Physics Wallah Web Series Review: पढ़ने और पढ़ाने का फर्क बताती वेब सीरीज श्रीधर दुबे का 'वन मैन शो'
Physics Wallah Web Series Review ओटीटी स्पेस में ऐसे शोज की कमी नहीं है जिनमें शिक्षा और शिक्षकों के बारे में बात की गयी हो मगर फिजिक्स वाला को अभिनय की सादगी और निरंतरता देखने लायक बनाती है। सीरीज छोटे कस्बों की आकांक्षाओं और बगावत को भी रेखांकित करती है।
By Manoj VashisthEdited By: Updated: Sat, 17 Dec 2022 12:37 AM (IST)
मनोज वशिष्ठ, नई दिल्ली। सुपर 30 में विकास बहल ने पटना के कोचिंग संचालक आनंद कुमार की जिंदगी के संघर्ष को दिखाया था। शिक्षा और शिक्षकों पर हिंदी सिनेमा में फिल्में बनती रही हैं, मगर किसी कोचिंग संचालक की यह पहली बायोपिक थी। अब ओटीटी स्पेस में भी यह प्रयोग हुआ है और फिजिक्स वाला ऑनलाइन कोचिंग के संस्थापक अलख पांडेय की बायोपिक अमेजन मिनी टीवी पर आयी है।
6 एपिसोड्स की इस सीरीज का शीर्षक फिजिक्स वाला ही है। यह सीरीज अलख पांडेय के फिजिक्स की पढ़ाई के लिए जज्बे को दिखाती है। सीरीज में अलख का किरदार श्रीधर दुबे ने निभाया है। सीरीज की कहानी अलख के जीवन की घटनाओं पर आधारित है, मगर इसमें ड्रामा डालने का काम समीर मिश्रा के लेखन ने किया है।
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पढ़ने से ज्यादा पढ़ाने का शौक
अलख कानपुर के इंजीनियरिंग कॉलेज में तीसरे साल में पढ़ रहा है, मगर वो दूसरे स्टूडेंट्स की तरह कॉरपोरेट की नौकरी नहीं करना चाहता, जिसमें जिंदगी सिर्फ कोडिंग तक सिमट जाए। यह उस दौर की बात है, जब आइटी सेक्टर का बूम था और इंजीनियरिंग की हर शाखा में पढ़ने वाले स्टूडेंट की मंजिल आइटी कम्पनी में कोडिंग होती थी।बड़ी बहन पर परिवार की जिम्मेदारी है। उसकी आय सीमित है और वो अलख को उसकी जिम्मेदारियों के बारे में बताती है। अलख पढ़ाना ही चाहता है। अपनी मां की सीख से प्रेरित अलख ऐसा टीचर बनना चाहता है, जो उन स्टूडेंट्स को पढ़ाना चाहता है, जिनका ध्यान पढ़ाई की ओर नहीं होता। वो कोचिंग ज्वाइन करता है और अपने सपने को पूरा करने में जुट जाता है।
श्रीधर दुबे की अदाकारी ने डाली जान
सपाट कहानी में जान डालने का काम श्रीधर दुबे की अदाकारी ने किया है। इस किरदार की यात्रा के हिसाब से श्रीधर ने अलख के जीवन के अलग-अलग रंगों को कामयाबी से दिखाया है। स्टूडेंट से लेकर कोचिंग में फिजिक्स का टीचर बनने तक के सफर को श्रीधर ने अपने अभिनय से सजीव किया है। बड़ी बहन के किरदार में राधा भट्ट और दोस्त के रोल में अनुराग ठाकुर ने बराबर साथ दिया है।
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अभिषेक ढांढरिया का निर्देशन सधा हुआ है, मगर कहानी खिंची हुई होने की वजह से इसका असर कम हो जाता है। सपाट से नैरेटिव को पचास-पचास मिनट के छह एपिसोड्स में फैलाना दिलचस्पी कम करता है। हालांकि, किरदारों को उनकी स्थानीयता के हिसाब से गढ़ने और आकार देने में अभिषेक ने अच्छा काम किया है। किरदार कानपुर में हो या इलाहाबाद में, फर्क साफ पता चलता है। निर्देशन में इसका ध्यान रखा गया है। मणिकंदन राममूर्ति ने अपनी सिनेमेटोग्राफी से उत्तर प्रदेश के कस्बों का नब्ज को कामयाबी से कैद किया है, जिससे कहानी को सपोर्ट मिलता है।