Move to Jagran APP

MKDNH Movie Review: मर्द के दर्द पर अनोखा प्रयोग, मिले इतने स्टार्स

Mard Ko Dard Nahi Hota Movie Review - वासन बाला की मर्द को दर्द नहीं होता एक ऐसा ही ओरिजनल प्रयोग है जहां कहानी पृष्ठभूमि फिल्म के कलाकारों और फिल्म के ट्रीटमेंट के साथ पूरी ईमानदारी बरती गयी है.

By Manoj KhadilkarEdited By: Updated: Tue, 19 Mar 2019 11:54 AM (IST)
MKDNH Movie Review: मर्द के दर्द पर अनोखा प्रयोग, मिले इतने स्टार्स
अनुप्रिया वर्मा

फिल्म : मर्द को दर्द नहीं होता

स्टारकास्ट : राधिका मदान, अभिमन्यु दसानी, गुलशन देविहा, महेश मांजरेकर

निर्देशक और लेखक : वासन बाला

निर्माता : आरएसवीपी

रेटिंग : 3.5 स्टार

ओरिजनल, एक्शन, ड्रामा, कॉमेडी, एंटरटेनर. पांच शब्दों में कहें तो डायरेक्टर वासन बाला की डेब्यू फिल्म मर्द को दर्द नहीं होता इन पांच श्रेणियों को ही परिभाषित करता है. सबसे पहले रॉनी स्क्रूवाला बधाई के पात्र हैं कि उनके होम प्रोडक्शन से लगातार ऐसी एक्सपेरिमेंटल फिल्में दर्शकों के सामने आ रही हैं. एक्सपेरिमेंटल सिनेमा का मतलब है कि वे फिल्में बहुत ज्ञानवर्धक और सामाजिक मुद्दों से ही लबरेज होती हैं. उन्हें मर्द को दर्द नहीं होता को लेकर अपनी गलतफहमी नहीं रखनी चाहिए. चूंकि यकीनन वासन ने अपनी पहली ही फिल्म में कई प्रयोग किये हैं, लेकिन यह फिल्म न तो ऊबाऊ है और न ही कोई ज्ञान बघारने की कोशिश करती है.

वासन बाला की मर्द को दर्द नहीं होता, एक ऐसा ही ओरिजनल प्रयोग है, जहां कहानी, पृष्ठभूमि, फिल्म के कलाकारों और फिल्म के ट्रीटमेंट के साथ पूरी ईमानदारी बरती गयी है. इस फिल्म से वासन बाला के साथ फिल्म के नायक अभिमन्यु दसानी की भी बॉलीवुड एंट्री हो रही है. जबकि फिल्म की अभिनेत्री राधिका एक फिल्म पुरानी हीरोइन हैं. शायद यह वजह भी है कि फिल्म में वह ऊर्जा और नयापन नजर आया है, जो कि फिल्म को और अधिक दिलचस्प बना रहा है. वासन ने फिल्म की कहानी वाचन का तरीका नैरेटिव रखा है, जहां सूर्या (अभिमन्यु) पूरी कहानी अपने नजरिये से प्रस्तुत करते हैं.

कहानी सूर्या, सूप्री, सूर्या के नाना और उनके कर्राटे मास्टर की जिंदगी के इर्द-गिर्द घूमती है. सूर्या को दर्द नहीं होता और अपनी बीमारी को ही वह किस दिलचस्प अंदाज में अपनी ताकत बनाता है और कहानी में किस तरह दिलचस्प मोड़ आते हैं. यह इस फिल्म की खूबी है. फिल्म में एक् शन कॉमेडी लव स्टोरी भी है. इन सबके बीच सूर्या का ब्रूस ली प्रेम और फिर कर्राटे मास्टर बनने का सपना, कहानी में दिलचस्प मोड़ लाते हैं. वासन का मुख्य किरदार सूर्या कांजिनेटियल इनसेंसिटिवीटी टू पेन नामक बीमारी से ग्रसित है, जिसमें उसे कितनी भी चोट लगने के बावजूद दर्द नहीं होता है. फिल्म के शुरुआती कुछ दृश्यों में जिस तरह मुख्य किरदार के साथ एक के बाद एक ट्रेजेडी होती है.

यह भी पढ़ें: Box Office : इस होली पर अक्षय कुमार की केसरी, पहले दिन इतने करोड़ का अनुमान

आप यह कयास लगा सकते हैं कि फिल्म में आगे चल कर निर्देशक मुख्य किरदार के साथ दर्शक की सहानुभूति लूटने की कोशिश करने वाला है. लेकिन कुछ दृश्यों के बाद ही निर्देशक अपना वीजन स्पष्ट कर देता है कि वह सहानुभूति के लिए फिल्म नहीं बना रहे हैं. वासन और मुकेश छाबड़ा की टीम की तारीफ इस लिहाज से भी होनी चाहिए कि मुख्य किरदारों के साथ-साथ जिन कैरेक्टर किरदारों का चयन उन्होंने किया है. वह सटीक है. राधिका और अभिमन्यु के अलावा महेश मांजरेकर और गुलशन देविया के दमदार किरदार को फिल्म में नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है. इन सभी किरदारों ने मुख्य किरदार और कहानी को खूबसूरती से सपोर्ट किया है. वासन ने एक साथ कई कहानियों और किरदारों को खूबसूरती से न सिर्फ पिरोया है, बल्कि कहानी को दर्शकों के सामने रियलिस्टिक अप्रोच के साथ प्रस्तुत किया है.

वासन ने अनुराग कश्यप के साथ कई फिल्मों में अस्टिट किया है. लेकिन यह उनकी काबिलियत है कि इस फिल्म में कहीं भी अनुराग की मेकिंग की छवि नजर नहीं आती है. भले ही फिल्म के रियलिस्टिक लोकेशन आपको अनुराग की फिल्मों की याद दिला सकते हैं. लेकिन वासन ने बखूबी से फिल्म के ट्रीटमेंट में अपनी एक अलग छवि प्रस्तुत की है. फिल्म देखते हुए जितने ट्वीस्ट और टर्न आते हैं और जैसी अनोखी ट्रीटमेंट दी गयी है, आपको अपने बचपन के उन कॉमिक्स की याद आयेगी, जिसमें भरपूर एक्शन होता था और थ्रीलर भी, जिसमें हीरो का सेंस ऑफ हयूमर भी कमाल का होता था. अमूमन किसी बीमारी पर बनी बॉलीवुड फिल्मों में बेवजह ड्रामा क्रियेट करने की कोशिश में कई बार निर्देशक मुख्य किरदार को बेवजह असहाय और लाचार दिखाने की कोशिशें करते हैं. वासन ने ऐसा नहीं किया है. अमूमन बॉलीवुड पर यह आरोप लगते रहते हैं कि वो एक यूनिक कांसेप्ट और वास्तविक कहानियों के साथ नहीं आते और हॉलीवुड के एक्शन दृश्यों की नकल करने के लिए आतुर रहते हैं.

मर्द को दर्द नहीं होता, उन सभी के लिए एक सटीक जवाब है, जहां आप वाकई में फिल्म के नायक-नायिका को एक्शन करते देख रहे हैं. आपको जानकर ताज्जुब होगा, मगर यह फिल्म अभिमन्यु के लिए इसलिए भी देखी जानी चाहिए, क्योंकि अभिमन्यु ने बिना किसी बॉडी डबल के फिल्म के सारे स्टंट खुद किये हैं. इसके लिए उन्होंने काफी मेहनत की है और उनकी वह मेहनत परदे पर साफ नजर आती है. वासन ने यह सोच कर कि फिल्म के हीरो की यह पहली फिल्म है, उसे कोई ग्रैंड लांचिंग देने के लिए अभिनेत्री के साथ अन्याय नहीं किया है. राधिका मदान के हिस्से में भी बराबरी के दृश्य हैं और स्टंट हैं. पटाखा की बजाय अगर वह इस फिल्म से अपना डेब्यू करतीं तो निश्चित तौर पर उन्हें लेडी एक्शन हीरोइन का खिताब मिल जाता. उन्होंने काफी वास्तविकता से फिल्म में अपने हिस्से के एक्शन दृश्य किये हैं.

फिल्म की कहानी गुलशन देविहा बगैर अधूरी है, जिन्होंने दोहरी भूमिका निभाई है. एक जो कि कराटे मास्टर हैं, लेकिन दिब्यांग है. वहीं दूसरा क्रीमनल है. दोनों के बीच जो परिस्थितियां उत्पन्न होती है, वह आपको पूरी तरह से मनोरंजन देती है. वही महेश मांजरेकर ने भी अपने संवादों से दर्शकों का भरपूर मनोरंजन किया है.

और अंत में बताते चलें कि अभिमन्यु, मैंने प्यार किया फेम भाग्यश्री के बेटे हैं. मगर फिल्म में उनके हुनर को देखने के बाद उन्हें इस बायोडाटा की जरूरत नहीं होगी. निस्संदेह अन्य स्टार किड की तरह वह इस फिल्म में आपको डांस नंबर या बॉडी दिखाते, लव सॉंग गाते नजर नहीं आयेंगे, बल्कि अभिनय को लेकर उनकी संजीदगी आपको साफ नजर आयेगी. अभिमन्यु इस लिहाज से भी बधाई के पात्र हैं कि स्टार किड होने के बावजूद उन्होंने ऐसी प्रयोगात्मक कहानी से डेब्यू करने का निर्णय लिया. इस फिल्म को पांच में से साढ़े 3 स्टार मिलते हैं l