Mujib Review: बांग्लादेश के संस्थापक मुजीबुर्रहमान की जिंदगी पर्दे पर लाये श्याम बेनेगल, दहलाता है क्लाइमैक्स
Mujib Movie Review बांग्लादेश 1971 की लड़ाई के बाद पाकिस्तान से आजाद हुआ था लेकिन इसके कुछ साल बाद ही इस देश ने एक बड़ी राजनैतिक हत्या देखी जिसे फौज ने अंजाम दिया। बांग्लादेश के संस्थापक कहे जाने वाले शेख मुजीबुर्रहमान को उनके परिवार और सहयोगियों के साथ क्रूरतापूर्वक मौत के घाट उतार दिया गया था।
By Manoj VashisthEdited By: Manoj VashisthUpdated: Thu, 26 Oct 2023 02:20 PM (IST)
स्मिता श्रीवास्तव, मुंबई। प्रख्यात हस्तियों की जिंदगी और संघर्ष को सिनेमा हमेशा से ही प्रमुखता देता आता है। अब बांग्लादेश के संस्थापक शेख मुजीबुर्रहमान की जिंदगानी को विख्यात फिल्ममेकर श्याम बेनेगल ने पर्दे पर उतारा है।
‘मुजीब’ का निर्माण राष्ट्रीय फिल्म विकास निगम (एनएफडीसी) और बांग्लादेश फिल्म विकास निगम (बीएफडीसी) ने संयुक्त रूप से किया है। कहानी का आरम्भ पाकिस्तान में जेल में नौ महीने तक तकलीफें सहने के बाद शेख मुजीबुर्रहमान (अरिफिन शुवू) के स्वदेश लौटने से होता है।
वो अपने देशवासियों को बताते हैं कि जेल में ही उनकी कब्र खोद दी गई थी। उन्हें फांसी देने की तैयारी थी। वहां से कहानी उनके बचपन में आती है। बचपन में ही उनकी शादी तय हो गई थी। वहां से उनके राजनीतिक जीवन की शुरुआत से लेकर बांग्लादेश की स्वाधीनता को लेकर उनके सफर और संघर्ष को दिखाती है।
क्या है मुजीब की कहानी?
साल 1947 में देश विभाजन के बाद पाकिस्तान दो हिस्सों पश्चिमी पाकिस्तान और पूर्वी पाकिस्तान में बंट गया था। 1943 में मुजीब बंगाल मुस्लिम लीग के सदस्य बने। पूर्वी पाकिस्तान बांग्ला को राष्ट्र भाषा बनाने की मांग कर रहा था, जिसे कायदे आजम मुहम्मद अली जिन्ना ने सिरे से नकार दिया था। तब उन्होंने इसका विरोध किया और मुस्लिम लीग को छोड़ दिया।
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पूर्वी पाकिस्तान की स्वायतत्ता के लिए उन्होंने छह सूत्री मांग की। बांग्लादेश की मुक्ति के तीन साल बाद ही 15 अगस्त 1975 को सेना ने तख्ता पलटकर मुजीबुर्रहमान की बेरहमी से हत्या कर दी। सैन्य अफसर वहीं नहीं रुके। उन्होंने मौत का ऐसा तांडव किया कि शेख मुजीबुर्रहमान के परिवार के सदस्यों को चुन-चुनकर मारा, उनकी पत्नी, उनके बेटे, दोनों बहुएं और दस साल के बेटे तक को नहीं बख्शा।
उनकी दो बेटियां शेख हसीना और रेहाना इसलिए बच गईं, क्योंकि वो उस वक्त जर्मनी में थीं। यही शेख हसीना बाद में बांग्लादेश में चुनाव जीतकर सत्ता पर काबिज हुईं।