Taali Web Series Review: सुष्मिता सेन ने आखिरकार बजवा लीं 'तालियां', 'आर्या' के बाद एक और पॉवरफुल परफॉर्मेंस
Taali Web Series Review ताली बायोपिक वेब सीरीज है जो ट्रांसजेंडर एक्टिविस्ट गौरी सावंत की कहानी है। सुष्मिता सेन ने इस किरदार को निभाया है। सीरीज का निर्देशक रवि जाधव ने किया है। सुष्मिता की यह दूसरी सीरीज है। इससे पहले आर्या में उन्होंने फुल एक्शन वाला रोल निभाया है। यह किरदार उससे बिल्कुल अलग है। सीरीज जियो सिनेमा पर स्ट्रीम हो चुकी है।
नई दिल्ली, जेएनएन। डिज्नी प्लस हॉटस्टार की वेब सीरीज आर्या के बाद सुष्मिता सेन की दूसरी सीरीज ताली जिओ सिनेमा पर 15 अगस्त को रिलीज हो चुकी है। ये दोनों सीरीज बिल्कुल अलग मिजाज की हैं।
आर्या जहां एक्शन पैक्ड काल्पनिक कहानी है तो ताली बायोपिक ड्रामा है, मगर ये दोनों ही किरदार बेहद मजबूत हैं। आर्या और ताली सुष्मिता के अभिनय की रेंज को भी दिखाती हैं। वो जितनी सहज आर्या के रूप में एक्शन करते हुए दिखती हैं, उतनी ही सरलता के साथ ताली की गौरी बन जाती हैं।
ताली, ट्रांसजेंडर कम्यूनिटी के लिए लम्बी कानूनी लड़ाई लड़ने वाली श्रीगौरी सावंत की कहानी है, जिनकी कोशिशों के बाद इसे तीसरा जेंडर माना गया। श्रीगौरी सावंत की अपनी कहानी इतनी जबरदस्त है कि इसे निभाने के लिए किसी दमदार एक्टर की जरूरत थी। इस लिहाज से सुष्मिता सेन ने अपने चुनाव को सही साबित किया है। सीरीज की टैगलाइन ताली बजाऊंगी नहीं, ताली बजवाऊंगी उनकी परफॉर्मेंस पर फिट बैठती है।
क्या है ताली की कहानी?
साल 1988 और शहर पुणे। गणेश (कृतिका देव) स्कूल में पढ़ता है। परिवार में पिता दिनकर सावंत (नंदू माधव) पुलिस में इंस्पेक्टर, मां और बहन स्वाति हैं। गणेश को यह एहसास होने लगता है कि उसका शरीर लड़के का है, मगर अंदर एक लड़की है।
लिपस्टिक लगाना, दुपट्टा ओढ़ना उसे पसंद है। गणेश की ये हरकतें मां को चिंता में डाल देती हैं। पिता को जब यह सब पता चलता है तो उन्हें झटका लगता है और गणेश को यह सब ना करने की चेतावनी देते हैं।
गणेश की जिंदगी में तब भूचाल आता है, जब उसका सबसे बड़ा सपोर्ट सिस्टम मां की मृत्यु हो जाती है। स्वाति की शादी हो जाती है। अब गणेश को पिता के साथ रहना है, जो उसकी भावनाओं को नहीं समझते।
कहानी लीप लेती है और 2013 में पहुंचती है, गणेश सर्जरी के बाद गौरी बन चुका है और एक्टिविस्ट के तौर पर पहचान बना चुका है। आगे की कहानी गौरी की ट्रांसजेंडर्स को तीसरे जेंडर के तौर मान्यता दिलाने के संघर्ष पर आधारित है।
कैसा है स्क्रीनप्ले और अभिनय?
सीरीज की शुरुआत क्लासरूम से होती है। टीचर गणेश से कहती है कि तेरा बाप तो इंस्पेक्टर है, तू पुलिस में ही जाएगा। इस गणेश भोलेपन से कहता है कि उसे मां बनना है। गोल-गोल चपाती बनानी हैं। सब उस पर हंसते हैं। टीचर भी झिड़क देती है।
आगे के दृश्यों में उसे बिंदी, लिपस्टिक और दुपट्टा ओढ़ते हुए दिखाया जाता है। खुद को शीशे में देखकर लड़कियों की तरह शरमाता है। मां उसे इस रूप में देखकर स्तब्ध रह जाती है। बस यहीं से सीरीज की पृष्ठभूमि सेट हो जाती है।
श्रीगौरी सावंत के संघर्ष की कहानी मौजूदा समय की है और इसे लोगों ने घटते हुए देखा है। क्षितिज पटवर्धन लिखित स्क्रीनप्ले में इस कहानी को फ्लैशबैक्स के जरिए दिखाया गया है। कभी टेड टॉक तो कभी इंटरव्यूज के लिए गौरी अपने अतीत में आती-जाती रहती है।
किन्नरों को लेकर संकोच और सोच को मीडिया के सवालों के जरिए दिखाया गया है, जो ट्रांसजेंडर्स को मान्यता देने में सबसे बड़ा रोड़ा था। इस क्रम में गौरी को जलालत भी उठानी पड़ती है।
ट्रांसजेंडर किरदारों को फिल्मों और शोज में जरूरत के हिसाब से दिखाते रहे हैं, मगर ताली एक ऐसे असली किरदार की कहानी है, खुद को आजाद महसूस करने की कहानी है। सुष्मिता सेन ने गौरी के किरदार को पूरे दिल से जीया है। उसकी पीढ़ा, जज्बे और आत्मविश्वास को उन्होंने अपने अभिनय के जरिए पर्दे पर पेश किया है।
किसी फीमेल कलाकार के लिए ऐसा किरदार निभाना जो, पुरुष से महिला बना हो, चुनौतीपूर्ण है। इन किरदारों में भावनाओं का सही प्रस्तुतिकरण सबसे जरूरी होता है। नहीं तो दृश्यों की संजीदगी और संवेदना बिखरते देर नहीं लगती। सिनेमा में ट्रांसजेंडर किरदार पहले भी कलाकार निभाते रहे हैं, मगर सुष्मिता ने गौरी के जरिए एक अलग मुकाम दिया है।
उनकी बड़ी आंखें और गहरी आवाज गौरी के प्रेजेंटेशन को पॉवरफुल बनाते हैं। हालांकि, गौरी का असली भावनात्मक संघर्ष उसके बचपन में रहा है, जब उसे समझने वाला कोई नहीं होता। पिता के लिए तो यह और भी मुश्किल है। गौरी के बचपन वाले हिस्से को कृतिका राव ने बेहतरीन ढंग से निभाया है।
किन्नर समुदायों को लेकर कुछ चर्चित बातों को सीरीज में खास परिस्थितियों में दिखाया गया है, जो कहीं अखरता भी है। मराठी सिनेमा के जाने-माने फिल्ममेकर रवि जाधव वे सीरीज का निर्देशन पूरी जिम्मेदारी से किया है और उन्होंने कहानी को ऐसे ट्रीट किया है, इसकी गरिमा बनी रहे। ताली में लगभग आधे घंटे अवधि के छह एपिसोड्स हैं।
सुष्मिता सेन की अदाकारी के लिए सीरीज को बिंज वॉच किया जा सकता है। बैकग्राउंड स्कोर कहानी के असर को गहरा करता है और दृश्यों के भावनात्मक मोड़ देने में मदद करता है।