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Mr And Mrs Mahi Review: क्रिकेट के लिए जुनून की कहानी मियां-बीवी की कलह पर अटकी, कहां बिगड़ा संतुलन?

मिस्टर एंड मिसेज माही ऐसे पति-पत्नी की कहानी है क्रिकेट जिनका जुनून है। मिस्टर माही अपने पारिवारिक कारणों से क्रिकेटर नहीं बन पाते तो अपनी पत्नी को क्रिकेटर बनाने की कोशिश करते हैं। फिल्म का निर्देशन शरण शर्मा ने किया है। राजकुमार राव जाह्नवी कपूर और कुमुद मिश्रा मुख्य भूमिकाओं में हैं। मिस्टर एंड मिसेज माही के सामने बॉक्स ऑफिस पर सावी है।

By Jagran News Edited By: Manoj Vashisth Updated: Fri, 31 May 2024 03:06 PM (IST)
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मिस्टर एंड मिसेज माही रिलीज हो गई है। फोटो- इंस्टाग्राम
स्मिता श्रीवास्तव, मुंबई। कई बार माता-पिता के दबाव की वजह से बच्‍चों के सपने दबे रह जाते हैं। ऐसे में वे कुंठाग्रस्‍त रहते हैं। जीवन के साथ समझौता कर लेते हैं, लेकिन जीवन का चक्र कई बार उन्‍हें ऐसे मोड़ पर ले आता है, जहां से वह दूसरों के जरिए अपने सपनों को पूरा करने का रास्‍ता तलाश लेते हैं।

ऐसे ही क्रिकेट और शादी के गठजोड़ पर फिल्‍म मिस्‍टर एंड मिसेज गढ़ी गई है। शरण शर्मा द्वारा निर्देशित यह फिल्म खेल के बारे में है, लेकिन यह वैवाहिक कलह की कहानी में बदल जाती है, जब विफल महत्वाकांक्षाएं दबी हुई भावनाओं से टकराती हैं। लेखन स्‍तर पर कमजोर होने की वजह से मिस्‍टर और मिसेज दोनों कन्फ्यूज नजर आते हैं।

क्या है Mr. And Mrs. Mahi की कहानी?

महेंद्र अग्रवाल ऊर्फ माही (राजकुमार राव) क्रिकेटर बनना चाहता है। उसके लिए उसने अपने पिता हरदयाल अग्रवाल (कुमुद मिश्रा) से दो साल का समय मांगता है। उनकी खेलों का सामान बेचने की दुकान है। महेंद्र का टीम में चयन नहीं हो पाता। पिता के दबाव की वजह से वह क्रिकेटर बनने का सपना छोड़ देता है।

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पेशे से डाक्‍टर महिमा गुप्‍ता (जाह्नवी कपूर) से उसकी अरेंज मैरिज होती है। शादी की पहली रात उसे पता चलता है कि महिमा भी क्रिकेट की शौकीन है। क्रिकेट के प्रति महेंद्र के लगाव को देखते हुए महिमा उसे क्रिकेट में फिर से हाथ आजमाने के लिए प्रोत्‍साहित करती है।

महेंद्र अपने कोच बेनी दयाल शुक्‍ला (राजेश शर्मा) से मिलने जाता है, लेकिन उनकी उम्‍मीदों पर खरा नहीं उतरता। बेनी अपने पुराने शिष्‍य को कोच बनने का सुझाव देते हैं। महेंद्र इन्‍कार कर देता है। उसी दौरान मैदान पर वह महिमा को चौके-छक्‍के लगाते देखकर चौंकता है। उसे क्रिकेटर बनने को प्रोत्‍साहित करता है। वह उसका कोच बन जाता है।

महिमा का राज्‍य स्‍तर की टीम में चयन भी हो जाता है। महेंद्र को लगता है कि यहां से उसे शोहरत मिलेगी, पर वैसा नहीं होता। उसका असर उनके वैवाहिक जीवन पर पड़ने लगता है।

कहानी अच्छी, कमजोर किरदार

निखिल मल्‍होत्रा और शरण शर्मा द्वारा लिखी गई कहानी का विषय अच्‍छा है, लेकिन खेल के मैदान के अंदर और बाहर क्रियाओं और प्रतिक्रियाओं का संतुलन साध नहीं पाए हैं। शरण शर्मा निर्देशित इस फिल्‍म में सबसे बड़ी समस्‍या किरदार के गढ़ने और निर्वहन में है।

हरदयाल खेलों का सामान बेचते हैं, क्रिकेटरों साथ फोटो अपनी दुकान पर लगवा रखी है, लेकिन बेटे के क्रिकेटर बनने के खिलाफ क्‍यों है? उसकी वजह स्‍पष्‍ट नहीं है। शुरुआत में महेंद्र कोच बनने से इन्‍कार कर देता है। उसे लगता है कि कोच की कोई इज्‍जत नहीं होती। उसे कोई नहीं पूछता। एक क्रिकेटर की कोच के प्रति यह सोच अविश्‍वसनीय है।

प्रसिद्ध होने के लिए महेंद्र का उल-जलूल रील बनाना हास्‍यापद है। महिमा ने मेडिकल परीक्षा में टॉप किया है। एमबीबीएस डाक्‍टर है और अपना क्‍लीनिक खोलने की तैयारी में है। बचपन में वह गली-मुहल्‍ले में क्रिकेट खेलती थी। अर्से तक क्रिकेट से दूर रहने के बावजूद वह महेंद्र के कहने पर क्रिकेटर बनने को राजी हो जाती है, जबकि उसकी अभूतवूर्प प्रतिभा का कहीं भी जिक्र नहीं मिलता।

उसका क्रिकेट के प्रति लगाव और जुनून स्‍थापित करने में लेखक चूक गए हैं। फिल्म में महिमा की टीम के सदस्य और उसके विरोधी भी केवल सहायक मात्र हैं। फिल्‍म के क्‍लाइमेक्‍स में महिला क्रिकेटरों का मैच है।

फिल्म चाहे जितनी भी कोशिश करे रोमांच या ड्रामे के मार्चे पर खरी नहीं उतरती। महिमा और उसके पति के लिए चीजें कैसे बदल जाएंगी, इसका पूर्वानुमान लगाना बेहद आसान है। मीडिया की कार्यशैली दिखाने को लेकर फिल्‍ममेकर्स को खास तौर पर काम करने की जरूरत है।

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काम नहीं आया कलाकारों का अभिनय

राजकुमार राव और जाह्नवी कपूर की जोड़ी इससे पहले हॉरर कामेडी फिल्‍म रूही में नजर आई थी। राजकुमार मंझे अभिनेता हैं। वह किसी भी भूमिका को अपने अभिनय से विश्‍वसनीय बना देते हैं। हालांकि, यहां पर कमजोर कहानी की वजह से वह उसे संभाल नहीं पाते।

जाह्नवी भावनात्‍मक दृश्‍यों में संघर्ष करती नजर आती हैं। उन्‍होंने भले ही स्‍क्रीन पर क्रिकेट की तैयारी के लिए तमाम तैयारी की, लेकिन क्रिकेट खेलते हुए वह कहीं से प्रभावी नहीं लगती। राजकुमार के साथ उनके आपसी तकरार के दृश्‍य भी असर नहीं छोड़ते।

पिता की भूमिका में कुमुद मिश्रा अवश्‍य प्रभावित करते हैं। मां की भूमिका में जरीना वहाब हैं। उनका किरदार भी अधपका है। भाई का किरदार फिल्‍म में ना भी होता तो कोई फर्क नहीं पड़ता। फिल्‍म का गीत संगीत सिनेमाघर से बाहर आने के बाद याद नहीं रहता।