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Kafas Review: लेखन-निर्देशन ने बिगाड़ी संवेदनशील मुद्दे पर बनी सीरीज की लय, शरमन-मोना का सधा हुआ अभिनय

Kafas Web Series Review कफस का निर्देशन साहिल सांगा ने किया है। यह एक बेहद संवेदनशील मुद्दे को एड्रेस करती है। शरमन जोशी और मोना सिंह लीड रोल्स में हैं। सीरीज सोनी-लिव पर स्ट्रीम हो गयी है। एक बार फिर ग्लैमर इंडस्ट्री की कालिख इस सीरीज के साथ बाहर आती है मगर बात सिर्फ इतनी नहीं है। माता-पिता पर भी सवाल खड़े करती है।

By Manoj VashisthEdited By: Manoj VashisthUpdated: Fri, 23 Jun 2023 09:04 PM (IST)
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Kafas Web Series Review Staring Sharman Joshi Mona Singh. Photo- Instagram
नई दिल्ली, जेएनएन। दूसरों की कहानी कहने वाली फिल्म इंडस्ट्री कभी-कभी अपने अंदर भी झांक लेती है और कोई ऐसी दास्तां लेकर आती है, जो कभी इसके उजले तो कभी स्याह पक्ष को दिखाती है। इन कहानियों के जरिए कभी किसी का संघर्ष सामने आता है तो कभी दबी हुई ख्वाहिशों का सैलाब बहा ले जाता है।

कुछ दिन पहले बेहद सराही गयी प्राइम वीडियो की सीरीज जुबली 40-50 के दशक की इंडस्ट्री और इसके चाल-चलन को दिखाती है तो आज ही आयी फिल्म टीकू वेड्स शेरू भी फिल्म इंडस्ट्री में संघर्ष कर रहे कपल की जिंदगी पेश करती है। हौसला बढ़ाने वाली कहानियां तो ठीक हैं, मगर बाजी दफा ऐसे किस्से कल्पनाओं का सहारा लेकर बाहर निकलते हैं, जो डिस्टर्ब करते हैं। 

सोनी-लिव पर शुक्रवार को एक ऐसी ही कहानी 6 एपिसोड्स की वेब सीरीज कफस की सूरत में बाहर आयी है, जो फिल्म इंडस्ट्री के एक काले सच को दिखाती है और जिसके लिए इंडस्ट्री बदनाम है। कफस चाइल्ड एब्यूज की भावनात्मक कहानी है। हालांकि, बच्चों से जुड़ा जो क्राइम यहां दिखाया गया है, वो कहीं भी और किसी के द्वारा अंजाम दिया जा सकता है। फिल्म इंडस्ट्री महज कथाभूमि हो सकती है। 

क्या है कफस की कहानी?

आगे बढ़ने से पहले कफस का मतलब बताना ठीक रहेगा, जिससे इस सीरीज के शीर्षक का सार्थकता समझ में आएगी। कफस का मतलब होता है पिंजरा, मगर सवाल यह है कि इस कफस में कैद कौन है? इसी सवाल के जवाब में इस पूरी वेब सीरीज की कहानी छिपी है।

कहानी के केंद्र में राघव (शरमन जोशी), सीमा (मोना सिंह) और उनका किशोरवय बेटा सनी (मिकाइल गांधी) है। एक दिन अपनी फिल्म सुपरडैड के शूट से लौटता है तो गुमसुम अवस्था में सीधे अपने कमरे में जाकर लेट जाता है। माता-पिता को लगता है कि बेटा थक गया है, मगर जब उसके गुमसुम होने का सच वीडियो में देखते हैं तो पांव के नीचे से जमीन निकल जाती है।

राघव गुस्से में इसके लिए पहले अपनी सास (जरीना वहाब) और फिर पत्नी सीमा को जिम्मेदार ठहराता है, जो खुद अभिनेत्री बनने का सपना देखती थी, मगर जब पूरा नहीं हो सका तो बेटे के जरिए ख्वाहिशों को पूरा करना चाहती है।

विक्रम पर केस करने के लिए वीडियो काफी नहीं है, क्योंकि इसमें दोनों का चेहरा नहीं दिखता। वकील की सलाह पर पति-पत्नी मोटी रकम लेकर नॉन डिस्क्लोजर एग्रीमेंट साइन कर लेते हैं, मगर यह सब इतना सीधा नहीं। अपराधबोध, अपमान और बेटे की छटपटाहट को दबाना आसान नहीं। 

कैसे हैं पटकथा, अभिनय और संवाद?

कफस का निर्देशन साहिल सांगा ने किया है, जबकि करण शर्मा ने इसका लेखन किया है। आम तौर पर इंडस्ट्री के बारे में कहा जाता है कि यह लड़कियों के लिए सुरक्षित नहीं है, मगर कफस दिखाती है कि यह लड़कों के लिए भी सेफ नहीं है।

कफस सीरीज एक बेहद संवेदनशील और जरूरी मुद्दे को उठाती है, मगर गहराई में नहीं उतरती। इस कारण कथ्य और किरदारों से दर्शक की सहानुभूति नहीं जुड़ पाती। कुछ संवाद भी विषय की संवेदनशीलता को देखते हुए हल्के मालूम पड़ते हैं। एपिसोड्स जैसे-जैसे आगे बढ़ते हैं, कहानी एक मुद्दे से जूझने के बजाय पति-पत्नी के बीच समीकरण पर फोकस हो जाती है, जो सेंट्रल प्लॉट को सपोर्ट नहीं करता।

अभिनय की बात करें तो शरमन जोशी एक ऐसे पति के किरदार में ठीक लगे हैं, जो कमजोर है, मगर घटना के बाद कंट्रोल अपने हाथ में लेने की कोशिश कर रहा है। मोना सिंह ने अपने किरदार के विभिन्न भावों को कामयाबी के साथ पेश किया है।

मिकाइल ने अपने किरदार को पकड़कर रखने की पूरी कोशिश की है और कई जगह उनकी अदाकारी प्रभावित करती है। विवान भाटेना नेगेटिव रोल में ठीक लगे हैं। सीरीज में दृश्य की जरूरत के हिसाब से चेहरे पर मक्कारी लाने में वो सफल रहे हैं। 

कफस एक ऐसे मुद्दे को उठाती है, जो समाज में अक्सर नजरअंदाज कर दिया जाता है और विभिन्न कारणों से यह बुराई बनी रहती है। हालांकि, मुद्दे की संवेदनशीलता ढीले स्क्रीनप्ले और निर्देशन की वजह से जस्टिफाई नहीं हो सकी। 

कलाकार- शरमन जोशी, मोना सिंह, जरीना वहाब, विवान भाटेना आदि।

निर्देशक- साहिल सांगा

प्लेटफॉर्म- सोनी लिव

अवधि- लगभग आधा घंटा प्रति एपिसोड

रेटिंग- ढाई स्टार