Khuda Haafiz 2 Review: दिल जीत लेगा विद्युत जमवाल का दमदार एक्शन, टिकट बुक करने से पहले पढ़ें ये रिव्यू
Khuda Haafiz 2 Review एक्शन से भरपूर खुदा हाफिज चैप्टर 2 अग्निपरीक्षा में विद्युत जामवाल ने अपने अभिनय से जान डाल दी है। फिल्म में दिखाया है कि कैसे एक इंसान प्यार और बेटी को बचाने के लिए किसी भी सीमा तक जाने को तैयार हता है।
By Ruchi VajpayeeEdited By: Updated: Fri, 08 Jul 2022 02:42 PM (IST)
फिल्म रिव्यू : खुदा हाफिज चैप्टर 2 : अग्निपरीक्षा
प्रमुख कलाकार : विद्युत जामवाल, शिवालिका ओबराय, शीबा चड्ढा, दिब्येंदु भट्टाचार्य, राजेश तैलंग, दानिश हुसैन, इश्तियाक खान निर्देशक : फारुक कबीर
अवधि : दो घंटा 27 मिनटस्टार : तीन ***
स्मिता श्रीवास्तव, मुंबई। सीक्वल फिल्मों की कड़ी में खुदा हाफिज चैप्टर 2 : अग्निपरीक्षा सिनेमाघरों में रिलीज हो गई है। यह महामारी के दौर में वर्ष 2020 में डिज्नी प्लस हाट स्टार पर रिलीज फिल्म खुदा हाफिज की सीक्वल है। मूल फिल्म में अभिनेत्री नर्गिस (शिवालिका ओबराय) का विदेश में अपहरण कर उसे जबरन वेश्यावृत्ति में धकेल दिया जाता है। उसे अपनी जान से ज्यादा चाहने वाला उसका पति समीर (विद्युत जामवाल) उसे उस दलदल से निकालकर वापस भारत लाता है।
कहानी वहीं से शुरु होती है जहां इसका अंत हुआ था। नर्गिस अपने कड़वे अतीत से निकल नहीं पा रही है। वह डिप्रेशन में है और डाक्टर की मदद ले रही है। समीर उसे खुश देखना चाहता है। उसी दौरान अपने दोस्त की पांच साल की अनाथ भतीजी नंदिनी को गोद लेने की मंशा से समीर घर लाता है। धीरे-धीरे नर्गिस उसे अपना लेती है। अचानक एक दिन स्कूल के बाहर नंदिनी का अपहरण हो जाता है। दुष्कर्म करने के बाद दरिंदे उसे खेत में फेंक देते हैं। नंदिनी की मौत समीर की जिंदगी में भूचाल लाती है। उसकी मौत के पीछे चंद नाबालिग स्कूली छात्र होते हैं। इनमें असली गुनाहगार स्थानीय दबंग ठाकुरजी (शीबा चड्ढा) का पोता होता है। समीर कैसे उन्हें खोजकर सजा देता है कहानी इस संदर्भ में हैं।
खुदा हाफिज चैप्टर 2 : अग्निपरीक्षा की कहानी, स्क्रिन प्ले और निर्देशन फारुख कबीर का है। मूल फिल्म सच्ची घटना से प्रेरित थी वहीं सीक्वल काल्पनिक कहानी है। फारुख ने नर्गिस के उस दलदल से बाहर आने के बाद उसकी मनोदशा, समाज के लोगों के व्यवहार की झलक दी है। हालांकि वह बहुत ज्यादा इसकी गहराई में नहीं जाते। यहां पर गोद लिए बच्चे का मुद्दा कहानी का अभिन्न अंग हैं। अपने और पराए बच्चे में फर्क को लेकर एक दृश्य में जब इंस्पेक्टर कहता है कि इसे हादसा समझ कर भूल जाओ वो तो गोद ली बच्ची थी। वह आपकी संवेदनाओं को झकझोरता है।
यह याद दिलाता है कि बच्चा गोद लिया हो या अपना प्यार ही रिश्ते को जोड़ता है। आपराधिक कृत्य करने वाले नाबालिगों के लिए कानून में कड़ी सजा का प्रावधान नहीं है। यह फिल्म नाबालिग के आपराधिक कृत्य पर सजा कम होने जैसे पहलुओं को संवादों में उठाती है। क्लाइमेक्स को कबीर मिस्र (इजिप्ट) ले गए हैं। वहां के विश्व प्रसिद्ध पिरामिड को स्क्रीन पर देखना अच्छा लगता है। जेल में दर्शाए गए एक्शन सीन में रोमांच है। हालांकि ठाकुर जी के साथ रहने वाली महिला के किरदार के बारे में कोई जानकारी नहीं दी गई है। यह अपच है।
एक्शन फिल्मों के लिए पहचान रखने वाले विद्युत जामवाल ने खुदा हाफिज सीरीज में आम इंसान की भूमिका अदा की है। प्रतिकूल हालात के चलते वह प्यार और बेटी को बचाने के लिए किसी भी सीमा तक जाने को तैयार रहता है। लिहाजा यहां पर भी एक्शन है, लेकिन हवा हवाई नहीं है। यह एक्शन आसपास मौजूद चीजों और हाथापाई से है। यह एक्शन रोमांचक और रोंगटे खड़े कर देने वाला है। एक्शन दृश्यों में उनकी स्फूर्ति देखते ही बनती है।
हालांकि कहीं-कहीं खून खराब के दृश्य विचलित करते हैं। शिवालिका ओबराय के हिस्से में कई भावनात्मक सीन आए हैं। उसमें उनकी मेहनत झलकती है। ठाकुर की भूमिका में शीबा जंचती हैं। हालांकि उनके किरदार को पूरी तरह विकसित नहीं किया गया। दानिश हुसैन का काम उल्लेखनीय है। दिब्येंदु भट्टाचार्या मंझे अभिनेता हैं। उन्होंने स्क्रिप्ट की सीमाओं में बेहतर अभिनय किया है। राजेश तैलंग का किरदार भी अविकसित है। जबकि उसे सशक्त बनाने की पूरी गुंजाइश थी। फिल्म का बैकग्राउंड गीत-संगीत साधारण है। कहानी के अंत में इसका अगला पार्ट बनने का संकेत स्पष्ट है।