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Indian Police Force Review: अपने चक्रव्यूह में फंसे रोहित शेट्टी, धमाकों की आवाज में सीरीज हुई धड़ाम

Indian Police Force Series Review इंडियन पुलिस फोर्स प्राइम वीडियो पर रिलीज हो गई है। सात एपिसोड्स की इस सीरीज को रोहित ने क्रिएट किया है। सिद्धार्थ मल्होत्रा विवेक ओबेरॉय और शिल्पा शेट्टी मुख्य भूमिकाओं में हैं। सीरीज की कहानी देश के अलग-अलग शहरों में हो रहे धमाकों और घटनाओं को अंजाम देने वाले आतंकियों को पकड़ने पर आधारित है।

By Manoj Vashisth Edited By: Manoj Vashisth Updated: Fri, 19 Jan 2024 02:39 PM (IST)
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इंडियन पुलिस फोर्स प्राइम वीडियो पर रिलीज हो गई है। फोटो- इंस्टाग्राम
एंटरटेनमेंट डेस्क, नई दिल्ली। Indian Police Force Web Series Review: मुंबई पुलिस के साथ सिंघम, सिम्बा और सूर्यवंशी फिल्मों के जरिए कॉप यूनिवर्स की शुरुआत करने वाले निर्देशक रोहित शेट्टी ने इंडियन पुलिस फोर्स के साथ ओटीटी स्पेस में पारी शुरू की है। रोहित ने ओटीटी डेब्यू के लिए अपना आजमाया फॉर्मूला ही चुना और वो कॉप सीरीज लेकर आये हैं। 

उनकी फिल्मों में एक्शन प्रधान तत्व होता है। फिल्म चाहे कॉमेडी हो या थ्रिलर, एक्शन रोहित का सिग्नेचर स्टाइल है। इंडियन पुलिस फोर्स भी स्टाइलिश एक्शन दृश्यों और चेज सीक्वेंसेज से भरी हुई है, मगर सीरीज को देखकर ऐसा लगता है कि रोहित अपने ही चक्रव्यूह में फंसकर रह गये हैं। 

इंडियन पुलिस फोर्स लेखन के स्तर पर आउटडेटेड सीरीज लगती है। सबसे ज्यादा निराश सीरीज की कहानी करती है, जो कुछ नया नहीं देती। इस बार रोहित ने दिल्ली पुलिस को अपनी कहानी का नायक बनाया है।

रिलीज से पहले उम्मीदों के परों पर सवार इंडियन पुलिस फोर्स (Indian Police Force) एक बेहतरीन सीरीज की सम्भावनाओं को धरती पर पटकती है।

क्या है इंडियन पुलिस फोर्स की कहानी?

सीरीज की शुरुआत दिल्ली में सीरियल बम धमाकों के साथ होती है। दिल्ली पुलिस के ज्वाइंट सीपी विक्रम बख्शी (विवेक ओबेरॉय) की टीम इन धमाकों की जांच कर रही है। डीसीपी कबीर मलिक (सिद्धार्थ मल्होत्रा) विक्रम की टीम का तेज-तर्रार अफसर है।

गुजरात एटीएस चीफ तारा शेट्टी (शिल्पा शेट्टी) अपनी टीम के साथ तफ्तीश में मदद करने दिल्ली आई है, जो दिल्ली से पहले अहमदाबाद में हुए सीरियल धमाकों के जिम्मदारों की तलाश में है।

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तारा की इंटेल थी कि दिल्ली में 26 जनवरी को बम ब्लास्ट हो सकते हैं, मगर आतंकियों ने उस तारीख के बाद दिल्ली में दहशत फैलाई।

इंडियन मुजाहिद्दीन (आइएम) संगठन से जुड़े आतंकियों की साजिश देश के बड़े-बड़े शहरों में सीरियल ब्लास्ट करने की है। इसके पीछे मास्टरमाइंड जरार (मयंक टंडन) है, जो ईरान में मौजूद हिंदुस्तानी आका रफीक (ऋतुराज सिंह) से निर्देश लेता है।

दिल्ली सीरियल ब्लास्ट के सुरागों का पीछा करते हुए पुलिस आतंकियों तक पहुंच जाती है और फिरोजा नगर के एक घर में उन्हें घेर लेती है, मगर भारी गोलीबारी के बाद जरार और उसका छोटा भाई सिक्कू बच निकलते हैं। इस भीषण एनकाउंटर में विक्रम शहीद हो जाता है।

इसके बाद जयपुर में भी सीरियल ब्लास्ट होते हैं। दिल्ली में ऑपरेशन फेल होने के बाद कबीर को फोर्स से हटाकर क्लैरिकल कामों में लगा दिया जाता है, लेकिन विक्रम को अपना बड़ा भाई मानने वाला कबीर गोपनीय रूप से जयपुर धमाकों की जांच करता है और पैटर्न देखकर समझ जाता है कि यह भी जरार का ही काम है।

कबीर की जांच से प्रभावित होकर पुलिस कमिश्नर जयदीप बंसल (मुकेश ऋषि) कबीर को वापस फोर्स में ले लेते हैं। इस बीच दिल्ली पुलिस को सूचना मिलती है कि सिक्कू को गोवा में देखा गया है। कबीर को यकीन होता है कि जरार भी गोवा में होगा। इसके बाद दिल्ली और गुजरात पुलिस की टीम गोवा पहुंचती है।

यहां टीम बड़ा धमाका रोकने में कामयाब हो जाती है। सिक्कू मारा जाता है, मगर जरार फिर बच निकलता है। आगे की कहानी जरार को पकड़ने के लिए जाल बिछाने की योजना पर आधारित है, जो ढाका के रास्ते ईरान भागने की तैयारी में है।

कैसा है सीरीज का स्क्रीनप्ले?

इंडियन पुलिस फोर्स सीरीज में रिसर्च के लिए चर्चित लेखक एस हुसैन जैदी को क्रेडिट दिया गया है। जैदी अंडरवर्ल्ड और मुंबई में आतंकी घटनाओं को लेकर किताबें लिखते रहे हैं। जैदी की रिसर्च पर रोहित ने अपनी लेखन टीम (संदीप साकेत, अनुषा नंदकुमार, आयुष त्रिवेदी, विधि घोडगांवकर, संचित बेड्रे) के साथ स्टोरी, स्क्रीनप्ले और संवाद लिखे हैं।

इंडियन पुलिस फोर्स की कहानी आतंकियों और उनके कनेक्शंस की तलाश करते हुए दिल्ली, आजमगढ़ (यूपी), कानपुर (यूपी) दरभंगा (बिहार), गोवा, सुंदरबन (पश्चिम बंगाल) और ढाका तक की सैर करती है। सीरीज मुख्य रूप से दो ट्रैक्स पर आगे बढ़ती है। पहला- दिल्ली और गुजरात पुलिस टीमों द्वारा आतंकी जरार की तलाश और दूसरा जरार की निजी जिंदगी और प्रेम कहानी, जिसे काफी विस्तार से दिखाया गया है।

ये दोनों ही ट्रैक 'क्लीशेज' से भरे हुए हैं। जरार के आतंकी बनने की वजह, बचपन में उसे एक मजहबी गुरु द्वारा बरगलाना, कौम के लिए जिहाद करना, बाहरी ताकतों से तार जुड़े होना... जैसे तमाम दृश्य देखे हुए लगते हैं।

वहीं, डीसीपी कबीर मलिक के जरिए कौम का बहाना लेकर आतंक को बढ़ावा देने वालों की मजम्मत करना। ना कथानक और ना संवाद, कुछ भी नया नहीं लगता। 

दिल्ली के फिरोजानगर में एनकाउंटर में विक्रम की शहादत से आक्रोशित कबीर पकड़े गये आतंकी शादाब को जब पीटता है तो वो गुस्से में बोलता है कि हम अपनी कौम के लिए लड़ रहे हैं। इस पर कबीर कहता है कि उसके जैसे लोगों का खामियाज पूरी कौम भुगतती है। क्लाइमैक्स में भी एक सीक्वेंस ऐसा आता है, जब जरार कबीर को कौम का साथ ना देने के लिए कोसता है तो कबीर उसे अपने तरीके से समझाता है कि मजहब क्यो हाता है। 

गोवा सीक्वेंस में आतंकी सिक्कू के पुलिस के चंगुल से बचने का दृश्य बेहद हल्का लगता है, जबकि ये महत्वपूर्ण सीक्वेंस है। ढाका ऑपरेशन में व्यस्त बाजार और गलियों में कबीर और जरार के बीच चेज सीक्वेंस रोमांच पैदा नहीं करता। 

कैसा है कलाकारों का अभिनय?

सीरीज के सभी एपिसोड्स का निर्देशन रोहित और सुशवंत प्रकाश ने किया है। सभी प्रमुख पात्रों को पर्दे पर उतारने में निर्देशकों ने उनके स्वैग का भरपूर ध्यान रखा है। कॉस्ट्यूम्स से लेकर सनग्लासेज तक। सीन की गम्भीरता चाहे जो हो, बाहर निकलते ही सभी किरदार सबसे पहले स्लो मोशन में एविएटर फ्रेम का चश्मा चढ़ाते हैं। 

सीरीज का एक्शन चुस्त है। सिद्धार्थ मल्होत्रा फाइट सीक्वेंसेज में सहज लगते हैं और जंचते हैं। सीरीज में रोहित ने एक्शन को वास्तविकता के करीब रखा है। उनकी फिल्मों के मुकाबले यहां लोग और कारें कम उड़ते हैं। शिल्पा शेट्टी को देखकर गुजरात एटीएस चीफ वाली फीलिंग नहीं आती, बाकी सब ठीक है।

दार्शनिक टाइप के पुलिस अफसर के किरदार में विवेक ओबेरॉय ठीक लगे हैं। सिद्धार्थ के साथ उनकी बॉन्डिंग के दृश्य अच्छे लगते हैं।

आइएम आतंकी जरार उर्फ हैदर के किरदार में मयंक टंडन अपनी जिम्मेदारी ठीक से निभा जाते हैं। मयंक रोहित शेट्टी की फिल्मों में असिस्टेंट रहे हैं। ये उनका एक्टिंग डेब्यू है। इस लिहाज से जरार के नेगेटिव किरदार में मयंक ने निराश नहीं किया।

सीरीज का एक और अहम किरदार नफीसा खान (जरार की प्रेमिका और पत्नी) है, जिसे वैदेही परशुरामी ने निभाया है। वैदेही इस किरदार की मासूमियत, चंचलता और दर्द को प्रदर्शित करने में सफल रही हैं।  

इंडियन पुलिस फोर्स के कथानक में कमिश्नर बने मुकेश ऋषि को देख सरफरोश का वो दृश्य याद आ जाता है, जब इंस्पेक्टर सलीम अहमद बने मुकेश आमिर खान से शिकायत करते हैं कि उनके मजहब की वजह से उन्हें केस से हटाया जा रहा है। हालांकि, यहां कबीर को इस तरह की कोई शिकायत नहीं है और ना उसकी देशभक्ति पर किसी को रत्तीभर भी संदेह है।

अंतिम एपिसोड में शरद केलकर की एंट्री होती है। हालांकि, इस किरदार का जिक्र विक्रम, तारा और कबीर की बातों में पहले भी होता रहा है। 

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कैसी है इंडियन पुलिस फोर्स?

रोहित की सीरीज दिल्ली दर्शन जरूर दिल से करवाती है। राजधानी की तकरीबन सभी ऐतिहासिक इमारतों के दर्शन सिनेमैटोग्राफी के जरिए करवा दिये गये हैं। तकरीबन हर शहर के सीक्वेंस में एरियल दृश्यों को एक जैसे कैमरा मूवमेंट और पैटर्न के साथ दोहराया गया है।

जयपुर सीक्वेंस के दौरान ऐतिहासिक किलों के विहंगम दृश्य सुंदर लगते हैं और शहर के एरियल व्यू को कैप्चर करते हैं, मगर दोहराव खटकता है। 

इंडियन पुलिस फोर्स तड़क-भड़क, स्टाइल और स्वैग में अव्वल सीरीज है, मगर लेखन और किरदारों के चित्रण में क्लीशेज का शिकार होने की वजह से असर नहीं छोड़ती। अगर एक्शन के शौकीन हैं तो सीरीज देखी जा सकती है।