मनोज वशिष्ठ, नई दिल्ली। Kohrra Review: क्राइम थ्रिलर्स की भीड़ में अगर कोई ऐसी वेब सीरीज आपको बिंज वॉच करने के लिए मजबूर कर दे, जिसमें सितारों की चकाचौंध ना हो तो समझिए लेखक-निर्देशक का मकसद पूरा हो गया। शनिवार को नेटफ्लिक्स पर स्ट्रीम हुई क्राइम वेब सीरीज
कोहरा कुछ इसी मिजाज की सीरीज है।
लेखन, निर्देशन और अभिनय के स्तर पर चुस्त सीरीज स्क्रीनप्ले कसा हुआ है। दृश्यों का देसीपन इसकी रूह है। शोर-शराबे की तमाम गुंजाइश होने के बावजूद सीरीज सादगी के साथ आगे बढ़ती है और इसमें चार चांद लगाती है संवादों के बीच की खामोशी... और किरदारों की सहज भावाभिव्यक्ति। सस्पेंस अंत तक बनाकर रखने की कोशिश की गयी है, मगर कहानी में घटनाएं इस तरह मोड़ लेती है कि एक वक्त के बाद कहानी प्रेडिक्टेबल होने लगती है।
हालांकि, रफ्तार से बह रही कहानी में उस मोड़ के आने तक
'कोहरा' पूरी तरह छा चुका होता है और प्रेडिक्टेबिलिटी का एहसास दृश्यों के रोमांच को खत्म नहीं कर पाता, क्योंकि वहां कहानी और किरदारों की वो परत खुल रही होती है, जो इसे मर्डर मिस्ट्री से इतर सोशल ड्रामा का रूप देता है। 'कोहरा' के किरदार वास्तविकता के करीब हैं, इसीलिए दोषयुक्त हैं और पहचाने लगते हैं।
क्या है 'कोहरा' की कहानी?
कोहरा की कथाभूमि पंजाब का काल्पनिक गांव जगराना है, जहां शादी के लिए लंदन से आये हुए अप्रवासी भारतीय पॉल ढिल्लों (
विशाल हांडा) का कत्ल हो जाता है। लाश खेत में मिलती है। उसके साथ लंदन से आया गोरा दोस्त लियाम मर्फी (
इवानटी नोवाक) गायब हो जाता है।केस की छानबीन सब इंस्पेक्टर बलबीर सिंह (
सुविंदर विक्की) और सहायक सब इंस्पेक्टर अमरपाल गरुंडी (
बरुण सोबती) कर रहे हैं। जांच जैसे-जैसे आगे बढ़ती है, शक के घेरे में अपने ही आने लगते हैं। इधर, बलबीर सिंह की अपनी जिंदगी भी उलझनों से घिरी हुई है।
इनसे निपटते हुए मीडिया और विभागीय दबाव के बीच उसे इस हाइ प्रोफाइल मर्डर केस की गुल्थी सुलझानी है। इस हत्या के पीछे एक ऐसा राज छिपा है, जिसके खुलने के बाद ढिल्लों परिवार पर बिजली गिर जाएगी।
कैसा है 'कोहरा' का स्क्रीनप्ले?
इस कहानी को शो की लेखन टीम ने लगभग 45 मिनट के छह एपिसोड्स में समेटा है। सीरीज की शुरुआत सर्दी की धुंध भरी सुबह खेत में पॉल की डेड बॉडी मिलने के साथ होती है। जगराना पुलिस के
सब इंस्पेक्टर बलबीर सिंह और सहायक सब इंस्पेक्टर अमरपाल गरुंडी मौके पर पहुंचते हैं और लाश मिलने की सूचना देने वाले लड़के से पंजाब पुलिस की पूछताछ के साथ ही एक दमदार शो का स्टेज सेट हो जाता है।
बलबीर, खबर देने वाले लड़के की शर्ट की आस्तीन ऊपर चढ़ाकर सुई के निशान चेक करता है। लड़का हाथ झटकते हुए कहता है- क्या मैं आपको नशेड़ी लगता हूं। बलबीर कहता है- लगता तो कबड्डी प्लेयर भी नहीं है। 'कोहरा' की कहानी मुख्य रूप से दो ट्रैक्स पर चलती है- एक कत्ल की तफ्तीश और दूसरा इसके मुख्य किरदारों की निजी जिंदगी, लेकिन अहम बात यह है कि ये दोनों ट्रैक्स इतनी सहजता के साथ एक-दूसरे को क्रॉस करते हैं कि दृश्य बोझिल नहीं होते और ना ही कहीं शो के प्रवाह में बाधा आती है। क्राइम, ड्रग्स और एनआरआई कल्चर कहानी में दृश्यों को रफ्तार देते हैं और रोमांच जगाते हैं।
जांच के दौरान संदेह के घेरे में आने वाले किरदारों के जरिए जहां ड्रग्स और क्राइम के गठबंधन को जाहिर किया गया है, वहीं पॉल ढिल्लों की होने वाली पत्नी
वीरा सोनी किरदार के जरिए शादी करके विदेश में जा बसने की उत्कट चाहत को दर्शाया गय है।यह दृश्य हैरान करता है कि जिस लड़की (वीरा) ने अपने प्रेमी (
साकार) को सिर्फ इसलिए छोड़ा कि वो पॉल से शादी करके लंदन जा सके, वही लड़की पॉल के मरने के बाद कुछ महीने इंतजार भी नहीं करती और कनाडा का लड़का शादी के लिए ढूंढ लेती है। वीरा का पूर्व प्रेमी होने के कारण रैपर साकार भी संदिग्धों की लिस्ट में आ जाता है।
लेखन टीम (गुंजीत चोपड़ा, सुदीप शर्मा, दिग्गी सिसोदिया) को इसके लिए बधाई देनी होगी कि दृश्यों को इस तरह गढ़ा गया है कि सीरीज की संजीदगी को कहीं-कहीं ह्यूमर की परत मुद्दे से भटकाये बिना कम करती है। संवादों के जरिए इसे संतुलित किया गया है।कत्ल की जांच सुराग-दर-सुराग जिस तरह आगे बढ़ती है, स्क्रीनप्ले में वे दृश्य जकड़कर रखते हैं। पोस्टमार्टम और डीएनए रिपोर्ट्स के जरिए सस्पेंस को बनाये रखा गया है, जिसकी जिक्र करना यहां ठीक नहीं होगा। यह कहानी का सबसे अहम हिस्सा है और टर्निंग प्वाइंट भी। संवादों की भाषा पंजाबी है, मगर यह रुकावट नहीं बनती।
कैसा रहा कलाकारों का अभिनय?
लेखन और निर्देशन को कलाकारों के अभिनय का भरपूर साथ मिला है। सब इंस्पेक्टर बलबीर सिंह के किरदार में
सुविंदर विक्की कोहरा की खोज कहे जा सकते हैं। हालांकि, वो पहले भी हिंदी प्रोजेक्ट्स में दिखते रहे हैं, मगर नजर नहीं पड़ी होगी। बलबीर के किरदार में सुविंदर की अदाकारी कोहरा की हाइलाइट है। पति से तलाक और पूर्व प्रेमी से शादी करने की जिद पाले बेटी को अपनी हालत के पिता को जिम्मेदार मानती है।आत्महत्या की कोशिश भी करती है। बलबीर की जिंदगी के इस पहलू को देख उस पर तरस भी आता है। इस सब में बलबीर का एक ही सहारा है- अमरपाल गरुंडी।
बरुण सोबती ने एक बार फिर अपने अभिनय से दृश्यों को देखने लायक बनाया है। उसकी जिंदगी के फैसलों पर भाभी का साया है। बलबीर के साथ अमरपाल की बॉन्डिंग इस कहानी का मजबूत पक्ष है, जिसे संवादों के बजाय दोनों कलाकारों पर फिल्माये गये दृश्यों से ही जाहिर किया है।
बलबीर की बेटी निमरत के किरदार में
हरलीन सेठी ने बेहद सधी हुई परफॉर्मेंस दी है। इस किरदार के जरिए समाज में पितृसत्ता की ठसक को भी उजागर किया गया है। मर्जी के बिना बेटी की शादी और फिर बेटे का जन्म हो जाना, उसकी उड़ान का रुक जाना। एक दृश्य में वो कहती भी है कि वो इतनी जल्दी बच्चा नहीं चाहती थी, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि वो बेटे को प्यार नहीं करती।
वहीं, ढिल्लों परिवार में दोनों भाइयों स्टीव (सतविंदर ढिल्लों) और मन्ना (मनिंदर ढिल्लों) के जरिए दो भाइयों के बीच रिश्तों की तल्खी को दिखाया गया है। पॉल के पिता सतविंदर के किरदार में
मनीष चौधरी और मनिंदर के किरदार में
वरुण बड़ोला असर छोड़ते हैं।इनके अलावा बाकी सहयोगी किरदारों में बलबीर के मुखबिर नोपी की पत्नी इंदिरा छाबड़ा के किरदार में
एकावली खन्ना, वीरा सोनी के किरदार में आनंद प्रिया, अमरपाल की भाभी रज्जी के रोल में एकता सोढी, मर्डर सस्पेक्ट और वीरा के पूर्व प्रेमी साकार खन्ना के रोल में सौरव खुराना ने उल्लेखनीय काम किया है। पॉल के किरदार में
विशाल हांडा और लियाम के रोल में
इवानटी नोवाक के हिस्से ज्यादा दृश्य नहीं आये हैं। सिनेमैटोग्राफी की तारीफ करनी होगी, जिसने रियल लोकेशंस को इस तरह कैप्चर किया है कि रॉनेस और रवानगी बने रहते हैं। शो के निर्देशक
रणदीप झा धीरे-धीरे ओटीटी स्पेस के उन फिल्मकारों में शामिल हो रहे हैं, जिनका नाम जुड़ने से एक अच्छे कंटेंट की आस पैदा हो जाती है। हलाहल फिल्म और ट्रायल बाई फायर सीरीज इसकी मिसाल हैं।
रेटिंग: साढ़े तीन