोड़ा है।

डॉ. देब (जयंत कृपलानी) के साथ अर्जुन की बातचीत जहां तनावपूर्ण माहौल में राहत लाती है वहीं जीवन की सच्‍चाई को दर्शाती है। अर्जुन का यह सफर कई बार झकझोरता है लेकिन वह खामोशी से आपको प्रेरणा भी दे जाती है। फिल्‍म में एक दृश्‍य है जब अर्जुन को भावनात्‍मक सहयोग देने के लिए उसका भाई अमेरिका आता है। डॉक्‍टर से अर्जुन की सर्जरी के बारे में सुनकर उसे चक्‍कर आने लगता है जबकि अर्जुन विचलित नहीं होता। इसी तरह झील के किनारे पिता पुत्री का आपस में संवाद करना किसी थेरेपी की तरह लगता है। कुछ खामियों की बात करें तो फिल्‍म में अंग्रेजी में संवाद काफी है। अर्जुन की पत्‍नी का पक्ष भी फिल्‍म में नहीं दिखाया गया है। वह थोड़ा अखरता है।

Photo Credit- Instagram 

अभिषेक बच्चन घूंटकर पी गए अर्जुन का किरदार 

अभिषेक बच्‍चन के किरदार में कई परते हैं। स्‍वास्‍थ्‍य संबंधी दिक्‍कतों के चलते उनके पात्र पर शारीरिक रुप से उसका असर पड़ता है। इस प्रक्रिया में कभी पेट निकलता है तो कभी चेहरे का आकार बदलता है। अभिषेक ने इस शारीरिक कायातंरण से लेकर उनके बोलने की क्षमता पर पड़ने वाले प्रभावों को लेकर हर दृश्‍य पर बारीकी से काम किया है।

बाल कलाकार पर्ल और अहिल्‍या बामरो का अभिनय काबिलेतारीफ है। बैकग्राउंड में बजता गाना माना मुसाफिर मैं दिल के भावों को व्‍यक्‍त करते हैं। सही मायनों में अर्जुन की यह असाधारण कहानी बताती है कि हालातों से लड़ने की ठान ली जाए तो उसे हराना मुश्किल नहीं।

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