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Mumbai Diaries 26/11 Review: हिलने नहीं देगा मेडिकल ड्रामा का रोमांच, मोहित और कोंकणा की बेहतरीन अदाकारी

Mumbai Diaries 26/11 Review मुंबई डायरीज़ 26/11 एक तेज़ रफ़्तार और बांधकर रखने वाली थ्रिलर सीरीज़ होने के साथ-साथ कई विमर्श भी लेकर चलती है जिन्हें सरकारी अस्पताल के विभिन्न कर्मचारियों की कहानियों के सब प्लॉट्स के ज़रिए दिखाया गया है।

By Manoj VashisthEdited By: Updated: Fri, 10 Sep 2021 07:12 AM (IST)
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Mumbai Diaries 26/11 on prime. Photo- Instagram
मनोज वशिष्ठ, नई दिल्ली। एक ऐसा सरकारी अस्पताल, जो सामान्य दिनों में इलाज के लिए ज़रूरी उपकरणों और सुविधाओं से जूझ रहा हो, वहां अगर मुंबई हमले जैसी विकट और दुर्लभ परिस्थिति में गंभीर रूप से ज़ख़्मी मरीज़ दर्जनों की तादाद में एकाएक पहुंचने लगें, तो सोचिए हालात क्या होंगे?

एक ऐसा डॉक्टर, जिसके लिए मरीज़ की जान बचाना अंतिम उद्देश्य हो, भले ही इसके लिए उसे क़ानून तोड़ना पड़े और दिन में पांच बार पुलिस और सीनियरों से उलझना पड़े और जो गोलियों से छलनी पुलिस अफ़सर और बेकसूरों की जान लेने वाले ज़ख़्मी आतंकी में कोई फ़र्क ना देखता हो… ऐसे डॉक्टर की भूमिका को आतंकी हमलों के दौरान समाज और मीडिया किस नज़र से देखेगा?

ब्रेकिंग न्यूज़ की दौड़ में अपना आपा खो चुके न्यूज़ चैनल जब ख़ुद ही आतंकियों के आकाओं के लिए अहम सूचनाओं का स्रोत (अनजाने में ही सही) और सैकड़ों जानों को जोख़िम में डालने का सबब बन जाएं तो ऐसे हालात में नैतिक रूप से किसे ज़िम्मेदार माना जाए?

अमेज़न प्राइम वीडियो पर 9 सितम्बर को रिलीज़ हुई वेब सीरीज़ मुंबई डायरीज़ 26/11 के पन्नों पर ऐसे ही कुछ काल्पनिक हालात की जज़्बाती और रोमांचक दास्तान कही गयी है। 26 नवम्बर 2008 को मुंबई पर हुए आतंकी हमलों को पुलिस, सुरक्षा बलों, चश्मदीदों और पीड़ितों के नज़रिए से पहले भी दिखाया जा चुका है, मगर निखिल आडवाणी और निखिल गोंसाल्विस की जोड़ी ने पहली बार डॉक्टरों, नर्सेज़ और मेडिकल स्टाफ के नज़रिए से पूरी घटना को दिखाया है। हालांकि, अस्पताल के अंदर की बहुत-सी घटनाएं लेखन टीम की कल्पना का परिणाम है। इसीलिए सच्ची घटना से प्रेरित इस सीरीज़ के शीर्षक से लेकर पटकथा तक में 26/11 तारीख़ का तो ज़िक्र है, मगर कहीं भी साल (2008) का ज़िक्र खुलकर नहीं आया है।

 

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मुंबई डायरीज़ 26/11 एक तेज़ रफ़्तार और बांधकर रखने वाली थ्रिलर सीरीज़ होने के साथ-साथ कई विमर्श भी लेकर चलती है, जिन्हें सरकारी अस्पताल के विभिन्न कर्मचारियों की कहानियों के सब प्लॉट्स के ज़रिए दिखाया गया है। मुस्लिम समुदाय को लेकर पूर्वाग्रह, जातिगत व्यवस्था का दंश और दंभ, अपने नामी डॉक्टर माता-पिता से अलग अपनी पहचान बनाने को तत्पर बेटी, सरकारी अस्पताल में भर्ती ग़रीब मरीज़ों की सस्ती सांसों पर भारी पांच सितारा होटल में मौजूद अमीरों की ज़िंदगी, ब्रेकिंग न्यूज़ की आपाधापी में मीडिया की बेपरवाही, कॉरपोरेट अस्पताल की लग्जूरियस नौकरी छोड़कर असुविधाओं से भरे अस्पताल को चुनने वाला डॉक्टर... ऐसे कई विमर्श हैं, जो मुंबई डायरीज़ 26/11 वेब सीरीज़ के असर को गहरा करते हैं।

कथाभूमि मुंबई के फोर्ट इलाक़े में स्थित बॉम्बे जनरल अस्पताल है और समय सीमा 26-29 नवम्बर है। आतंकी हमलों से 11 घंटे पहले से कहानी शुरू होती है। डॉ. कौशिक ओबेरॉय (मोहित रैना) ट्रॉमा विभाग के हेड हैं। नामी, काबिल मगर मेडिकल ओथ के लिए क़ानून तोड़ने वाले। पुलिस वाले इनकी आदत से परेशान हैं। तीन नये रेज़ीडेंट डॉक्टर अहान मिर्ज़ा (सत्यजीत दुबे), सुजाता अजावले (मृणमयी देशपांडे), दीया पारेख (नताशा शर्मा) डॉ. कौशिक को ज्वाइन करने पहुंचते हैं। डॉ. कौशिक सरकारी अस्पताल छोड़कर एक कॉरपोरेट अस्पताल ज्वाइन करने वाले हैं, ताकि समय की कमी के कारण पटरी से उतरी अपनी शादी-शुदा ज़िंदगी को फिर से पटरी पर ला सकें।

डॉ. चित्रा दास (कोंकणा सेन शर्मा) अस्पताल की सोशल सर्विस विभाग की डायरेक्टर हैं, जो आर्थिक रूप से कमज़ोर मरीज़ों को चिह्नित करने और उनका इलाज करवाने का काम करती हैं। चित्रा अपनी शादी की कड़वी यादों से आज भी जूझ रही है। इनके अलावा हेड नर्स चेरियन, नर्स विद्या, वार्ड बॉय समर्थ, सिक्योरिटी गार्ड वासु अस्पताल के प्रमुख किरदार हैं। डॉ. कौशिक की पत्नी अनन्या घोष है, जो पैलेस होटल में गेस्ट मैनेजर है। सीएसटी, कैफे और पैलेस होटल के साथ बॉम्बे जनरल अस्पताल भी आतंकी हमलों की चपेट में आता है। आतंकियों की अंधाधुंध गोलियों के बीच अस्पताल का स्टाफ पुलिस के साथ मिलकर मरीज़ों की जान बचाता है और इस दौरान यह अपने-अपने अतीत और आंतरिक संघर्षों से जूझते हुए दिखायी देते हैं।  

मुंबई में आतंकी हमलों की कहानी सबको बता है। समाचार माध्यमों, फ़िल्मों और विभिन्न सीरीज़ के ज़रिए हमलों के विभिन्न पहलुओं को दर्शक देखते रहे हैं, मगर मुंबई डायरीज़ 26/11 में जिस तरह आतंकी हमलों की सच्ची घटना को एक सरकारी अस्पताल के अंदर होने वाले विभिन्न घटनाक्रमों के साथ बुना गया है, उसके लिए लेखन टीम की तारीफ़ करनी होगी।

8 एपिसोड्स की सीरीज़ के स्क्रीनप्ले को मुख्य रूप से दो ट्रैक्स में बांटा गया है- अस्पताल पर आतंकी हमले का घटनाक्रम और पैलेस होटल पर हमले के दौरान मेहमानों को निकालना। अस्पताल पर आतंकी हमले के ट्रैक को डॉ. कौशिक ओबेरॉय और डॉ. चित्रा दास के पात्र लीड करते हैं, जबकि पैलेस होटल पर हमले के घटनाक्रम को डॉ. कौशिक की पत्नी अनन्या घोष लीड करती है। इसके अलावा एक साइड ट्रैक आतंकी हमलों के दौरान मीडिया की रिपोर्टिंग स्टाइल को दिखाता है, जिसे एक न्यूज़ चैनल की रिपोर्टर मानसी का किरदार लीड करता है। 

 

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निखिल गोंसाल्विस, अनुष्का मेहरोत्रा और यश छेतिजा ने सीमित साधनों वाले एक सरकारी अस्पताल की आंतरिक कार्यशैली को दिखाने में दृश्यों को जिस तरह से गढ़ा है, वो वाकई काबिले-तारीफ़ है। पैलेस होटल में फंसे मेहमानों  डॉक्टर, नर्स और दूसरे मेडिकल स्टाफ के पात्रों का वास्तविक-सा लगने वाला चित्रण इस प्रभाव को और गहरा करता है। अस्पताल पर आतंकी हमले और आतंकियों से मुठभेड़ के दृश्य बेहतरीन हैं। इन दृश्यों को वास्तविकता के क़रीब ले जाने के लिए प्रोडक्शन टीम ने बेहतरीन काम किया है। बीच-बीच में असली फुटेज को भी दृश्यों के बीच समाहित किया गया है, जिससे असली घटना के साथ तारतम्यता बनी रहती है। 

लेखन के बाद मुंबई डायरीज़ 26/11 का दूसरा सबसे मजबूत पक्ष अदाकारी है। हर कलाकार अपने किरदार में पूरी तरह फिट लगा है। डॉ. कौशिक ओबेरॉय के किरदार में मोहित रैना की स्क्रीन प्रेज़ेंस ज़बरदस्त है। सुविधाओं की कमी से जूझते सरकारी अस्पताल में मरीज़ों की जान बचाने को तत्पर एक कर्मठ डॉक्टर के किरदार के लिए जो शारीरिक भाषा और भाव-भंगिमाएं चाहिए, मोहित उस पर बिल्कुल खरे उतरे हैं। उन्हें अदाकारी करते हुए देखना सुकून भरा है। इस किरदार की कई परते हैं। शादी-शुदा ज़िंदगी पटरी से उतरी हुई है और प्रोफेशनल लाइफ़ के दबाव अलग। यह कहना ग़लत नहीं होगा कि मोहित ने इस किरदार को जीया है।

अस्पताल की सोशल सर्विस डायरेक्टर चित्रा दास के किरदार में कोंकणा सेन शर्मा की अदाकारी बेहद सहज है। कोंकणा ने इस किरदार की जटिलता को बड़ी आसानी से पेश किया है। तीनों जूनियर डॉक्टरों के किरदार में सत्यजीत दुबे, मृणामयी देशपांडे और नताशा भारद्वाज की अदाकारी सधी हुई है। इन तीनों की किरदारों की अपनी निजी ज़िंदगी की उलझनें हैं, जिनसे यह जूझ रहे हैं।

ब्रेकिंग न्यूज़ के लिए किसी भी हद तक गुज़रने वाली न्यूज़ चैनल की अति-उत्साही रिपोर्टर मानसी हिरानी के रोल में श्रेया धन्वंतरि जमी हैं। श्रेया की जीत इसी में है कि कुछ मौक़ों पर उनके किरदार से चिढ़ होने लगती है। उनके किरदार के ज़रिए कुछ मीडियाकर्मियों की संवेदनहीनता को उजागर किया गया है। अस्पताल में हाहाकार मचा है, मगर मानसी को ज्वाइंट सीपी और एटीएस चीफ अनंत केलकर के मौत की ख़बर पर अपडेट चैनल को भेजने की फ़िक्र है। ब्रेकिंग न्यूज़ देने की इसी रेस के चक्कर में आतंकवादियों को पता चलता है कि उनके साथी बॉम्बे जनरल हॉस्पिटल में हैं, जिन्हें छुड़वाने के लिए वो अस्पताल पर हमला करते हैं। मीडिया की गैरज़िम्मेदार रिपोर्टिंग के चलते ही घायलों की जान बचाने में जूझने वाले डॉ. कौशिक ओबेरॉय को विलेन बनाकर पेश किया जाता है। न्यूज़ चैनल की एडिटर-इन-चीफ मल्लिका के किरदार में वसुंधरा कौल हैं। इस किरदार को ज़रूर संतुलित दिखाया गया है, जो बिना पुष्टि के ख़बर लाइव नहीं होने चाहती। हालांकि, सीरीज़ में मीडिया के इस पहलू को दिखाते हुए किसी तरह की टिप्पणी नहीं की गयी है। दृश्यों के ज़रिए इसे पेश करके फ़ैसला दर्शकों पर छोड़ दिया गया है।

डॉ. कौशिक ओबेरॉय की पत्नी और पैलेस होटल की गेस्ट मैनेजर अनन्या घोष और के किरदार में टीना देसाई ने ठीक काम किया है। पैलेस होटल से महेमानों को निकालने में इस किरदार की भूमिका काफ़ी अहम दिखायी गयी है। इनके अलावा डॉ. कौशिक के दोस्त और विज़िटिंग डॉक्टर साहिल अग्रवाल के किरदार में मिशाल रहेजा, अस्पताल के सीएमओ डॉ. मणि सुब्रमण्यम के रोल में प्रकाश बेलवाड़ी, चीफ नर्स स्नेहा चेरियन के किरदार में बालाजी गौरी, वार्ड बॉय समर्थ जोशी के रोल में पुष्कराज चिरपुतकर ने अपने किरदारों को बेहतरीन ढंग से जीया है। 

संयुक्ता चावला शेख़ के संवाद व्यहावरिक और टू-द-पॉइंट हैं। कहीं भी बेवजह उपदेश देने की कोशिश नहीं की गयी है। हालांकि, ऐसे दृश्यों की कमी नहीं हैं, जहां देशभक्ति, आदर्शवाद और समुदायों के बीच नफ़रत को लेकर भाषणबाज़ी की जा सकती थी। आतंकियों से लोहा लेते समय पुलिस टीम का अपने शहर के लिए मर मिटने का जज़्बा एसीपी तावड़े के किरदार के ज़रिए बस एक लाइन में दिखाया गया है, जब वो आतंकियों की ओर देखकर चिल्लाता है- यह मेरा शहर है।

वार्ड बॉय समर्थ जोशी आतंकी हमलों के ज़रिए पूरे मुस्लिम समुदाय के प्रति अपनी नफ़रत ज़ाहिर करता है तो अस्पताल में सालों से भर्ती एक पंजाबी महिला परमजीत सिंह (मोहिनी शर्मा) के किरदार के ज़रिए सिख दंगों की याद दिलायी जाती है, जिसके लिए दूसरा समुदाय ज़िम्मेदार था। सिनेमैटोग्राफी ने दृश्यों में जान फूंकी है। बिना कट वाले लम्बे शॉट एक किरदार से होते हुए दूसरे किरदार तक जाते हैं तो दृश्य जंप नहीं होते और प्रवाह बना रहता है। निखिल आडवाणी और निखिल गोंसाल्विस का निर्देशन कसा हुआ है। दृश्यों के संयोजन में निर्देशन का हुनर साफ़ नज़र आता है। 

 

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कलाकार- मोहित रैना, कोंकणा सेन शर्मा, टीना देसाई, सत्यजीत दुबे, मृणमयी देशपांडे, नताशा शर्मा, श्रेया धन्वंतरि, प्रकाश बेलवाड़ी आदि।

निर्देशक- निखिल आडवाणी और निखिल गोंसाल्विस।

निर्माता- एमे एंटरटेनमेंट।

अवधि- 40-50 मिनट प्रति एपिसोड। कुल एपिसोड- 8

रेटिंग- ***1/2 (साढ़े तीन स्टार)