Kho Gaye Hum Kahan Review: सोशल मीडिया की भीड़ में जिंदगी और जज्बात की तन्हाई, सही मुद्दे पर चोट करती है फिल्म
Kho Gaye Hum Kahan Review खो गये हम कहां 26 दिसम्बर को नेटफ्लिक्स पर रिलीज हो गई है। इस फिल्म में अनन्या पांडेय सिद्धांत चतुर्वेदी और आदर्श गौरव लीड रोल्स में हैं। फिल्म में सोशल मीडिया को लेकर कुछ चिंताओं पर बात की गयी है। फिल्म का लेखन जोया अख्तर और रीमा कागदी ने निर्देशक अर्जुन के साथ मिलकर किया है।
एंटरटेनमेंट डेस्क, नई दिल्ली। सोशल मीडिया यानी ऐसा माध्यम, जो हमें सोशल बनाये, मगर विडम्बना देखिए, सोशल होने का यह वर्चुअल माध्यम इंसान को अकेला बना रहा है। विभिन्न सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर जिंदगी ढूंढती पीढ़ी वास्तविक जीवन में संबंधों को लेकर लापरवाह हो रही है।
क्या सोशल मीडिया वाकई हमें सोशल बना रहा है या अकेलेपन के कोने में धकेल रहा है। तकनीक के नफा-नुकसान को नापने वाले अक्सर ऐसे सवाल उठाते हैं, जो जायज भी है। नेटफ्लिक्स पर आई खो गये हम कहां फिल्म भी कुछ ऐसे सवाल उठाती है।
निर्देशक अर्जुन वरैन सिंह ने नये जमाने की इस फिक्र को नये अंदाज में युवा कलाकारों के साथ पेश किया है, जो खुद सोशल मीडिया के सेलिब्रिटीज हैं। हालांकि, विषय की यह गम्भीरता फिल्म के कथ्य को बोझिल नहीं होने देती और यही इस फिल्म की जीत है।
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क्या है खो गये हम कहां की कहानी?
खो गये हम कहां की कहानी के केंद्र में तीन दोस्त हैं- आहना (अनन्या पांडेय), इमाद (सिद्धांत चतुर्वेदी) और नील (आदर्श गौरव)। तीनों मुंबई में एक साथ रहते हैं। इमाद स्टैंडअप कॉमेडियन है और इस पेशे में कुछ बड़ा करने की कोशिश में जुटा है। आहना का ब्वॉयफ्रेंड रोहन है, जिसके साथ वो सुखी भविष्य के सपने संजो रही है।
नील एक आरामदायक और रंगीन जिंदगी का सपना देख रहे हैं। वो जिम इंस्ट्रक्टर है। हालांकि, यह सब इतना आसान नहीं है। इनकी अपनी समस्याएं और चुनौतियां हैं, जिनका ये सामना कर रहे हैं। तीनों इससे निपट रहे हैं, लेकिन सोशल मीडिया उनकी ख्वाहिशों के रास्ते की बाधा बनता है। फिल्म जिंदगी पर इसके प्रभाव का चित्रण है।
कैसा है स्क्रीनप्ले और कलाकारों का अभिनय?
खो गये हम कहां का लेखन डायरेक्टर अर्जुन वरैन सिंह के साथ जोया अख्तर और रीमा कागती ने किया है। फिल्म सवाल उठाती है कि अगर सोशल मीडिया ना हो तो जिंदगी कैसी होगी? जोया और रीमा के लेखन की ये खूबी रही है कि सब्जेक्ट युवाओं और मौजूदा दौर में फलते-फूलते हैं। यारी, दोस्ती और निजी दिक्कतें स्क्रीनप्ले को ट्विस्ट्स और टर्न्स देते हैं।
जिंदगी ना मिलेगी दोबारा, दिल धड़कने दो, गली ब्वॉय, द आर्चीज और अब खो गये हम कहां...इन सभी फिल्मों के किरदार और समस्याएं युवा पीढ़ी के हिसाब से रखी गयी हैं।
निर्देशक अर्जुन वरैन सिंह ने लेखन को रील पर उतारने में अपने हुनर का परिचय दिया है। किरदारों की रोजमर्रा की जिंदगी को उन्होंने जिस तरह दिखाया है, उससे इस पीढ़ी के दर्शक इत्तेफाक रखेंगे। फिल्म में एक सीन आता है, जब ड्राइंग रूम में बैठे तीनों किरदार अपने-अपने मोबाइल और लैपटॉप में डूबे हैं। ये सीन मौजूदा हालात को प्रतिविम्बित करने के लिए काफी है।
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काली पीली और गहराइयां के बाद अनन्या की ये तीसरी फिल्म है, जो सीधे ओटीटी पर उतरी है। इसे संयोग कहा जाए या कहानियों का चयन कि गहराइयां के बाद इस फिल्म में अनन्या प्रभावित करती हैं। ड्रीम गर्ल 2 की परी के मुकाबले खो गये हम कहां की आहना उन्हें ज्यादा सूट करती है।
सिद्धांत चतुर्वेदी ने गली ब्वॉय में एमसी शेर और गहराइयां के जैन के बाद इमाद को भी सहजता से निभाया है। संघर्षरत स्टैंड अप कॉमेडियन के लिए जिस तरह की बॉडी लैंग्वेज चाहिए, सिद्धांत ने उसे निभाने में कामयाबी पाई है। द व्हाइट टाइगर के बाद आदर्श गौरव की ये दूसरी ओटीटी रिलीज है।
नील के किरदार की आकांक्षाओं और आजमाइशों को आदर्श गौरव ने जस्टिफाई किया है। वो इस किरदार में सहज दिखते हैं। खो गये हम कहां... अपनी एनर्जी और युवा सोच से प्रभावित करती है।