In Car Movie Review: पुरुषों की दकियानूसी सोच और महिलाओं पर होने वाले अपराधों का झकझोरने वाला चित्रण
In Car Movie Review समाज में महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों की जड़ें बहुत गहरी हैं और यह वहां तक पहुंचती हैं जहां पितृसत्तात्मक समाज में पुरुषों की रुढ़िवादी सोच महिलाओं को उपभोग की वस्तु भर समझती है। फिल्म इसी सोच का झकझोरने वाला चित्रण करती है।
By Manoj VashisthEdited By: Manoj VashisthUpdated: Fri, 03 Mar 2023 12:02 PM (IST)
स्मिता श्रीवास्तव, मुंबई। महिलाओं के साथ होने वाले अन्याय पर हिंदी सिनेमा में अनेक फिल्में बनी हैं, जिनमें उन पर होने वाले अत्याचार, प्रताड़ना, रूढ़िवादी सोच और पितृसत्तात्मक समाज जैसे मुद्दों को उठाया जाता रहा है। अब 'इन कार' यानी 'कार के अंदर' आधुनिक समाज में व्याप्त पुरूषों की उसी रूढ़िवादी सोच और मानसिकता को दर्शाया गया है।
क्या है इन कार की कहानी?
जेल से छूटा रिची (मनीष झंझोलिया) अपने बड़े भाई यश (संदीप गोयत) साथ देवी मां के मंदिर से दर्शन करके निकलता है। उनके साथ उसका मामा (सुनील सोनी) भी है। अपनी गाड़ी खराब होने के बाद बंदूक की नोंक पर मामा (सुनील सोनी) एक गाड़ी को रोकता है। रास्ते में उनकी जिंदगानी से परिचित होते हैं।
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रिची ने अपनी बड़ी बहन के ब्वायफ्रेंड को चाकू घोंपा होता है। लड़का अस्पताल में भर्ती है और उसकी हालत गंभीर है। मामा रिची को किसी पुरानी फैक्ट्री में ठहराने जा रहा है। इस दौरान दिनदहाड़े वे बस स्टाप से साक्षी (रितिका सिंह) का अपहरण कर लेते हैं। साक्षी छोड़ने के लिए मिन्नतें करती है, पर वे लोग पसीजते नहीं। क्या वह उनके चंगुल से निकल पाएगी? कहानी का मूल बिंदू यही है।
कैसी है इन कार?
बतौर निर्देशक हर्ष वर्द्धन की यह पहली फिल्म है। साक्षी के अपहरण के बाद रिची, यश और मामा की आपसी बातचीत एक सभ्य लड़की के लिए किसी सजा से कम नहीं। वे दृश्य रोंगटे खड़े करने वाले हैं। रास्ते में यश और रिची के बीच आपसी झड़प, मामा का झल्लाना, शहरी लड़कियों के प्रति मनगढ़ंत और दकियानूसी सोच, लड़की के रंग पर टिप्पणी जैसे प्रसंगों से रूढ़िवादी समाज की झलक मिलती है।
इसमें ऑनर किलिंग के मुद्दे को भी छूने का प्रयास हुआ है। यह तीनों पात्र पितृसत्तात्मक समाज के वे लोग हैं, जो मंदिरों में देवी की पूजा करते हैं, लेकिन असल जिंदगी में महिलाओं को सिर्फ उपभोग की चीज समझते हैं। वे कई बार कहते हैं, हमें कौन-सा शादी करनी है। महिलाओं के खिलाफ होने वाले अत्याचार की एक सबसे बड़ी वजह यह रूढ़िवादी मानसिकता ही है। बच्चों को बचपन से ही महिलाओं का सम्मान करना नहीं सिखाया जाता।
यश के किरदार में ठहराव नजर नहीं आता है। कभी लगता है कि उसे साक्षी से सहानुभूति है, अगले ही पल उसकी घिनौनी सोच सामने आ जाती है। मध्यांतर से पहले रिची, यश और मामा की आपसी बातचीत और आचार-विचार देखकर नफरत होती है। हालांकि, परीक्षा के लिए निकली साक्षी जब वहां नहीं पहुंचती तो न उसके घर से कोई फोन आता है न ही उसके दोस्तों का।
ड्राइवर पूर्व कांस्टेबिल होने के बावजूद कोई तिकड़म करने की कोशिश नहीं करता। चाकू से मारे गए लड़के के मरने की खबर के बाद रिची की जमानत रद होने का कोई जिक्र नहीं आता। यहां तक कि जब बस स्टॉप से साक्षी को अगवा किया जाता है तो बगल में खड़ी महिला कांस्टेबल से लेकर कोई वहां मौजूद कोई भी शख्स उफ तक क्यों नहीं करता? इन पहलुओं के जवाब कहानी में नहीं मिलते।
कलाकारों में मनीष ने बेहतरीन काम किया है। बिगड़ैल बेटे से लेकर नशेड़ी के पात्र में वह अपनी अदायगी से नफरत बटोरने में सफल होते हैं। लेखन स्तर पर रितिका सिंह के पात्र पर ज्यादा काम करने की जरूरत थी। अचानक से वहशी लोगों के हाथों में फंसी साक्षी के दर्द और छटपटाहट से थोड़ी देर सहानुभूति होती है।फिर भी उसकी संवेदनाओं को आप पूरी तरह महसूस नहीं करते, लेकिन क्लाइमैक्स झकझोरने वाला है। यश के किरदार में संदीप गोयत जंचते हैं। वह इससे पहले शिक्षा मंडल वेब सीरीज में नजर आ चुके हैं। ड्राइवर की भूमिका में ज्ञान प्रकाश का अभिनय सराहनीय है। ज्यादातर हिस्सा कार में होने के बावजूद मिथुन गंगोपाध्याय की सिनेमेटोग्राफी लुभाती है।
एक दृश्य में रिची कहता है कि कोई उसकी बहन के साथ दुर्व्यवहार नहीं कर सकता। फिर दूसरों की बहन की इज्जत के साथ खिलवाड़ क्यों? यह सोचें तो शायद महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों में कमी आए।प्रमुख कलाकार: रितिका सिंह, मनीष झंझोलिया (Manish Jhanjholia), संदीप गोयत, सुनील सोनी, ज्ञान प्रकाशनिर्देशक: हर्ष वर्द्धनअवधि: 106 मिनट
स्टार: तीनयह भी पढ़ें: Mandalorian Season 3 Review- ज्यादा रोमांच के साथ लौटा मैंडलोरियन का तीसरा सीजन, नये सफर पर निकला डिन