Scoop Review: 'स्कैम 2003' से पहले हंसल मेहता का जबरदस्त स्कूप, करिश्मा तन्ना का यादगार अभिनय
Scoop Web Series Review स्कूप की कहानी रिलयल लाइफ से प्रेरित है। करिश्मा तन्ना एक हाइप्रोफाइल क्राइम जर्नलिस्ट के रोल में हैं जो एक दिग्गज क्राइम जर्नलिस्ट के कत्ल की साजिश के आरोप में फंस जाती है। हरमन बावेजा भी सीरीज में एक अहम किरदार में हैं।
By Manoj VashisthEdited By: Manoj VashisthUpdated: Sat, 03 Jun 2023 04:24 PM (IST)
नई दिल्ली, जेएनएन। 'स्कैम 1992- द हर्षद मेहता स्टोरी' के बाद दर्शक हंसल मेहता की अगली सीरीज 'स्कैम 2003- द तेलगी स्टोरी' का इंतजार कर रहे थे, मगर वो 'स्कूप' लेकर आ गये और यकीन मानिए यह सीरीज देखने के बाद 'स्कैम 2003' के लिए आपका इंतजार और बेसब्र हो जाएगा।
शुक्रवार को नेटफ्लिक्स पर रिलीज हुई 'स्कूप' बेहतरीन ढंग से लिखी और कसी हुई सीरीज है, जो खबरनवीसों के खुद खबर बनने, किसी बड़े स्कूप की तलाश में नैतिक मूल्यों की अनदेखी, पुलिस विभाग की कार्यशैली और पारिवारिक मूल्यों की ताकत पर सशक्त टिप्पणी करते हुए चलती है।
क्या है स्कूप की कहानी?
जागृति पाठक (करिश्मा तन्ना) सिंगल मदर और तलाकशुदा है। मुंबई के एक छोटे-से अपार्टमेंट में अपनी मां, मामा और नाना-नानी के साथ रहती है। 10 साल का बेटा मुबंई के नजदीक पंचगनी में एक बोर्डिंग स्कूल में पढ़ता है। अंग्रेजी अखबार ईस्टर्न एज में डिप्टी ब्यूरो चीफ और सीनियर क्राइम रिपोर्टर जागृति की अंडरवर्ल्ड की स्टोरीज पर जबरदस्त पकड़ है।पुलिस विभाग और अंडरवर्ल्ड, दोनों जगह उसके सूत्रों का तगड़ा नेटवर्क है। जागृति, एक्सक्लूसिव और फ्रेंज पेज स्टोरीज की तलाश में रहती है। अपने सूत्रों को प्रोटेक्ट और सपोर्ट करने के लिए मशहूर है। मुंबई क्राइम ब्रांच के ज्वाइंट पुलिस कमिश्नर हर्षवर्धन श्रॉफ (हरमन बावेजा) से उसके संबंध अच्छे हैं।
जागृति की जिंदगी में उस वक्त भूचाल आता है, जब दूसरे अंग्रेजी अखबार न्यूज डे के क्राइम एंड इनवेस्टिगेटिव एडिटर जयदेब सेन (प्रोसेनजित चटर्जी) की दिन-दहाड़े गोलियां मारकर हत्या कर दी जाती है। उस वक्त जागृति अपने परिवार के साथ कश्मीर में छुट्टियां मना रही होती है।
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इस हाइप्रोफाइल केस की तफ्तीश के दौरान शक के दायरे में दूसरे पत्रकार भी आते हैं। सबसे पूछताछ होती है। सेन के कत्ल की जिम्मेदारी अंडरवर्ल्ड डॉन छोटा राजन लेता है। वारदात से कुछ वक्त पहले डॉन का इंटरव्यू करने की वजह से जागृति पर इस साजिश में शामिल होने का आरोप लगता है, जिसके मुताबिक जागृति ने इंटरव्यू के बदले डॉन को सेन के घर का पता और बाइक का नम्बर लीक किया था, जो उसके जरिए शूटरों तक पहुंचा।
पुलिस जागृति को मकोका (Maharashtra Control Of Organised Crime Act) के तहत गिरफ्तार कर लेती है, जिसमें जमानत मिलना आसान नहीं होता। सेन के साथ जागृति की पेशेगत प्रतिद्वंद्विता को आधार बनाते हुए पुलिस उसके तार संगठित अपराध और अंडरवर्ल्ड से जोड़ने की कोशिश करती है। आगे की कहानी जागृति की जेल के अंदर जिंदगी, जमानत के लिए कोर्ट में लड़ाई और साथी पत्रकारों की वैचारिक जद्दोजहद को दिखाती है।
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कैसा है स्कूप का स्क्रीनप्ले और संवाद?
स्कूप, मुंबई की क्राइम जर्नलिस्ट जिगना वोरा की किताब बिहाइंड बार्स इन बाइकुला- माइ डेज इन प्रिजन (Behind Bars In Byculla- My Days In Prison) पर आधारित है। 2011 में जिगना को दिग्गज क्राइम जर्नलिस्ट ज्योतिर्मय डे के मर्डर की साजिश के आरोप में मुंबई पुलिस ने गिरफ्तार किया था। उन पर MCOCA लगाया गया था और जमानत मिलने तक 9 महीने जेल में रहना पड़ा था। जिगना की किताब पर मृणामयी लागू वाइकुल और मीरत त्रिवेदी द्वारा लिखी गयी कहानी को अनु सिंह चौधरी ने बेहद कसे हुए स्क्रीनप्ले में ढाला है।सीरीज में कुछ छह एपिसोड्स हैं और हर एपिसोड की अवधि लगभग एक घंटा है, इसके बावजूद सीरीज पकड़कर रखती है। खासकर, तीसरे एपिसोड के बाद 'स्कूप' रोमांच के स्तर पर नीचे नहीं आती। इसकी वजह है कि एक भी दृश्य ठूसा हुआ नहीं लगता। जेल के अंदर की जिंदगी फिल्मों और वेब सीरीज के जरिए सैकड़ों दफा देखी है, फिर भी स्कूप के ये दृश्य गति शिथिल नहीं होने देते। चौथे एपिसोड से सीरीज रोमांचक कोर्टरूम ड्रामा में तब्दील हो जाती है। इन दृश्यों को असरदार बनाने में करन व्यास के संवादों की भूमिका भी उल्लेखनीय है। संवाद सरल, सीधे और किरदारों के चित्रण के अनुरूप हैं। स्कूप उन वेब सीरीज में शामिल है, जो जरूरी मुद्दों पर टिप्पणी तो करती हैं, मगर थ्रिल कम नहीं होने देतीं। हर पेशे के कुछ सफेद और स्याह पक्ष होते हैं, लेकिन महत्वाकांक्षाओं के पीछे दौड़ते हुए इनके बीच की लकीर कब धुंधली पड़ती जाती है, इसका एहसास अक्सर नहीं होता। जेल में जागृति के संवाद के जरिए स्कूप इस मुद्दे पर भी विचार करने के लिए मजबूर करती है। साथ ही इस बात पर भी जोर देती है कि सच तक पहुंचना सबसे जरूरी होता है, मगर मायने यह भी रखता है कि वहां तक पहुंचने के लिए क्या रास्ता अपनाया गया है। पत्रकारिता के पेशे की व्यावसायिक मजबूरियों और नैतिकता के बीच कशमकश को संवादों के जरिए उठाया गया है, जब ईस्टर्न ऐज का सम्पादक इमरान कहता है-महिलाओं की तरक्की को अक्सर उनके स्त्रीत्व से जोड़कर देखने की मानसिकता को भी सीरीज में जागृति के एक सहयोगी के जरिए एड्रेस किया गया है। स्कूप एक ऐसे विषय को डील करती है, जो बेहद संवेदनशील है। मगर, सीरीज इस केस से जुड़े तमाम सवालों के जवाब देने की कोशिश करती है। हालांकि, इनकी ऑथेंटिसिटी का दावा नहीं करती, जैसा कि शुरुआती डिस्क्लेमर में कहा भी गया है। इमरान और सहानुभूति रखने वाले अन्य पत्रकारों की खोज के जरिए जयदेब सेन की हत्या के पीछे सम्भावित कारण की तलाश की गयी है, जिसमें अंडरवर्ल्ड-मुंबई पुलिस गठजोड़ और आइबी की भूमिका पर सवाल उठते हैं।एक कहता है कि बाहर बारिश हो रही है और दूसरा कहता है, धूप खिली हुई है तो आपका काम सिर्फ इन दोनों को कोट करना भर नहीं है, बल्कि खिड़की से बाहर झांककर इसकी जांच करना भी है कि सच क्या है।