Move to Jagran APP

Lantrani Review: लंतरानी बहुत हुई... पुलिस, प्रशासन और मीडिया को आईना दिखाती तीन कहानियां

Lantrani Review लंतरानी तीन शॉर्ट फिल्मों की एंथॉलॉजी है जिसमें कहानियों के जरिए ग्रामीण प्रशासनिक व्यवस्थाओं और समाज की सोच पुलिस प्रशासन और मीडिया पर टिप्पणी की गई हैं। इन कहानियों में जॉनी लीवर जिशु सेनगुप्ता जीतेंद्र कुमार और निमिशा सजायन ने प्रमुख किरदार निभाये हैं। तीनों कहानियों का निर्देशन कौशिक गांगुली भास्कर हजारिका और गुरविंदर सिंह ने किया है।

By Manoj Vashisth Edited By: Manoj Vashisth Updated: Sat, 10 Feb 2024 02:46 PM (IST)
Hero Image
लंतरानी जी5 पर रिलीज हो गई है। फोटो- इंस्टाग्राम
एंटरटेनमेंट डेस्क, नई दिल्ली। Lantrani Review: ओटीटी स्पेस ने ऐसी कहानियों को खूब जगह दी है, जिनमें देश के ग्रामीण इलाकों, कस्बों और छोटे शहरों में रहने वालों की समस्याओं, सोच और समाज को दिखाया जाता है। पंचायत जैसे शोज के जरिए किसी गांव की प्रशासनिक व्यवस्था को व्यंगात्मक नजरिए से दिखाया गया है।

इसी सिलसिले को आगे बढ़ाते हुए अब जी5 पर एंथॉलॉजी फिल्म लंतरानी आई है। हिंदी इलाकों से आने वाले लोग लंतरानी का मतलब बखूबी जानते होंगे। बड़ी-बड़ी बातें करने या फेंकने को लंतरानी कहा जाता है।

जी5 की फिल्म का शीर्षक तीन अलग-अलग कहानियों को जोड़ता है, जो छोटे कस्बों की हकीकत और सब कुछ ठीक होने का दावा करने वालों का लंतरानी दिखाती हैं। इन तीन फिल्मों को कौशिक गांगुली, गुरविंदर सिंह और भास्कर हजारिया ने निर्देशित किया है। लंतरानी की तीन कहानियां समाज के जरूरी अंगों पुलिस, ग्रामीण प्रशासनिक व्यवस्था और मीडिया पर कमेंट करती हैं।

यह भी पढ़ें: OTT Releases This Week- 'आर्या 3 पार्ट-2' से 'भक्षक' तक, इस हफ्ते ओटीटी पर आ रहीं ये फिल्में और वेब सीरीज

हुड़ हुड़ दबंग

कौशिक गांगुली निर्देशित कहानी हुड़ हुड़ दबंग में जॉनी लीवर और जिशु सेनगुप्ता ने मुख्य भूमिकाएं निभाई हैं। जॉनी लीवर एक उपेक्षित पुलिसकर्मी के किरदार में हैं, जो सालों से डेस्क पर काम कर रहा है, लेकिन उसके जीवन में अहम मोड़ आता है, जब उसे एक कैदी को तारीख के लिए अदालत ले जाने की जिम्मेदारी दी जाती है, क्योंकि पुलिस का सारा अमला नगर में आने वाली एक वीआईपी के बंदोबस्त में लगा है।

जॉनी को इसके लिए एक पिस्तौल और एक गोली दी जाती है, जो उसके लिए बड़ी उपलब्धि होती है। कोर्ट ले जाते हुए रास्ते में इन दोनों के बीच संवाद और जो घटनाएं होती हैं, वो नजरिया बदलने वाली होती हैं।

इस कहानी को देखते हुए राजकुमार संतोषी की खाकी की याद आती है, जिसमें उम्रदराज पुलिस अफसर अमिताभ बच्चन की टीम को एक आतंकवादी को तारीख के लिए दूसरे शहर ले जाना होता है।

हालांकि, खाकी का स्केल बड़ा था, मगर कमोबेश कहानी का मिजाज कुछ यही था। लम्बे समय तक कॉमेडी करते रहे जॉनी लीवर ने छोटे शहर के पुलिसकर्मी के किरदार से चौंकाया है। वहीं, जिशु ने कैदी के किरदार के भावनात्मक उतार-चढ़ाव को बखूबी पेश किया है।

रेटिंग: ***

धरना मना है

धरना मना है के निर्देशक गुरविंदर सिंह हैं। इस कहानी में जितेंद्र कुमार और मलयालम अभिनेत्री निमिशा सजायन लीड रोल्स में हैं। निमिशा का किरदार दलित समाज की पंचायत सदस्य का है।

पहली बार चुने जाने के बाद निमिशा काम करना चाहती है, मगर दूसरे लोगों का पूर्वाग्रह उसे काम नहीं करने देतीं। इसके खिलाफ बेरीपुर के जिला विकास अधिकारी (डीडीओ) कार्यकाल के बाहर धरने पर बैठ जाती है। इसमें उसे अपने पति जितेंद्र कुमार का साथ मिलता है। यह फिल्म व्यंगात्मक कहानी दिखाती है।

छोटे कस्बों के किरदार निभाने के एक्सपर्ट बन चुके जितेंद्र इस रोल में जमते हैं। उन्होंने निमिशा का बराबर साथ दिया है। हालांकि, कहानी का पेस धीमा होने की वजह से इसे देखने के लिए धैर्य चाहिए। 

रेटिंग: **

सैनिटाइज्ड समाचार

सैनिटाइज्ड समाचार कहानी का निर्देशन भास्कर हजारिका ने किया है। इस कहानी की पृष्ठभूमि कोविड काल में सेट की गई है और तंगी से जूझते एक समाचार चैनल को दिखाया है, जिसकी स्टार एंकर कोविड हो जाने की वजह से क्वारंटीन में है।

ऐसे समय में चैनल के सामने एक सैनिटाइजर कोविनाश को प्रमोट करने का प्रस्ताव आता है। चैनल किस तरह इसके जरिए अपनी आर्थिक समस्याएं दूर करने के लिए समाचारों के साथ समावेश करता है, इस पर कहानी आधारित है।

यह भी पढ़ें: Love Storiyaan Trailer- प्यार के लिए पहुंच गई काबुल, सीमा हैदर जैसी हैं रियल लाइफ की यह छह 'लव स्टोरियां'

इस कहानी के जरिए मीडिया के व्यावसायिकरण, समाचारों के मैनिपुलेशन और फेक न्यूज पर तंज कसा गया है। यह कहानी मीडिया को लेकर चलने वाली बहसों को देखते हुए प्रासंगिक है। सवाल खड़ा करती है कि क्या मीडिया को भी सैनिटाइज करने की जरूरत है, जैसा कि इसका टाइटल कहता है। बोलोराम दास, प्रीति हंसराज शर्मा और आदित्य पांडेय ने किरदारों के साथ न्याय किया है।

रेटिंग: **1/2

कैसी है लंतरानी?

एंथॉलॉजी फिल्मों में ऐसा अक्सर होता है कि कुछ कहानियां पकड़कर रखती है और कुछ अपने कथ्य, अभिनय या बहाव के कारण शिथिल रह जाती हैं। लंतरानी के साथ भी ऐसी कमजोरियां हैं, लेकिन अगर एंथॉलॉजी फिल्में पसंद हैं और देखने के लिए कुछ अन्य खास नहीं है तो लंतरानी को ट्राई किया जा सकता है। 

यह भी पढ़ें: February OTT Movies- ओटीटी पर इस महीने कॉमेडी, हॉरर और दहशत का राज, 'भक्षक' समेत रिलीज हो रहीं इतनी फिल्में