पहली बार क्षेत्रीय घटकों को एकजुट होकर सरकार बनाना, पड़ोसी मुल्क के साथ दोस्ती को लेकर लाहौर की बस यात्रा, पड़ोसी का पीठ में छुरा घोंपना और कारगिल युद्ध होना। सबसे अहम परमाणु बम का परीक्षण। इन अहम घटनाक्रमों पर हिंदी सिनेमा में समय-समय पर कई फिल्में भी बनीं।
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इन घटनाक्रमों के प्रत्यक्षदर्शी होने के साथ इनमें देशहित में कई अहम फैसले लेने वाले भारत रत्न और
पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी भी रहे। उनके जीवन सफर पर आधारित फिल्म
मैं अटल हूं उनके कवि हृदय और कठोर निर्णयों का खाका है। इन फैसलों ने देश को मजबूत बनाने में अहम भूमिका अदा की।
यह फिल्म सारंग दर्शने की मराठी किताब
अटलजी: कविहृदयाच्या राष्ट्रनेत्याची चरितकहाणी से प्रेरित है। फिल्म में अटल जी के जीवन के सभी महत्वपूर्ण घटनाक्रमों को कहानी में पिरोया गया है।
बचपन, प्रेम और राजनीति
आरम्भ अटल बिहारी (
पंकज त्रिपाठी) के प्रधानमंत्री रहते हुए पाकिस्तान द्वारा कारगिल में घुसपैठ की खबरों को लेकर चर्चा से होता है। अटल कहते हैं, हम शांति चाहते हैं, यह दुनिया ने देख लिया है। उस शांति की रक्षा के लिए हम क्या कर सकते हैं, दुनिया अब यह देखेगी।यह भी पढ़ें:
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यह 'कवि अटल' के साथ
'देशप्रेमी प्रधानमंत्री अटल' के व्यक्तित्व का परिचय देती है। वहां से कहानी उनके बचपन की ओर आती है। मंच पर कविता पढ़ने को लेकर उनके डर को पिता दूर करते हैं। फिर युवावस्था में कालेज की सहपाठी राजकुमारी (
एकता कौल) संग उन्हें प्रेम होता है।
यह लम्बा नहीं चलता, पर दिल की गहराई में उतरता है। अटल वकालत की पढ़ाई करने कानपुर जाते हैं। खास बात यह है, जब अटल वकालत की पढ़ाई करने जाते हैं, तब उनके पिता भी उनके सहपाठी होते हैं। दोनों हॉस्टल के एक ही कमरे में रहते हैं। वहां से कहानी उनके वकालत की पढ़ाई अधूरी छोड़ने और उनके राजनीतिक यात्रा पर जाती है।अपनी कविताओं से गहरी बात कहना कि सुनने वालों के मुंह बंद हो जाएं, यह अटल बिहारी वाजपेयी के व्यक्तित्व की खासियत थी। देशहित में अपने नाम की तरह वह अपने कठोर निर्णयों पर अटल रहे।
सादगी लिपटी में असाधारण कहानी
राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता
रवि जाधव द्वारा निर्देशित यह फिल्म बगैर किसी ताम-झाम और शोशेबाजी के अटल बिहारी वाजपेयी के व्यक्तित्व के साथ जीवन सफर को सपाट अंदाज में दर्शाती है। रवि जाधव के साथ ऋषि विरमानी ने फिल्म की कहानी, स्क्रीनप्ले और डायलॉग्स लिखे हैं।कहीं-कहीं संवाद बेहद चुटीले हैं। अटल के जीवन के अहम अध्यायों को शामिल करने के प्रयास में घटनाक्रम बहुत तेजी से भागते हैं। इस दौरान हम उन की आदर्शवादी छवि के पीछे के कारणों, संघ से जुड़ाव, देशप्रेम, दृढ़ता और कविता से लगाव से परिचित होते हैं।
इनके बीच पंडित दीन दयाल उपाध्याय, श्यामा प्रसाद मुखर्जी जैसे अन्य पात्र आते हैं, जिनका उनके जीवन पर प्रभाव रहा। वहीं, लाल कृष्ण आडवाणी, प्रमोद महाजन की निकटता भी दर्शायी गई है। यह फिल्म विभाजन की विभीषिका, आपातकाल के हादसों और फैसलों से रोंगटे खड़े नहीं करती,क्योंकि फिल्मकार गतिविधियों को किनारे से देखते हैं।
फिल्म टुकड़ों-टुकड़ों में आकर्षित करती है। कारगिल युद्ध, परमाणु परीक्षण जैसे महत्वपूर्ण घटनाक्रमों को चित्रित करने में कोई तनाव या कौतूहल नहीं है। यह सवांदों में निपटा दिये गये हैं।
किरदार में डूब गये पंकज त्रिपाठी
बहरहाल, इस चुनौतीपूर्ण भूमिका में
पंकज त्रिपाठी को देखना सिनेमाई अनुभव है। उन्होंने चारित्रिक भाषा के साथ उसकी बॉडी लैंग्वेज को भी आत्मसात करने का प्रयास किया है। वह अटल की सोच, मनोदशा और कवि ह्रदय को असरदार तरीके से पेश करते हें।
फिल्म में
'गीत नया गाता हूं' समेत अटल की कई विख्यात कविताओं को सुनना अच्छा लगता है। उनकी प्रेमिका के रूप में एकता कौल का चयन सटीक है। पिता की भूमिका में पीयूष मिश्रा जंचते हैं। लाल कृष्ण आडवाणी और सुषमा स्वराज्य के किरदार लाउड हो गए हैं।
अवधि: दो घंटे 19 मिनट