Safed Review: उपेक्षित वर्गों का दर्द उकेरती फिल्म में पात्रों का कमजोर चित्रण, मीरा और अभय का दमदार अभिनय
Safed Movie Review सफेद के साथ निर्माता संदीप सिंह ने बतौर निर्देशक करियर शुरू किया है। डेब्यू के लिए संदीप भारीभरकम विषय चुना। उन्होंने समाज के दो उपेक्षित वर्ग किन्नर और विधवाओं के बीच प्रेम कहानी बुनी है। फिल्म में मीरा चोपड़ा अभय वर्मा और बरखा बिष्ट लीड रोल्स में हैं। फिल्म इस विषय पर सतही तौर पर लाइट डालती है।
स्मिता श्रीवास्तव, मुंबई। Safed Movie Review: बेटे का जन्म हो या शादी उन्हें आशीर्वाद देने किन्नर जरूर आते हें। नाचते हैं, गाते हैं। उन्हें दुआएं देते हैं। हालांकि, दूसरों की खुशी में नाचने गाने वाले किन्नरों की निजी जिंदगी प्यार की मोहताज होती है। क्या ईश्वर की गलती कहे जाने वाले इन लोगों को इज्जत और प्यार का हक नहीं है?
दूसरी ओर पति की मौत के बाद विधवा औरत की जिंदगी की बदल जाती है। उन्हें सादगी से रहना होता है। अच्छा खाना नहीं खा सकते। समाज का दोहरा मापदंड महिलाओं पर ही क्यों लागू होता है? समाज के इन दो उपेक्षित वर्गों की पीड़ा को अपनी कहानी में पिरोकर निर्माता से निर्देशक बने संदीप सिंह ने फिल्म सफेद में दर्शाया है।
क्या है सफेद की कहानी?
वाराणसी में सेट कहानी साल 1990 से आरंभ होती है। काली (मीरा चोपड़ा) विधवा होने के बाद आश्रम भेज दी गई है। वहीं दूसरी ओर किन्नर चांदी (अभय वर्मा) घाट पर कशमकश में हैं। समाज से उपेक्षित और निराश दोनों आत्महत्या करने नदी में आते हैं। हालांकि, किस्मत उन्हें जीने का मौका देती है। दोनों एकदूसरे को पसंद करने लगते हैं।यह भी पढ़ें: Wedding.con Review- बैंक एकाउंट हुआ खाली, मिला उम्रभर का जख्म, दहला देते हैं शादी के नाम पर ठगी के ये किस्से
चांदी की सच्चाई से काली नावाकिफ होती है। इस बीच किन्नर समुदाय की निजी जिंदगी की झलक मिलती है। सामाजिक उपेक्षा, प्रताड़ना झेल रही चांदी खुद के लिए प्यार और इज्जत चाहती हैं, लेकिन उन्हें ना तो मर्द माना जाता है और ना औरत। वह सिर्फ हास परिहास और शोषण का विषय बनकर रह जाते हैं। काली को जब चांदी की सच्चाई पता चलेगी तो क्या उसे अपना पाएगी कहानी इस पर ही केंद्रित है।