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Shikara Movie Review: कश्मीरी हिंदुओं का दर्द दिखाती बेहतरीन फिल्म, सोचने पर कर देगी मजबूर

Shikara Movie Review विधु विनोद चोपड़ा की फिल्म शिकारा बड़े पर्दे पर रिलीज हो गई है और फिल्म ऐसी है कि जब थियेटर से बाहर निकलते हैं तो फिल्म आपकी आत्मा में बसी रहती है।

By Mohit PareekEdited By: Updated: Fri, 07 Feb 2020 10:36 AM (IST)
Shikara Movie Review: कश्मीरी हिंदुओं का दर्द दिखाती बेहतरीन फिल्म, सोचने पर कर देगी मजबूर
पराग छापेकर, मुंबई। फिल्म 'शिकारा' सिनेमाघरों में रिलीज हो गई है। अगर फिल्म की बात करें तो ऐसी फिल्में बॉलीवुड में कम ही बनती हैं, जिसे देखने के बाद आपकी आत्मा तृप्त हो जाती है। ये फिल्में आपको सोचने पर मजबूर करती हैं। यह फिल्म आपके इमोशंस को पूरी ईमानदारी के साथ फिल्म की यात्रा में शामिल करती है और आप बेझिझक उन किरदारों की दुनिया में शामिल हो जाते हैं। फिर उनका दुख, उनकी तकलीफ, उनका सुख, उनका प्यार, सब कुछ आपका अपना हो जाता है। आप जब फिल्म के बाहर निकलते हैं तो फिल्म आपकी आत्मा में बसी रहती है। फिल्म शिकारा एक ऐसी ही फिल्म है।

यह कहानी है शिव और शांति की, जो कश्मीर में रह रहे सीधे-साधे कश्मीरी पंडित हैं। उनकी अपनी एक अलग ही दुनिया है, जिसमें ये प्यार मोहब्बत से रह रहे हैं। इनके लिए कश्मीर उतना ही है, जितना सबका। कहानी साल 1989 की है और इस वक्त कश्मीर की खूबसूरत वादियों में आतंकवाद पैर फैला रहा होता है। इसी दौरान लाखों कश्मीरी पंडितों को घाटी से बाहर किया जाता है, इसमें शिव और शांति भी शामिल हैं, जिन्हें अपना आशियाना छोड़कर रिफ्यूजी कैंप में जाना पड़ा।

इस दौरान उन्होंने किस तरह तमाम दर्द और पीड़ा झेलते हुए खूबसूरती से जिया..यही कहानी है फिल्म शिकारा की। निर्देशक विधु विनोद चोपड़ा ने जिस तरह से अपनों से बिछड़ने के दर्द और अपने बसे बसाए आशियाने छोड़ने की पीड़ा और एक प्रेम की दास्तां को सुनहरे पर्दे पर रंगा है। ऐसा लगता है कि जैसे ये सब आप के ही साथ हो रहा हो।

इस फिल्म की महानता यही है कि कहानी के चरित्र भी धार्मिक उद्वेग का शिकार हैं, मगर फिल्म के अंत तक मानवीय संवेदनाएं सबसे प्रमुख हो जाती है। निश्चित ही...इसके लिए विधु विनोद चोपड़ा बधाई के हकदार हैं। फिल्म भले ही कश्मीर की कहानी कहती हो, लेकिन इसका असर सार्वभौमिक है। अगर अभिनय की बात करें तो आदिल और सादिया दोनों ही अपनी लॉन्चिंग फिल्म के साथ जाने अनजाने ही सही अभिनय की उस अवस्था पर पहुंच गए हैं, जहां पहुंचना सभी के बस की बात नहीं होती।

हो सकता है उनकी आने वाली फिल्मों में शायद यह उत्कृष्टता देखने को ना मिले। हालांकि, शिव और शक्ति के किरदार में उन्होंने जो किया है, उसकी तलाश उन्हें जिंदगी भर रहेगी। प्रोडक्शन डिजाइन इतनी खूबसूरती से किया गया है कि उसकी जितनी तारीफ की जाए, उतनी कम है। रंगराजन राम भदरण का कैमरा वर्क फिल्म को एक अलग ऊंचाइयों पर ले जाता है। फिल्म का संगीत और फिल्म के गीत अपना मजबूत असर छोड़ते हैं।

कुल मिलाकर यह कहा जाए तो गलत नहीं होगा कि एक लंबे अरसे के बाद बॉलीवुड ने सही मायने में एक ऐसा सिनेमा गढ़ा है, जो विश्व सिनेमा की श्रेणी का है। यह फिल्म जरूर देखी जानी चाहिए और सपरिवार देखना चाहिए ताकि बच्चों पर इंसानियत के संस्कार पड़े। आप अपने इतिहास से रूबरू हो सके भले ही वह कितना ही काला क्यों ना हो।

स्टार्स- 4.5