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Rocky Aur Rani Kii Pem Kahaani Review: परिवारिक मूल्यों और रोमांस का मेल 'रॉकी और रानी की प्रेम कहानी'

Rocky Aur Rani Kii Pem Kahaani Review करण जौहर निर्देशित रॉकी और रानी की प्रेम कहानी शुक्रवार को सिनेमाघरों में रिलीज हो गयी है। पारिवारिक और रोमांटिक फिल्में बनाते रहे करण ने इस बार इन दोनों जॉनर्स का मेल करवा दिया है। नई और पुरानी पीढ़ी के कलाकारों को एक साथ देखना सुखद अनुभव है। कहानी कुछ जगहों पर खिंची हुई लगती है।

By Manoj VashisthEdited By: Manoj VashisthUpdated: Fri, 28 Jul 2023 12:41 PM (IST)
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Rocky Aur Rani Kii Pem Kahaani Review Staring Ranveer Singh Alia Bhatt. Photo- Instagram
प्रियंका सिंह, मुंबई। Rocky Aur Rani Kii Prem Kahaani Review: 'रॉकी और रानी की प्रेम कहानी' के साथ निर्माता-निर्देशक करण जौहर ने सात साल बाद निर्देशन में वापसी की है। इस बीच उन्होंने ओटीटी के लिए निर्देशन किया, मगर सिनेमाघरों में उनके डायरेक्शन में बनी आखिरी रिलीज 2016 में आयी ऐ दिल है मुश्किल है, जिसमें रणबीर कपूर लीड रोल में थे और अब उनकी वापसी रणवीर सिंह के साथ हुई है। 

पारिवारिक फिल्म कभी खुशी कभी गम और कुछ कुछ होता है, कभी अलविदा ना कहना, ऐ दिल है मुश्किल जैसी रोमांटिक फिल्म बना चुके करण इस बार राकी और रानी की प्रेम कहानी में इन दोनों जॉनर का मिश्रण लेकर आए हैं।

क्या है रॉकी और रानी की प्रेम कहानी की स्टोरी?

कहानी है रॉकी और रानी के प्रेम की, लेकिन परिवार के बिना प्रेम कहानी आगे नहीं बढ़ सकती है। कहानी शुरू होती है दिल्ली के रहने वाले रॉकी रंधावा (रणवीर सिंह) के साथ, जिसका जीवन में लक्ष्य अपनी बॉडी बनाना और अजीबोगरीब अतरंगी कपड़े पहना।

वहीं, रानी चटर्जी (आलिया भट्ट) महत्वाकांक्षी है। न्यूज चैनल में एंकर है। दोनों की मुलाकात होती है उनके दादा-दादी की वजह से। रॉकी के दादा कंवल (धर्मेंद्र) और रानी की दादी जामिनी (शबाना आजमी) किसी जमाने में एक-दूसरे से प्यार किया करते थे, लेकिन दोनों की शादी अलग-अलग जगहों पर हो गई थी।

अब रॉकी और रानी उन्हें मिलाने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन इस बीच उन्हें आपस में प्यार हो जाता है। रॉकी और रानी को इस बात का एहसास है कि दोनों के परिवार का रहन-सहन, संस्कृतियां एक-दूसरे से बिल्कुल मेल नहीं खाते हैं। ऐसे में परिवार को वह कैसे इस रिश्ते के लिए तैयार करेंगे।

इस बीच बातों-बातों में आइडिया निकलकर आता है कि क्यों न दोनों एक-दूसरे के परिवार के साथ तीन महीने बिताएं, ताकि उन्हें और उनके परिवार वालों को यह बात समझ में आए कि क्या वह आगे एक-दूसरे के साथ पूरी जिंदगी बिता पाएंगे? दोनों एक-दूसरे के परिवार को इंप्रेस करने के लिए पहुंच जाते हैं। क्या दोनों एक-दूसरे के परिवार का दिल जीत पाएंगे? कहानी इस पर आगे बढ़ती है।

कैसा है करण जौहर की फिल्म का स्क्रीन प्ले?

करण जौहर की फिल्मों की खास बात होती है कि उनका फ्रेम लार्जर देन लाइफ होता है, उसमें बहुत से रंग होते हैं, भव्य सेट, विदेशी लोकेशन पर गाने यह सारे मसाले उन्होंने इस फिल्म में भी बरकरार रखे हैं। भावनाओं को ह्यूमर के साथ मिलाने की कला करण में है। अपनी पिछली फिल्मों की ही तरह उन्होंने पारिवारिक मूल्यों के साथ कहानी में अहम संदेश भी है।

हालांकि, वहां तक पहुंचने में फिल्म समय लेती है। करण ने कॉमेडी और भावनात्मक दृश्यों के बीच दो परिवारों को लेकर जो संतुलन बनाया है, वह सराहनीय है। रॉकी जहां, रानी के गंभीर स्वभाव वाले सदस्यों के बीच रहकर हंसाता है। वहीं रानी, रॉकी के परिवार के बीच रहकर कुछ गंभीर दृश्य लेकर आती है।

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धर्मेंद्र को बड़े पर्दे पर देखना सुकून भरा अनुभव है। वह भावुक दृश्यों में अपने साथ शामिल कर लेते हैं। हालांकि, धर्मेंद्र और शबाना के बीच किसिंग सीन की जरूरत नहीं लगती है। दादी के होते हुए रॉकी का अपने दादा को उनके पहले प्यार से मिलवाने वाले दृश्य थोड़े अटपटे लगते हैं। अजीब यह भी लगता है की रॉकी की दादी धनलक्ष्मी अपने पति को उसको पूर्व प्रेमिका से मिलने के क्यों नहीं रोकती है?

फिल्म का पहला हिस्सा बहुत धीमा है। दोनों परिवारों का इंट्रोडक्शन सीन, रॉकी और रानी के बीच पनपता प्यार और पूर्व प्रेमियों को मिलाने वाले सीन में ही चला जाता है। पहले हिस्से में नये से ज्यादा पुराने गाने- मस्त बहारों का मैं आशिक़…, मेरी प्यारी बिंदु…, हवा के साथ साथ…, अभी ना जाओ छोड़ कर…, ये शाम मस्तानी… सुनाई देते हैं, जो कई बार मजेदार लगते हैं, लेकिन कुछ देर बाद उबाऊ लगने लगते है।

ट्रेलर में दिखाये गये लगभग 80 प्रतिशत दृश्य इंटरवल से पहले ही नजर आ जाते हैं। फिल्म के प्रमोशन में इस्तेमाल किये गये झुमका… और तुम मिले... गाने भी पहले हिस्से में ही दिखा दिये गये हैं, जिसके चलते इंटरवल से पहले की फिल्म देखी-देखी लगती है।

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फिल्म देखते समय कई सवाल मन में आते हैं, जैसे- धनलक्ष्मी अपने पति कंवल को उसकी पूर्व प्रेमिका से मिलने के क्यों नहीं रोकती है? रॉकी दिल्ली शहर के अमीर परिवार से है, लेकिन पढ़ा-लिखा क्यों नहीं है? जब धनलक्ष्मी खुद आत्मनिर्भर है तो वह घर की बहू और पोती को आत्मनिर्भर क्यों नहीं बनने दे रही है?

इनका जवाब लेखक शशांक खेतान, सुमित रॉय और इशिता मोइत्रा लगभग पौने तीन घंटे की इस फिल्म में नहीं दे पाते हैं। खैर, इशिता के लिखे संवाद, सपनों से बेहतर तो समझौते हैं ना, कम से कम रोज तो नहीं टूटते या एक बार आप अपनी खुशियों को मौका दें, आप अपनी बेटी के लिए मजबूरी की नहीं, मजबूती की मिसाल बनें... याद रह जाते हैं।

कहानी को तर्कसंगत रखने के लिए कुछ किरदारों का चित्रण पटरी से उतर गया है। रॉकी और उसकी बहन गायत्री इतने बड़े और अमीर परिवार से हैं। दिल्ली में रहते हैं, लेकिन फिर भी वह पढ़े लिखे क्यों नहीं हैं, ये सवाल मन में रह जाते हैं। फिल्म के कुछ दृश्य गुदगुदाते हैं- 'देवदास' के गाने डोला रे डोला पर रणवीर सिंह और टोटा रॉय चौधरी का डांस तालिया बटोरता है।

कैसा है कलाकारों का अभिनय?

अभिनय की बात करें तो धर्मेंद्र भावुक दृश्यों में आंखों में आंसू ले आते हैं। पर्दे पर उन्हें अभिनय करते हुए देखना सुकून भरा रहा। जया बच्चन उन महिलाओं को प्रस्तुत करती हैं, जो खुद महिला होते हुए दूसरी महिलाओं से नफरत करती हैं, इस नकारात्मक भूमिका में वह जंचती हैं।

शबाना आजामी सहजता से अपनी भूमिका निभाती हैं। टोटा रॉय चौधरी का अनुभव उनके नृत्य और अभिनय में नजर आता है। चूर्णी गांगुली प्रभावित करती हैं। आमिर बशीर, क्षिती जोग, अंजलि आनंद की कास्टिंग सटीक है।

रणवीर सिंह अपने चिरपरिचीत खुशमिजाज अंदाज में दिखे हैं। वास्तविक जिंदगी में वह जितने ऊर्जावान हैं, उसकी झलक रॉकी की भूमिका में दिखाई देती है।

भावुक दृश्यों में भी रणवीर छा जाते हैं। आलिया भट्ट, अभिनय की रानी साबित होती हैं। रॉकी के पिता के साथ होने वाली बहस के सीन में वह तालियां बटोरती हैं।

अवधि: 2 घंटा 48 मिनट