Kanguva Review: ज्यादा दिखाने के चक्कर में उलझा दी 'कंगुवा' की कहानी, Bobby Deol का ऐसा हाल, पढ़ें रिव्यू
एनिमल के बाद एक बार फिर से बॉबी देओल विलेन के रूप में अपना आतंक फैलाने के इरादे से बिग स्क्रीन पर आए। उन्होंने तमिल फिल्म कंगुवा से साउथ सिनेमा में कदम रखा। इस फिल्म में सूर्या ने मुख्य भूमिका निभाई।1070 पेरुमाची द्वीप से लेकर 2024 तक की कहानी दिखाने वाली इस फिल्म से दर्शकों को काफी उम्मीदें थी लेकिन ये उस पर खरी उतरी या नहीं यहां पढ़ें रिव्यू।
प्रियंका सिंह, मुंबई। कंगुवा का इंतजार फैंस को एक लंबे समय से था, जो अब खत्म हो चुका है। तमिल फिल्म अभिनेता सूर्या पहले ही बता चुके हैं कि वह अपनी फिल्म कंगुवा को दो हिस्सों में लेकर आ रहे हैं। ऐसे में फिल्म को उसी सोच के साथ देखें कि कहानी अभी बाकी है।
क्या है फिल्म की कहानी?
फिल्म की कहानी शुरू होती है पेरुमाची द्वीप से, जहां एक बुजुर्ग महिला कहती है कि इंसानों के जीवन में सबसे ज्यादा रहस्य है। वह क्यों जन्म लेता है, क्यों किसी के साथ रहता, क्यों किसी और लिए मरता है यह कोई नहीं जानता है। वहां से कहानी 2024 में आ जाती है, जहां किसी लैब में बच्चों के दिमाग के साथ प्रयोग किए जा रहे हैं।
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वहां से एक बच्चा भाग निकलता है। कहानी गोवा पहुंचती है, जहां फ्रांसिस (सूर्या ), कोल्ट (योगी बाबू) बाउंटी हंटर हैं। जिन अपराधियों को पुलिस नहीं पकड़ पाती है, उसे वह पकड़ते हैं और पुलिस से पैसे लेते हैं। लैब से भागा हुआ बच्चा फ्रांसिस तक पहुंच जाता है। फ्रांसिस को भी बच्चे से जुड़ाव महसूस होता है। वहां से कहानी फिर साल 1070 पेरुमाची आती है, जहां के राजा का बेटा है कंगुवा (सूर्या)। लैब से भागे हुए उस बच्चे का नाम इस दौर में पूर्वा होता है। पूर्वा के पिता को गद्दारी करने के जुर्म में कंगुवा ने जिंदा जला दिया होता है।
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हालांकि उसके बेटे को वह गोद ले लेता है। खैर, रोमन सम्राट एक द्वीप पर कब्जा करना चाहता है। वह उधिरन (बाबी देओल) जो अरथी द्वीप का मुखिया है, उसकी मदद लेता है। उधिरन के बेटे कंगुवा के हाथों मारे जाते हैं। अब उधिरन की कंगुवा से दुश्मनी निजी है।
फिल्म का बैकग्राउंड म्यूजिक कर देगा कानों को सुन्न
निर्देशक शिवा ने ही फिल्म की कहानी लिखी है। उनका विजन बड़ा है, लेकिन स्पष्ट नहीं। जब कंगुवा और उधिरन की लड़ाई दिखानी थी, पुनर्जन्म का एंगल रखना था, तो रोमन सम्राट का एंगल ही बेईमानी हो जाता है। कहानी को इतना फैलाने की बजाय सीधे पटरी पर लाते, तो न इतने पात्रों के नाम याद रखने होते, न फिल्म की अवधि बढ़ती। सूर्या ने कहा था कि फिल्म अंत में कई सवाल छोड़ेगी, क्योंकि दूसरा पार्ट भी आएगा। हालांकि फिल्म देखते वक्त मन में केवल यह सवाल आते हैं कि इस फिल्म के पात्र इतनी जोर से क्यों बात कर रहे हैं, फिल्म का बैकग्राउंड म्यूजिक इतना तेज क्यों है कि कान सुन्न हो रहे हैं। हीरोइक सीन के लिए मगरमच्छ के साथ कंगवा की लड़ाई भी थी, जो रोमांचक नहीं बनी। वहीं जंगल में वन मैन आर्मी की तरह पांच सौ सैनिकों से कंगुवा का लड़ने वाला सीन अच्छा, लेकिन अपच है। अचानक से पेरुमाची की महिलाओं का आत्मरक्षा के लिए लड़ने वाला सीन समझ नहीं आता है। फिल्म के विजुअल इफेक्ट, सिनेमैटोग्राफी और एक्शन सीन की बात की जाए, तो ये सब दमदार है, इसलिए ढाई घंटे से ज्यादा की फिल्म झेल पाते हैं। जैसे ही पिता और पुत्र से थोड़ा सा भावनात्मक कनेक्ट होता है, तब तक फिल्म ही खत्म हो जाती है। लैब वाला पूरा प्रयोग समझ से परे था, शायद दूसरे पार्ट में जवाब मिले। क्लाइमेक्स में उधिरन के नाजायज बेटे रक्तांगसन (कैथी) की एंट्री दमदार है।photo credit: imdb