स्त्री फिल्म में घर की दीवारों पर लिखा होता था कि ओ स्त्री कल आना। फिर जब चंदेरी को स्त्री के डर से विक्की (राजकुमार राव) मुक्त कराता है तो वही स्त्री वहां की रक्षक बन जाती है। अब स्त्री के बाद सरकटे के आंतक का साया चंदेरी पर मंडराने लग जाता है।
स्त्री को नियंत्रण में लाने के बाद विक्की के घर के बाहर के नेमप्लेट पर लिखा है चंदेरी का रक्षक। अचानक चंदेरी से आधुनिक सोच वाली लड़कियां गायब होने लगती हैं। चंदेरी के लोगों को लगता है कि वह शहर अपना करियर बनाने गई हैं, लेकिन उन्हें तो सरकटा लेकर जा रहा है।
ऐसे में स्त्री की चोटी काटने वाली लड़की (श्रद्धा कपूर) फिर लौट आती है। विक्की पर फिर चंदेरी को बचाने की जिम्मेदारी आ जाती है। सरकटा लड़कियों को क्यों ले जा रहा है? उसकी स्त्री से क्या दुश्मनी है? इन सबके जवाब फिल्म देखने पर मिल जाएंगे।
डराती कम, हंसाती ज्यादा है स्त्री 2
पिछली फिल्म का स्क्रीनप्ले राज निदिमोरू और कृष्ण डीके ने लिखा था। उनकी कहानी से ही तालमेल बिठाते हुए इस बार लेखक नीरेन भट्ट ने अकेले स्त्री 2 की पटकथा, कहानी और संवाद लिखे हैं। बातों-बातों में पितृसत्तात्मक समाज की झलक और अपनी शर्तों पर जीने वाली महिलाओं से पुरुषों की दिक्कतों को छूते हुए कहानी बढ़ जाती है।
फिल्म की सबसे बड़ी ताकत इसकी लिखाई ही है, क्योंकि यह संदेश ठूसा हुआ नहीं लगता है। सभी सवाल जो फिल्म देखते वक्त आपके मन में पिछली फिल्म और इस फिल्म की कड़ी को जोड़ने के लिए आएंगे, उनका जवाब मनोरंजक तरीके से देते हुए आगे बढ़ती जाती है।तकनीक की मदद से बना सरकटा भूत आपको रामसे ब्रदर्स के भूतों की याद दिलाएगा, लेकिन इस बार डर का डोज कम और कॉमेडी का ज्यादा है।यह भी पढे़ं:
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अमर कौशिक की निर्देशन पर पकड़ बहुत मजबूत है, वह किसी भी फ्रेम को हल्के में नहीं लेते हैं। स्त्री 2 के असली रक्षक वही हैं। हालांकि, इंटरवल के बाद फिल्म कुछ जगहों पर ढीली पड़ती है। अंत तक आते-आते संभल जाती है।बैकग्राउंड स्कोर कहीं-कहीं कानों को तेज लगता है, लेकिन हॉरर फिल्मों की डिमांड के अनुसार इसे नजरअंदाज करने के अलावा विकल्प नहीं है। अच्छी बात यह है कि सरकटे भूत की कोई डायलॉगबाजी नहीं है, वह केवल डराता है।
अक्षय कुमार का सरप्राइज कैमियो
अक्षय कुमार इस फिल्म का सरप्राइज पैकेज हैं। उनके पात्र के बारे में बताना स्पॉइलर हो जाएगा। चूंकि दिनेश हॉरर फिल्मों का यूनिवर्स बना रहे है तो वरुण धवन भी भेड़िया फिल्म के अवतार में आ जाते हैं। उनकी एंट्री कहीं से भी अटपटी नहीं लगती है, क्योंकि कहानी के साथ उसे ऐसे घोला गया है, जैसे पानी में शक्कर।
पुराने अंदाज में लौटे मुख्य पात्र
राजकुमार राव जैसे ही विक्की के पात्र का चोला पहनकर स्क्रीन पर आते हैं। वह आपको साल 2018 वाले विक्की के पास आसानी से ले जाते हैं। जेना की भूमिका में अभिषेक बनर्जी की शक्ल देखकर ही हंसी आ जाती है। कुछ सीन में तो वह बाकी कलाकारों पर भारी पड़ गए हैं।
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पंकज त्रिपाठी रुद्रा भइया की भूमिका में सबको बांधे रखते हैं। वह बड़ी ही सरलता से कुछ कह जाते हैं और हंसी आ जाती है। अपारशक्ति खुराना के हाथ ज्यादा सीन नहीं लगे हैं, लेकिन जितने समय वह स्क्रीन पर रहते हैं, अपनी उपस्थिति महसूस कराते हैं।फिल्म के अंत में दो गाने एक के बाद एक हैं। हालांकि, उन्हें देखकर ऐसा बिल्कुल नहीं लगता है कि ये क्या हो रहा है, क्योंकि उसमें आप हॉरर यूनिवर्स की अगली कहानी को ढूंढने लग जाते हैं। थिएटर से बाहर निकलने पर तमन्ना भाटिया का गाना आज की रात... याद रह जाता है।
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