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Srikanth Review: सपने देखने और साकार करने के जज्बे की कहानी, वाकई आंखें खोलती है श्रीकांत की जिंदगी

श्रीकांत एक फीलगुड फिल्म है जो एहसास करवाती है कि शारीरिक कमियां इच्छाशक्ति के सामने बौनी हैं। अगर मन में ठान लिया जाए तो कोई भी शारीरिक बाधा आगे बढ़ने से नहीं रोक सकती। राजकुमार राव ने शीर्षक भूमिका निभाई है जबकि ज्योतिका उनकी टीचर के रोल में हैं। शैतान के बाद ज्योतिका इस फिल्म में नजर आ रही हैं।

By Jagran News Edited By: Manoj Vashisth Updated: Thu, 09 May 2024 08:39 PM (IST)
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श्रीकांत फिल्म में राजुकमार राव। फोटो- इंस्टाग्राम
स्मिता श्रीवास्तव, मुंबई। ‘मैं भाग नहीं सकता सिर्फ लड़ सकता हूं’। दृष्टिबाधित उद्योगपति श्रीकांत बोला की जिंदगी पर बनी फिल्‍म का यह संवाद उनकी सोच और जज्‍बात को बयां करने के लिए काफी है। दृष्टिबाधित होने की चुनौतियों के बीच उन्होंने सपने देखे और उन्‍हें साकार करने में कोई कसर नहीं छोड़ी।

उन्‍हीं के जीवन संघर्ष पर तुषार हीरानंदानी ने फिल्‍म 'श्रीकांत: आ रहा है सबकी आंखे खोलने' बनाई है, जो कई मायने में आम लोगों की आंखें खोलने का काम करेगी। यह नेत्रहीनों के प्रति बेचारा, इसके साथ बुरा हुआ, यह तो ट्रेन में गाना गाने, भीख मांगते हैं, जैसी परंपरागत धारणाओं को तोड़ने का काम बखूबी करती है।

क्या है फिल्म की कहानी?

कहानी की शुरुआत आंध्र प्रदेश के मछलीपट्टनम में एक किसान परिवार में नेत्रहीन बच्‍चे के जन्म से होती है। पिता अरमानों से प्रख्‍यात क्रिकेटर श्रीकांत के नाम पर उसका नामकरण करते हैं। कुछ ही पलों में बेटे के नेत्रहीन होने का पता चलने पर उनका दिल टूट जाता है।

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रिश्‍तेदारों उसे कचरा बताकर मारने का सुझाव देते हैं। श्रीकांत (राजकुमार राव) के जीवन की दुश्‍वारियों की कल्‍पना करके पिता अपने नवजात बेटे को जिंदा जमीन में गाड़ने जाता है, लेकिन पत्‍नी की बेटे के प्रति ममता उसे रोक लेती है। जैसे-जैसे श्रीकांत बड़ा होता है, उसकी बुद्धिमत्‍ता सामने आती है।

वह क्‍लास में अव्‍वल आता है। स‍हपाठियों से मिलने वाले ताने, प्रताड़ना और अपमान उसके आत्‍मविश्‍वास को डिगा नहीं पाते। आगे की शिक्षा के लिए उसे दृष्टिबाधितों के स्‍कूल में भेजा जाता है। वहां एक सच बोलने के लिए उसे स्‍कूल से निकाल दिया जाता है।

तब शिक्षिका देविका (ज्‍योतिका) उसका संबल बनती है। उसकी शिक्षा-दीक्षा और पालन पोषण की जिम्‍मेदारी उठाती है। दसवीं में अच्‍छे अंक आने के बावजूद 11वें में साइंस लेने की जिद के चलते सिस्‍टम से लड़ाई, इंजीनिंयरिंग की पढ़ाई के लिए आइआइटी में प्रवेश न मिलने पर मैसाच्‍युसेट्स इंस्‍टीट्यूट आफ टेक्‍नोलाजी (एमआइटी ) जाकर पढ़ाई करना।

वहां से लौटकर उद्योग स्‍थापित करने में राष्‍ट्रपति एपीजे अब्‍दुल कलाम की मदद मिलना, फिर रवि (शरद केलकर) का साथ आना। उस दौरान की चुनौतियों, राजनीति में झुकाव, अहंकार आने, स्‍वाति (अलाया एफ) के साथ प्रेम और पहचान स्‍थापित करने के सफर को दर्शाती है।

कैसा है स्क्रीनप्ले और अभिनय?

जगदीप सिद्धू और सुमित पुरोहित लिखित कहानी गंभीर विषय को हल्‍के-फुल्‍के अंदाज में चित्रित करते हुए शिक्षा प्रणाली की खामियां, दृष्टिबाधितों के साथ होने वाले सामाजिक व्‍यवहार समेत कई मुद्दों को छूती है। फिल्‍म कहीं से बोझिल नहीं होती। यह फिल्‍म मुख्‍य रूप से श्रीकांत के टैलेंट, उनकी चुनौतियों के साथ उनमें आए बदलावों को ईमानदारी के साथ दर्शाती है।

यह भारतीय शिक्षा प्रणाली पर कटाक्ष भी करती है। समाज की सोच है कि अंधे लोग भीख मांगने, मोमबत्‍ती बनाकर ही जीवनयापन कर सकते हैं, जैसे संवाद झकझोरते है। यह फिल्म भारत और पश्चिम देशों के बीच सोच के गहरे अंतर को भी दर्शाती है।

12वीं की बोर्ड परीक्षा में टॉप करने के बावजूद भारतीय इंस्‍टीट्यूट श्रीकांत को दाखिला नहीं देते, लेकिन चार अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालयों उनकी योग्यता के आधार पर उन्‍हें मौका देते हैं। बीच-बीच में कलाम (जमील खान) की कही बातें किस प्रकार श्रीकांत को आगे बढ़ने को प्रेरित करती हैं वह याद रह जाता है।

यह फिल्‍म आम लोगों के नेत्रहीनों के प्रति दृष्टिकोण को भी रेखांकित करती हैं। फिल्‍म में कई पल आते हैं जब आंख भर आती है और गला रुंध जाता है। मध्‍यांतर के बाद फिल्‍म थोड़ा खिंची हुई लगती है। उसमें थोड़ा दोहराव भी है। हैदराबाद में सेट कहानी में स्‍थानीय भाषा और परिवेश का स्‍वाद नजर नहीं आता है।

फिल्‍म का दारोमदार राजकुमार राव के कंधों पर है। वह एक बार फिर साबित करते हैं कि चुनौतीपूर्ण भूमिकाओं में उनका कोई सानी नहीं है। हिंदी सिनेमा में नेत्रहीनों को काले चश्‍मा पहनाकर, हाथ में छड़ी देकर प्रदर्शित किया जाता रहा है, लेकिन राजकुमार श्रीकांत की भावभंगिमाओं को शिद्दत से आत्‍मसात करते हैं।

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उनकी प्रेमिका स्‍वाति की भूमिका में अलाया एफ मासूम लगी हैं। उनका पात्र श्रीकांत के राह भटकने पर उसे सचेत करने का काम करती है। हालांकि, उनके किरदार को थोड़ा गहराई से दर्शाने की जरूरत थी। टीचर की भूमिका में नजर आई ज्‍योतिका का काम सराहनीय है। उनके जीवन के बारे में भी फिल्‍म कोई बात नहीं करती। रवि की भूमिका में शरद केलकर जंचते हैं।

फिल्‍म में आमिर खान की फिल्‍म 'कयामत से कयामत तक' का गाना पापा कहते हैं बड़ा नाम करेगा का रीक्रियेटेड वर्जन भावों को बढ़ाता है। तनिष्क बागची और सचेत-परंपरा द्वारा संगीतबद्ध गाना 'तू मिल गया' और 'तुम्हें ही अपना मानना है' कहानी साथ सुसंगत है। आम बायोपिक फिल्‍मों की तरह महिमामंडन करने के बजाए यह फिल्‍म दृष्टिहीनों के प्रति बनी धारणा को तोड़ने, उनकी प्रतिभा का सम्‍मान करने और समान अवसर देने की बात करती है।