Joram Review: सरवाइवल ड्रामा में मनोज बाजपेयी की अदाकारी का नया आयाम, इमोशनल करती है 'जोरम' की कहानी
Joram Review जोरम शुक्रवार को सिनेमाघरों में रिलीज हो रही है। यह सरवाइवल ड्रामा फिल्म है जिसमें मनोज बाजपेयी एक आदिवासी दसरू के रोल में हैं। दसरू अपनी तीन महीने की बच्ची को गोद लेकर पुलिस से भाग रहा है। उस पर कुछ गंभीर आरोप भी लगाये गये हैं। मोहम्मद जीशान अय्यूब पुलिस इंस्पेक्टर के रोल में हैं जो दसरू के पीछे है।
By Jagran NewsEdited By: Manoj VashisthUpdated: Thu, 07 Dec 2023 05:00 PM (IST)
प्रियंका सिंह, मुंबई। बड़े बजट की एनिमल और सैम बहादुर फिल्मों की रिलीज के एक हफ्ते बाद जोरम सिनेमाघरों में शुक्रवार को प्रदर्शित हो रही है। मनोज बाजपेयी अभिनीत इस फिल्म को कई फिल्म फेस्टिवल में सराहना मिली है।
फिल्म का निर्देशन और लेखन देवाशीष मखीजा ने किया है, जिनकी पिछली फिल्म भोंसले के लिए मनोज बाजपेयी को सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का राष्ट्रीय पुरस्कार मिला था।
क्या है जोरम की कहानी?
कहानी शुरू होती है झारखंड के झिनपीड़ी गांव में रहने वाले आदिवासी दंपती दसरू (मनोज बाजपेयी) और वानो (तनिष्ठा चटर्जी) के साथ। वानो झूले पर बैठकर आदिवासी लोकगीत गा रही है। फिर सन्नाटा छा जाता है और कहानी सीधे मुंबई आ जाती है। जहां एक कंस्ट्रक्शन साइट पर दोनों मजदूरी कर रहे हैं।उनकी तीन महीने की बच्ची जोरम भी है। आदिवासी विधायक फूलो करमा (स्मिता तांबे) साइट पर साड़ी और सोलर लाइट बांटने के बहाने आती है। वह दसरू की खोज में है, क्योंकि उसे वह अपने बेटे की हत्या का जिम्मेदार मानती है। उस रात वानो की हत्या हो जाती है।यह भी पढ़ें: Manoj Bajpayee Best OTT Movies: मनोज बाजपेयी की अदाकारी के लिए जरूर देखें ये 12 फिल्में, ओटीटी पर हैं मोजूद
दसरू अपनी बच्ची को लेकर वहां से भाग निकलता है। मुंबई पुलिस में सीनियर इंस्पेक्टर रत्नाकर बगुल (मोहम्मद जीशान अय्यूब) को उसे पकड़ने का काम सौंपा जाता है। दसरू अपने गांव पहुंचता है। रत्नाकर को भी उसकी तलाश में झारखंड भेजा जाता है। दसरू कभी माओवादियों से जुड़ा था।
मजबूरी में बंदूक उठाना उसे पसंद नहीं आया, इसलिए वह भागकर मुंबई आ गया था। अब दसरू कैसे अपनी बच्ची को बचाएगा? जिनसे मदद मांगने वह गांव पहुंचा है, क्या वही उसके दुश्मन हैं? ऐसे कई सवालों से गुजरते हुए फिल्म अंत तक पहुंचती है।