Srikanth Review: सपने देखने और साकार करने के जज्बे की कहानी, वाकई आंखें खोलती है श्रीकांत की जिंदगी
श्रीकांत एक फीलगुड फिल्म है जो एहसास करवाती है कि शारीरिक कमियां इच्छाशक्ति के सामने बौनी हैं। अगर मन में ठान लिया जाए तो कोई भी शारीरिक बाधा आगे बढ़ने से नहीं रोक सकती। राजकुमार राव ने शीर्षक भूमिका निभाई है जबकि ज्योतिका उनकी टीचर के रोल में हैं। शैतान के बाद ज्योतिका इस फिल्म में नजर आ रही हैं।
स्मिता श्रीवास्तव, मुंबई। ‘मैं भाग नहीं सकता सिर्फ लड़ सकता हूं’। दृष्टिबाधित उद्योगपति श्रीकांत बोला की जिंदगी पर बनी फिल्म का यह संवाद उनकी सोच और जज्बात को बयां करने के लिए काफी है। दृष्टिबाधित होने की चुनौतियों के बीच उन्होंने सपने देखे और उन्हें साकार करने में कोई कसर नहीं छोड़ी।
उन्हीं के जीवन संघर्ष पर तुषार हीरानंदानी ने फिल्म 'श्रीकांत: आ रहा है सबकी आंखे खोलने' बनाई है, जो कई मायने में आम लोगों की आंखें खोलने का काम करेगी। यह नेत्रहीनों के प्रति बेचारा, इसके साथ बुरा हुआ, यह तो ट्रेन में गाना गाने, भीख मांगते हैं, जैसी परंपरागत धारणाओं को तोड़ने का काम बखूबी करती है।
क्या है फिल्म की कहानी?
कहानी की शुरुआत आंध्र प्रदेश के मछलीपट्टनम में एक किसान परिवार में नेत्रहीन बच्चे के जन्म से होती है। पिता अरमानों से प्रख्यात क्रिकेटर श्रीकांत के नाम पर उसका नामकरण करते हैं। कुछ ही पलों में बेटे के नेत्रहीन होने का पता चलने पर उनका दिल टूट जाता है।यह भी पढ़ें: Srikanth एक्टर राजकुमार राव का AI के गलत इस्तेमाल पर फूटा गुस्सा, स्टार्स के वायरल डीपफेक वीडियो पर कही ये बात
रिश्तेदारों उसे कचरा बताकर मारने का सुझाव देते हैं। श्रीकांत (राजकुमार राव) के जीवन की दुश्वारियों की कल्पना करके पिता अपने नवजात बेटे को जिंदा जमीन में गाड़ने जाता है, लेकिन पत्नी की बेटे के प्रति ममता उसे रोक लेती है। जैसे-जैसे श्रीकांत बड़ा होता है, उसकी बुद्धिमत्ता सामने आती है।वह क्लास में अव्वल आता है। सहपाठियों से मिलने वाले ताने, प्रताड़ना और अपमान उसके आत्मविश्वास को डिगा नहीं पाते। आगे की शिक्षा के लिए उसे दृष्टिबाधितों के स्कूल में भेजा जाता है। वहां एक सच बोलने के लिए उसे स्कूल से निकाल दिया जाता है।
तब शिक्षिका देविका (ज्योतिका) उसका संबल बनती है। उसकी शिक्षा-दीक्षा और पालन पोषण की जिम्मेदारी उठाती है। दसवीं में अच्छे अंक आने के बावजूद 11वें में साइंस लेने की जिद के चलते सिस्टम से लड़ाई, इंजीनिंयरिंग की पढ़ाई के लिए आइआइटी में प्रवेश न मिलने पर मैसाच्युसेट्स इंस्टीट्यूट आफ टेक्नोलाजी (एमआइटी ) जाकर पढ़ाई करना।वहां से लौटकर उद्योग स्थापित करने में राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम की मदद मिलना, फिर रवि (शरद केलकर) का साथ आना। उस दौरान की चुनौतियों, राजनीति में झुकाव, अहंकार आने, स्वाति (अलाया एफ) के साथ प्रेम और पहचान स्थापित करने के सफर को दर्शाती है।