Silence 2 Review: चुभती है 'साइलेंस 2' की चुप्पी, मनोज बाजपेयी की फिल्म में संवाद ज्यादा तफ्तीश कम
मनोज बाजपेयी की फिल्म Silence 2 मर्डर मिस्ट्री थ्रिलर है जिसमें वो एक कत्ल की जांच कर रहे हैं। 2021 में इस फ्रेंचाइजी की पहली फिल्म आई थी। मनोज के साथ प्राची देसाई साहिल वैद और वकार शेख अपनी भूमिकाएं दोहरे रहे हैं। फिल्म जी5 पर रिलीज हो गई है। हालांकि पहले के मुकाबले दूसरा भाग कमजोर है। फिल्म का निर्देश अबान भरूचा देवहंस ने किया है।
स्मिता श्रीवास्तव, मुंबई। एक मर्डर। संदेह की सुई कई लोगों की ओर घूमना। असली कातिल की छोटी सी झलक देना। फिर सारी कड़ियों को जोड़ते हुए चतुर, जुनूनी और बुद्धिमान पुलिस ऑफिसर के नेतृत्व में हत्यारे की पहचान करना साइलेंस फ्रेंचाइजी का आधार रहा है।
साल 2021 में आई इस फ्रेंचाइजी की पहली फिल्म साइलेंस : कैन यू हीयर इट? में कातिल की छोटी सी झलक बीच में दी गई थी। वह फिल्म बांधने में कामयाब रही थी। साइलेंस 2 की शुरुआत भी पीड़ित के हाथ कुछ फोटो लगने से होती है। इसमें को्ई रहस्य छुपा होता है। दिक्कत यह है तफ़्तीश से ज्यादा बातें संवादों के जरिए पता चलती हैं, जो फिल्म को कमजोर बनाता है।
क्या है साइलेंस 2 की कहानी?
फिल्म पिंक का संवाद नो मीन्स नो यानी ना का मतलब ना काफी चर्चित हुआ था। आरम्भ में एस्कॉर्ट गर्ल के साथ जबरदस्ती कर रहे शख्स को एसीपी अविनाश वर्मा (मनोज बाजपेयी) इसी संवाद की याद दिलाते हुए धुनाई करते हैं। उसी दौरान उन्हें अपने अधिकारी से द नाइट आउल बार में शूटआउट होने की जानकारी मिलती है।यह भी पढ़ें: OTT Releases- मनोज बाजपेयी की Silence 2 के साथ इस हफ्ते ओटीटी पर बवाल मचाएंगी ये 10 फिल्में और सीरीज
इस हत्याकांड में मुख्यमंत्री का पसर्नल सेक्रेटरी भी मारा जाता है। अविनाश घटनास्थल पर पहुंचता है। अनुमान है कि यह राजनीतिक घटनाक्रम से प्रेरित है। वहां पर एक लड़की की भी बेरहमी से हत्या हुई होती है। अविनाश अलग-अलग कोण से जांच में पाता है कि यह हत्या पर्सनल सेक्रेटरी को लक्ष्य बनाकर नहीं की गई, बल्कि वह अनजान लड़की हत्यारे के निशाने पर पर थी।अविनाश को इस हत्याकांड का पर्दाफाश करने के लिए दो दिन का समय दिया जाता है। उधर, राजस्थान में पुलिस को एक युवती की लाश मिलती है। पुलिस अधिकारी हत्याकांड में जांच के लिए अविनाश की मदद मांगती है। अविनाश के पास मूल फिल्म वाली पुरानी टीम है। वह मामले की जांच में जुट जाती है।
हालांकि, जांच को लेकर तय समय सीमा से लेखक और अविनाश बेपरवाह नजर आते हैं। बीच-बीच में मानव तस्करी का रैकेट संचालित करने वाले, चेहरा ढकी महिला खलनायक जैसे लोगों की झलक मिलती है, लेकिन आप उससे कनेक्ट नहीं होते हैं। स्पेशल क्राइम यूनिट के लिए काम कर रहे अविनाश को बीच-बीच में उसे बंद करने की चेतावनी भी मिलती है, जिसका कहानी से कोई सरोकार नजर नहीं आता है।कातिल सीसीटीवी में लंगड़ा बनकर चलता दिखता है। शायद ध्यान भटकाने के लिए लेखक ने उसे हिस्सा बनाया है। मामले का रहस्योद्घाटन होने पर इसके बारे में कोई बात नहीं होती। ऑडिशन के नाम पर कई लड़कियों से जबरन वेश्वयवृत्ति कराने का एंगल भी है, लेकिन उसे समुचित तरीके से एक्सप्लोर नहीं किया गया है।