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Sharmajee Ki Beti Review: जिम्मेदारियों और चुनौतियों के बीच जो खोने ना दे अपनी पहचान, वही है 'शर्मा जी की बेटी'

शर्माजी की बेटी प्राइम वीडियो पर रिलीज हो गई है। यह तीन मिडिल क्लास महिलाओं की कहानी है जिनके सरनेम शर्मा हैं। ताहिरा ने शर्मा सरनेम का इस्तेमाल रूपक के तौर पर किया है। फिल्म में साक्षी तंवर दिव्या दत्ता संयमी खेर और शारिब हाशमी ने प्रमुख किरदार निभाये थे। शर्माजी की बेटी फिल्म की कहानी भी ताहिरा ने ही लिखी है।

By Manoj Vashisth Edited By: Manoj Vashisth Updated: Fri, 28 Jun 2024 02:29 PM (IST)
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शर्माजी की बेटी ओटीटी पर आ गई है। फोटो- इंस्टाग्राम
एंटरटेनमेंट डेस्क, नई दिल्ली। कैंसर से जंग जीत चुकीं आयुष्मान खुराना की पत्नी ताहिरा कश्यप ने बतौर निर्देशक अपनी पारी का आगाज कर दिया है। ताहिरा निर्देशित पहली फिल्म शर्मा जी की बेटी प्राइम वीडियो पर रिलीज हो गई है। ताहिरा ने अपने डायरेक्टोरियल डेब्यू के लिए जो कहानी चुनी है, उसकी नायिकाएं मध्यवर्गीय महिलाएं हैं, जिनका संघर्ष कभी खत्म नहीं होता। 

बच्चे की उम्र के हिसाब से इस संघर्ष का मैदान जरूर बदलता रहता है, मगर यह कभी खत्म नहीं होता। निजी जीवन अलग-अलग मोर्चों पर लड़ रहीं इन महिलाओं को बच्चों के जज्बाती उलाहनों से लेकर तरक्की पाने पर ईर्ष्यालु साथियों के ताने तक सुनने पड़ते हैं।

पति की बेवफाई भी कभी-कभी हिस्से आ जाती है तो ब्वॉयफ्रेंड की उम्मीदों पर खरा उतरने का दबाव अपना करियर दाव पर लगा देता है। तीन किरदारों ज्योति शर्मा, किरण शर्मा और तन्वी शर्मा को केंद्र में रखकर ताहिरा ने शर्माजी की बेटी बनाई है, जो इनकी रोजमर्रा की जिंदगी की जद्दोजहद के साथ महानगरों में रहने वाली गृहिणियों के अकेलेपन को भी रेखांकित करती है।

मगर, तमाम चुनौतियों के बीच 'शर्माजी की बेटी' अपनी पहचान नहीं खोने देती है। इस लिहाज से यह एक फीलगुड फिल्म है, जो अपनी सादगी से प्रभावित करती है। 

क्या है फिल्म की कहानी?

ज्योति शर्मा (साक्षी तंवर) कोचिंग में फिजिक्स और मैथ पढ़ाती है। उम्र के संवेदनशील पड़ाव से गुजर रही बेटी स्वाति (वंशिका टपारिया) आठवीं में पढ़ती है। पति सुधीर शर्मा (शारिब हाशमी) प्राइवेट नौकरी में है। अपने जॉब की आपाधापी में ज्योति बेटी पर समुचित ध्यान नहीं दे पाती, जिसकी शिकायत बेटी को रहती है।

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उसका मानना है कि पापा के वेतन से जब घर चल सकता है तो फिर उसे नौकरी करने की क्या जरूरत है। बेटी के सवालों के जवाब देने में असमर्थ ज्योति बचे-खुचे समय में उसे बहलाने कोशिशें करती रहती है। किशोरावस्था से यौवन की ओर बढ़ रही स्वाति के पीरियड्स शुरू नहीं हुए हैं, जिसको लेकर वो फ्रस्ट्रेट रहती है।

सालभर पहले पटियाला से मुंबई आई किरण शर्मा (दिव्या दत्ता), पति विनोद शर्मा (प्रवीन डबास) और बेटी गुरवीन (अरिस्ता मेहता) के साथ रहती है। किरण नितांत अकेली है। पति के पास उसके लिए बिल्कुल वक्त नहीं है। अकेलेपन को दूर करने के लिए वो अलग-अलग तरीके ढूंढती रहती है। 

तन्वी शर्मा (संयमी खेर) स्टेट लेवल की क्रिकेटर है, जो बड़ौदा से मुंबई टीम के लिए खेलती है और नेशनल टीम में शामिल होने के लिए कोशिशें कर रही है। उसका मॉडल ब्वॉयफ्रेंड हीरो बनने के लिए संघर्ष कर रहा है, लेकिन तन्वी को ज्यादा गर्ली दिखने के लिए टोकता रहता है। ये तीनों महिलाएं किस तरह अपनी-अपनी जिंदगी की समस्याओं से जूझते हुए खुद को तलाश करती हैं, यही शर्माजी की बेटी की कहानी का सार है।

कैसा है स्क्रीनप्ले और अभिनय?

महिलाओं के सशक्तिकरण विषय के इर्द-गिर्द तमाम फिल्में बनी हैं। विषय नया नहीं है, मगर फिल्मों की कहानियां अलग-अलग सामाजिक और आर्थिक पहलुओं के मद्देनजर कथ्य बदलती रही हैं। ताहिरा की शर्मा जी की बेटी क्वीन, इंग्लिश विंग्लिश और लिप्स्टिक अंडर माइ बुर्का के बीच कहीं झूलती नजर आती है। 

शर्माजी की बेटी नम्बर वन

115 मिनट अवधि की फिल्म की शुरुआत ज्योति शर्मा की डेली लाइफ से होती है। जॉब और पारिवारिक जिम्मेदारियों के बीच सामंजस्य बिठाने की जद्दोजहद कर रही ज्योति का पति उसका संबल है, जो अपनी नौकरी के साथ बेटी और घर की जिम्मेदारियों में हाथ बंटा रहा है।

किशोरवय लांघकर यौवन की दहलीज पर खड़ी बेटी के अपनी शारिरिक समस्याओं को लेकर तमाम सवाल हैं, जो मां के मसरूफ होने के कारण अनुत्तरित रह जाते हैं। पिता बाकी सब बातों का ख्याल रख सकता है, मगर कुछ बातें मां से ही साझा की जाती हैं। अपनी दोस्त गुरवीन के साथ वो ये सब साझ करती है। जहन में सवाल उठता है, ज्योति के लिए क्या बेटी से ज्यादा जरूरी उसकी नौकरी है?

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ज्योति के माध्यम से ताहिरा ने उस सवाल का जवाब देने की कोशिश की है, जो करियर के लिए जागरूक अनगिनत महिलाओं को देखकर जहन में उठता होगा? ऐसे ताने को सुनने को मिलते हैं- कैसी मां है, जो अपनी बेटी का ध्यान भी नहीं रख पाती, इसके लिए बेटी से ज्यादा जरूरी नौकरी है। 

शर्माजी की बेटी नम्बर 2

दूसरी शर्माजी की बेटी यानी किरण शर्मा के जरिए ताहिरा ने महानगरों में रहने वाली हाउसवाइव्स के अकेलेपन के दर्द को उकेरा है, जिनको लेकर कहा जाता है कि यह तो हाउसवाइफ है, करती ही क्या हैं। काम में बिजी होने की आड़ में पति की बेरुखी झेल रही किरण किस कदर अकेला महसूस करती है, इसका अंदाजा तब होता है, जब वो सब्जी वाले से कहती है- यह नहीं पूछ सकता कि क्या हालचाल है।

सड़क पर ऑटो चलाने वालों के साथ वो पत्ते खेलने बैठ जाती है। एक नौकरीपेशा पड़ोसन अपने बिजी होने की डींग मारते हुए उसे किटी बनाने का मशविरा देती है। हालांकि, इस ट्रैक में कुछ खामियां भी हैं।

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मैरिज एनिवर्सरी पर जब किरण को पता चलता है कि पति का अफेयर चल रहा है तो टूटती है, मगर इसका विरोध क्यों नहीं करती, यह समझ नहीं आता। वो इतना कमजोर क्यों महसूस करती है? क्या यही हाउसवाइफ की नियति होती है? वहीं, बेटी के लेस्बियन होने की स्वीकारोक्ति को वो बड़ी सहजता से लेती है।  

शर्माजी की बेटी नम्बर 3

तीसरी शर्माजी की बेटी संयमी खेर का किरदार दमदार है, जिसे अपनी करियर च्वाइसेज पर टीका-टिप्पणी करने वाले लोग पसंद नहीं हैं, चाहे ब्वॉयफ्रेंड ही क्यों ना हो। वो क्रिकेटर के तौर पर अपनी पहचान खुद बनाना चाहती है, किसी फिल्मी सितारे की बीवी बनकर रह जाना उसे पसंद नहीं। 

तीनों प्रमुख किरदारों के साथ बेटियों के माध्यम से टीनेज लड़कियों की समस्याओं और विचारों की उथलपुथल को भी समुचित जगह दी गई है। हालांकि, तीन अलग-अलग ट्रैक्स को स्क्रीनप्ले में इस तरह गूंथा गया है कि कहानी की दिशा भटकती नहीं है। 

स्क्रिप्ट को मिला अभिनय का साथ

फिल्म में सभी कलाकारों ने स्क्रिप्ट और अपने किरदारों के दायरे में अच्छा काम किया है और अपने-अपने पार्ट में जंचे हैं। साक्षी, दिव्या और संयमी ने अपने किरदारों को भटकने नहीं दिया। बाल कलाकार वंशिका का काम उल्लेखनीय है। वहीं, शारिब ने ज्योति के किरदार में साक्षी को फलने-फूलने का पूरा मौका दिया है। प्रवीन डबास के हिस्से ज्यादा दृश्य नहीं आये हैं, मगर जितने आये, उतने में वो ठीक लगे हैं।