Salaam Venky Review: गंभीर मुद्दे पर कमजोर कहानी है 'सलाम वेंकी', काजोल की एक्टिंग ने जीता दिल
Salaam Venky Review रेवती के निर्देशित में बनीं काजोल स्टारर फिल्म सलाम वेंकी सिनेमाघरों में दस्तक दे चुकी है। तो अगर आप भी फिल्म की टिकट बुक करने की सोच रहे हैं तो पहले यहां पढ़ें पूरा रिव्यू...
By Ruchi VajpayeeEdited By: Updated: Fri, 09 Dec 2022 11:39 AM (IST)
स्मिता श्रीवास्तव, मुंबई। Salaam Venky Review: रेवती द्वारा निर्देशित फिल्म 'सलाम वेंकी' श्रीकांत मूर्ति की किताब 'द लास्ट हुर्रा' पर बनी है। यह किताब दुर्लभ बीमारी से जूझ रहे युवा शतरंज खिलाड़ी वेंकटेश और उसकी मां के संघर्ष पर आधारित है। वेंकटेश की दिसंबर, 2004 में हैदराबाद में मृत्यु हो गई थी। जब वह अपने जीवन के अंतिम चरण में थे, तब उनकी मां ने यूथेनेशिया (इच्छा मृत्यु) के लिए हैदराबाद उच्च न्यायालय में अपील की थी, ताकि वह अपने बेटे के शरीर के महत्वपूर्ण अंगों को जरूरतमंद लोगों को दान करने की अंतिम इच्छा को पूरा कर सकें। फिल्म की कहानी भी इसी पहलू के आसपास गढ़ी गई है।
कहानी
कहानी की शुरुआत में दुर्लभ बीमारी से पीड़ित 24 वर्षीय वेंकी (विशाल जेठवा ) को अस्पताल लाया जाता है, जबकि अस्पताल से दो सप्ताह पहले ही वह घर गया होता है। वहां से उसके जीवन से जुड़े लोगों से परिचय होता है। बचपन की दोस्त नंदिनी (अनीत) से वह बेहद प्यार करता है। नंदिनी दृष्टिहीन है। अस्पताल में वेंकी की देखभाल उसकी मां सुजाता (काजोल) और छोटी बहन (रिद्दी कुमार) कर रहे हैं।
दुर्लभ बीमारी की वजह से पिता उसे डेड इनवेस्टमेंट मानते हैं। वह उसके बचपन में ही सुजाता को तलाक दे चुके हैं। वेंकी इच्छा मृत्यु चाहता है, ताकि उसके अंग दूसरों के काम आ सकें। वह राजेश खन्ना अभिनीत फिल्म आनंद का डायलॉग बोलता है कि जिंदगी बड़ी नहीं लंबी होनी चाहिए। इच्छा मृत्यु को लेकर उसकी मां का अदालत का दरवाजा खटखटाना, मीडिया किस तरह से इस खबर को दिखाता है? क्या उसकी अंतिम इच्छा पूरी हो पाएगी, इन प्रसंगों पर ही यह फिल्म आधारित है।
निर्देशन
करीब 12 साल के अंतराल के बाद रेवती ने निर्देशन किया है। फिल्म में काजोल, विशाल जेठवा, प्रकाश राज, राजीव खंडेलवाल जैसे दिग्गज कलाकार हैं, लेकिन पटकथा कमजोर होने की वजह से यह संवदेनशील विषय संवदेनाओं को झकझोर नहीं पाता है। इंटरवल से पहले पात्रों को स्थापित करने में लेखक और निर्देशक ने काफी समय लिया है। फिल्मों का शौकीन वेंकी डायलॉग काफी बोलता है। यह बीच-बीच में नीरसता को तोड़ते हैं, लेकिन मृत्युशैया पर लेटे वेंकी के दर्द को आप महसूस नहीं कर पाते हैं।नंदिनी के साथ उसकी प्रेम कहानी मार्मिक नहीं बन पाई है। हालांकि, बीच-बीच में चुनिंदा पल आते हैं, जो भावुक कर जाते हैं। फिल्म वेंकी के जीवन सफर में ज्यादा नहीं जाती, जबकि अंत में भारतीय शतरंज खिलाड़ी विश्वनाथन आनंद और कई गणमान्य के साथ उसकी असल फोटो दिखाई गई है। इच्छा मृत्यु का विषय बेहद संवेदनशील है, लेकिन अदालती जिरह बहुत प्रभावी नहीं बन पाई है। लेखक विषय की गहराई में नहीं उतरे हैं। वहीं, वेंकी के जीवन से जुड़े कई सवाल अनुत्तरित रह जाते हैं।