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Munjya Review: मुन्नी तो यूं ही बदनाम हुई, असली मनचला तो निकला 'मुंजा', 'भेड़िया' से जुड़े Munjya के तार

मुंजा दिनेश विजन के प्रोडक्शन की फिल्म है और उनके हॉरर कॉमेडी यूनिवर्स को आगे बढ़ा रही है। इस बार कहानी कोंकण लोक कथा से ली गई है जिसका मुख्य पात्र मुंजा है। यह मुंजा आशिकमिजाज है और अपनी मुन्नी को ढूंढने निकला है। मुन्ना और मुंजा की परलौकिक प्रेम कहानी में बिट्टू और बेला की प्रेम कहानी भी है।

By Jagran News Edited By: Manoj Vashisth Updated: Fri, 07 Jun 2024 12:43 PM (IST)
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मुंज्या सिनेमाघरों में रिलीज हो गई है। फोटो- इंस्टाग्राम
स्मिता श्रीवास्तव, मुंबई। हॉरर फिल्‍मों के साथ इन दिनों कॉमेडी का तड़का भी डाला जा रहा है, ताकि डर के साथ बीच में हल्‍के-फुल्‍के पलों से संतुलन साधा जा सके। निर्माता दिनेश विजन हॉलीवुड की तर्ज पर अपनी हॉरर कॉमेडी फिल्‍मों का यूनिवर्स बनाने की तैयारी में हैं।

स्‍त्री, रूही, भेड़िया के बाद इस कड़ी में 'मुंजा' चौथी फिल्‍म है। इस बार उन्‍होंने महाराष्‍ट्र के कोंकण क्षेत्र की लोककथा को आधार बनाया है। हालांकि, फिल्‍म ना बहुत डरा पाती है, ना ही हंसा पाती है।

Munjya Story: मुन्नी की तलाश में लौटा मुंजा

पुणे में रह रहा बिट्टू (अभय वर्मा) डरपोक स्‍वभाव का है। वह ब्‍यूटी पार्लर चलाने वाली अपनी मां पम्‍मी (मोना सिंह) और आजी यानी दादी (सुहास जोशी) के साथ रहता है। वह विदेश में पढ़ाई करने जाना चाहता है, लेकिन उसकी मां चाहती है कि वह उसका बिजनेस संभाले। फिर गांव में अपने चाचा की बेटी की सगाई के लिए बिट्टू अपनी मां और दादी के साथ गांव जाता है।

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गांव की जमीन को बेचने को लेकर उसकी दादी और चाचा के बीच बहस होती है। चेटूकवाड़ी के नाम से कुख्‍यात इस जगह को श्रापित माना जाता है। मान्‍यता है कि अगर किसी ब्राह्मण लड़के की मुंडन होने के 10 दिनों के भीतर ही मौत हो जाए तो वह ब्रह्मराक्षस यानी मुंजा बन जाता है।

वह सिर्फ अपने खून के रिश्‍तेदारों को दिखता है। उस दौरान बिट्टू को अपने पिता की मौत के बारे में पता चलता है। वह चेटूकवाड़ी पहुंच जाता है। वहां पर मुंजा के बंधन खुल जाते है। दादी उसे बचाने जाती है। मुंजा उसकी जान ले लेता है। अपनी दादी की मौत से दुखी बिट्टू अपनी मां के साथ अपने घर लौटता है। तब उसे पता चलता है, मुंजा उसके साथ है।

वह सूर्यास्‍त के बाद आता है और सूर्योदय के समय गायब हो जाता है। वहां से उसकी ताकतों का अंदाजा होता है। वह मुन्‍नी नामक लड़की को ढूढ़ने को लेकर बिट्टू को प्रताड़ित करता है। वह उससे शादी करना चाहता है। बिट्टू अपने दोस्‍त स्‍पीलबर्ग (तरनजोत सिंह) की मदद से मुन्‍नी को खोजता है।

मुन्‍नी की खोज के बाद मुंजा का दिल बिट्टू की बचपन की दोस्‍त बेला (शरवरी) पर आता है। वह बेला के साथ शादी की जिद करता है। इस दौरान बिट्टू मुंजा से छुटाकारा पाने को लेकर आधुनिक तांत्रिक पडरी (एस सत्‍यराज) के पास मदद के लिए जाता है। वे बेला को झूठ बोलकर गांव लाते हैं। यहां पर शादी होती है या वे उससे छुटकारा पा पाएंगे? कहानी इस संबंध में हैं।

Munjya Screenplay: कहां लड़खड़ाई कहानी?

योगेश चंद्रेकर द्वारा लिखित कहानी में ताजगी है। फिल्‍म मध्यांतर से पहले तेजी से आगे बढ़ती है। इस दौरान बिट्टू के साथ-साथ बेला की जिंदगी से परिचित होते हैं। बेला का अंग्रेज ब्‍वॉयफ्रेंड है। वह उसके साथ अपने रिश्‍ते को आगे बढ़ाने को लेकर बहुत कंफ्यूज है। फिर मुंजा के आने के बाद बिट्टू का जीना हराम हो जाता है। यहां तक फिल्‍म में रोचकता बनी रहती है।

मध्‍यांतर के बाद कहानी लड़खड़ाती है। किरदार बिखरे हुए नजर आते हैं। मुंजा के एक शरीर से दूसरे शरीर में प्रवेश करने के प्रसंग में कोई रोमांच नहीं है। फिल्‍म में हॉरर को पैदा करने के लिए साउंड इफेक्ट्स का प्रयोग हुआ है। वह बहुत प्रभावी नहीं बन पाया है। चेटूकवाड़ी को जितना डरावना संवादों में बताया है, वहां जाने पर वह डर कहीं महसूस नहीं होता। चार मुंजा से छुटकारा दिलाने का दावा करने वाले पडरी का किरदार अधपका है।

पहले वह मुंजा को वश में करने के लिए गोल लक्ष्‍मण रेखा खींच लेते हैं, लेकिन बाद में असहाय नजर आते हैं। कम्प्‍यूटर जेनरेटेड इमेज (सीजीआइ) की मदद से बनाया गया मुंजा गांव में कोई आतंक क्‍यों नहीं मचाता? यह सवाल जेहन में आता है।

शादी की तैयारी के समय मुंजा के साथ बिट्टू के भिड़ंत के दृश्‍य को रोचक बनाने की संभावना थी, उसमें लेखक और निर्देशक चूक गए हैं। बेला के ब्‍वॉयफ्रेंड का मुंजा बुरा हाल करता है। बाद में वह कहानी से गायब नजर आता है।

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Munjya Acting: अभय वर्मा के कंधों पर फिल्म

कलाकारों में बिट्टू बने अभय वर्मा का काम सराहनीय है। फिल्‍म का भार भी उनके कंधों पर है। उन्‍होंने बिट्टू के डरपोक, शर्मीले और दिमाग से तेज पात्र को सहजता से जीवंत किया है। शरवरी खूबसूरत लगी हैं। उनके किरदार और मुंजा के बीच कुछ प्रसंग को डालकर कहानी को रोचक बनाने की संभावना थी।

क्‍लाइमेक्‍स में उनका पात्र बहुत विश्‍वसनीय नहीं बन पाया है। उनका आइटम सॉन्ग आफरी दम आखिरी में प्रमोशनल सांग के तौर पर सामने आता है। सत्‍यराज अपनी भूमिका साथ न्‍याय करते हैं, लेकिन उनका पात्र लेखन स्‍तर पर कमजोर है। फिल्‍म के आखिर में इसे भेड़िया से जोड़ा गया है।