Kuch Khattaa Ho Jaay Movie Review सिंगर गुरु रंधावा ने हाल ही में कुछ खट्टा हो जाए से एक्टिंग की दुनिया में कदम रखा है। इस फिल्म में उनके साथ पहली बार दबंग-3 एक्ट्रेस सई मांजरेकर की जोड़ी फैंस को देखने को मिली। कैसी है ये फिल्म क्या अपनी डेब्यू फिल्म से गुरु रंधावा जमा पाएंगे एक्टिंग की दुनिया में कदम यहां पर पढ़ें पूरा रिव्यू।
स्मिता श्रीवास्तव, मुंबई । फिल्म में मनोरंजन के साथ संदेश देने के लिए चुस्त पटकथा, दमदार संवाद और कलाकारों के सधे अभिनय की आवश्यकता होती है। अगर गीत-संगीत कर्णप्रिय हो तो सोने पर सुहागा जैसी बात होती है। जी अशोक निर्देशित कुछ खट्टा हो जाए में भले ही मिठाइयों की बात है, लेकिन कहानी से मिठास नदारद है। फिल्म को बनाने की मंशा अच्छी है, लेकिन लचर स्क्रीनप्ले की वजह से फिल्म खट्टी ज्यादा हो गई है।
क्या है 'कुछ खट्टा हो जाए' की कहानी
कहानी प्यार की निशानी ताजमहल के लिए विख्यात आगरा की पृष्ठभूमि में हैं। ईरा मिश्रा (सई मांजरेकर) आइएएस बनना चाहती है। उसकी कोचिंग में पढ़ने वाला हीर खन्ना (गुरु रंघावा) उससे बेपनाह मोहब्बत करता है। उसका पढ़ाई में मन नहीं लगता। पारिवारिक कारणों से ईरा और हीर शादी कर लेते हैं। शादी की रात ईरा आइएएस बनने के लिए अनुबंध के तहत हीर के समक्ष कई शर्तें रखती है।
यह भी पढ़ें: Kuch Khattaa Ho Jaay से बॉलीवुड में डेब्यू करेंगे Guru Randhawa, इस दिन रिलीज होगा फिल्म का टीजर हीर के परिवार में बाउजी (अनुपम खेर), बड़े चाचा (अतुल श्रीवास्तव), चाची (ईला अरुण), छोटे चाचा (परेश गणात्रा) और चमन (पारितोष त्रिपाठी) होता है। मिठाइयों का पुश्तैनी कारोबार करने वाले बाउजी का सपना परदादा बनने का है। उनकी जिंदगी राजीखुशी चल रही होती है।
इस दौरान चाची (ईला अरुण) को गलतफहमी होती है कि ईरा मां बनने वाली होती है। परिवार उसका ज्यादा ख्याल रखने लगता है। ईरा इस झूठ की आड़ में अपनी पढ़ाई जारी रखने का निर्णय लेती है। हीर उसका साथ देता है। घटनाक्रम मोड़ लेते हैं। ईरा का एक्सीडेंट होता है। वह गर्भपात होने का झूठ बोलती है। फिर पता चलता है कि वह मां ही नहीं बन सकती और बाउजी की इच्छा पूरी करने के लिए हीर से अलग होने का निर्णय लेती है।
फिल्म की कहानी में हैं काफी दोहराव
फिल्म की शुरुआत रेडियो पर इस प्रेम कहानी को सुनाने से होती है। बीच-बीच में कई दृश्य आते हैं कि जब कहानी को सुनकर लोग हंस रहे हैं या भावुक हो रहे हैं। उसमें काफी दोहराव है। इसकी वजह से कहानी में खलल पड़ता है। फिल्म की शुरुआत ईरा के आइएसएस सपने को पूरा करने की जिद के साथ होती है। उसके बाद बाउजी की इच्छाओं को पूरा करने के दबाव में आ जाती है।
इस दौरान कई ट्विस्ट और टर्न है जो बिल्कुल भी प्रभावी नहीं है। कहानी बिखरी हुई है। रोमांस के सीन हो ड्रामा के इमोशन की कमी साफ झलकती है। फिल्म में अस्पताल में ईरा के आपरेशन थिएटर में होने का दृश्य बेहद बचकाना और जबरन खींचा गया है। कई दृश्य अनावश्यक लगते हैं। हालांकि बीच-बीच में छोटे चाचा और अनाथ चमन की कामेडी हल्के फुल्के क्षण लाती है।
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गुरु रंधावा कुछ खट्टा हो जाए से अपनी अभिनय यात्रा की शुरुआत कर रहे हैं। उनके किरदार में कोई खास पेंच नहीं है। वह मस्तमौला, ईरा और अपने परिवार पर जान छिड़कने वाला इंसान है। ईरा का सपना ही उसका सपना है।
इमोशनल सीन पर गुरु रंधावा को करनी पड़ेगी खासी मेहनत
हीर के किरदार में गुरु मासूम और भोले लगे हैं, लेकिन इमोनशन दृश्यों के लिए उन्हें खासी मेहनत करनी होगी। आइएएस बनने का ख्वाब रखने वाली ईरा की बैकग्राउंड स्टोरी बहुत कमजोर है। ईरा बनी सई सपने को पूरा करने से ज्यादा सुंदर दिखने को लेकर जुनूनी दिखी है। अभिनय की पाठशाला में उन्हें बहुत ज्यादा परिपक्व होने की जरूरत है।
सहयोगी कलाकार की भूमिका में आए अनुपम खेर, अतुल श्रीवास्तव, परेश गणात्रा, ईला अरुण और पारितोष त्रिपाठी अपनी अदायगी से फिल्म की बोझिलता को कम करने का प्रयास करते हैं। हालांकि कमजोर पटकथा की वजह से वह भी उसे साध नहीं पाते। बाउजी की भूमिका में अनुपम खेर जोश से लबरेज नजर आते हैं। फिल्म के आखिर में उनका संवाद है कि बच्चा पैदा नहीं होता और हमारी इच्छाएं पैदा हो जाती हैं।
गलत है बच्चों पर अपनी इच्छाएं थोपना। फिल्म का संदेश प्रभावी है लेकिन परदे पर देखते हुए निराश होती है। सिनेमेटोग्राफर आर एम स्वामी ने आगरा की खूबसूरती को कैमरे में कैद किया है। गुरु के साथ मीत ब्रो, साधु तिवारी, नीलेश आहूजा ने फिल्म का संगीत दिया है। उसके बावजूद प्रभावी नहीं बन पाया है। खट्टी मीठी इस कहानी का विषय अच्छा था लेकिन कमजोर लेखन और निर्देशन की वजह से यह खट्टी ज्यादा हो गई।
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