Tarla Review: लेखन और अभिनय के सही मसालों से बनी जायकेदार फिल्म, हुमा कुरैशी का बेहतरीन अभिनय
Tarla Movie Review तरला मशहूर शेफ तरला दलाल की बायोपिक फिल्म और उनके संघर्ष को दिखाती है। यह उस समय की कहानी है जब कुकिंग को रसोई के दायरे से निकालकर करियर के विकल्प के तौर पर देखा गया। मगर इस करियर में चुनौतियां कम नहीं। किसी हाउसवाइफ को करियर बनाने के लिए कितना संघर्ष करना पड़ता है तरला वो सब दिखाती है।
By Manoj VashisthEdited By: Manoj VashisthUpdated: Fri, 07 Jul 2023 01:44 PM (IST)
प्रियंका सिंह, मुंबई। हर कामयाब आदमी के पीछे एक औरत होती है और हर कामयाब औरत के पीछे एक कहानी। इसी कहानी को सरलता से दर्शाया गया है फिल्म तरला में, जो पद्मश्री से सम्मानित पाक कला में अव्वल शेफ और कुक बुक लेखिका तरला दलाल की जिंदगी पर आधारित है।
क्या है तरला की कहानी?
कहानी शुरू होती है पुणे से। तरला (हुमा कुरैशी) अपनी प्रोफेसर की चाल देखकर कहती हैं कि उनके चलने के अंदाज से पता चलता है, वह जीवन में कहीं आगे जाएंगी। तरला को भी कुछ करना है, लेकिन क्या, उसे पता नहीं है। इसी बीच उनकी शादी मुंबई के मिल में बतौर इंजीनियर काम करने वाले नलिन दलाल (शारिब हाशमी) से तय हो जाती है।
नलिन उसे इस बात का भरोसा दिलाते हैं कि शादी के बाद वह अपने सपनों को पूरा कर सकती हैं। 12 साल बीत जाते हैं। तरला तीन बच्चों की मां बन जाती है। उसे अहसास होता है कि उसने तो जीवन में कुछ किया ही नहीं। एक दिन शाकाहारी तरला, नलिन को नॉनवेज खाते देख लेती है। वह नलिन के लिए ऐसा शाकाहारी खाना बनाती हैं, जिसकी खुशबू मांसाहारी व्यंजनों जैसी होती है।
जैसे मुर्ग मुसल्लम बन जाता है बटाटा मुसल्लम, चिकन 65 बन जाता है गोभी 65। पड़ोस में रहने वाली आंटी (भारती आचरेकर) तरला से कहती है कि वह उसकी बेटी काव्या को खाना बनाना सिखा दे, क्योंकि उसकी शादी तय होने वाली है। तरला की पनीर कोफ्ता की रेसिपी से काव्या अपनी सास का दिल जीत लेती है।
उसकी सास उसे शादी के बाद नौकरी करने की इजाजत दे देती है। शादी में कई मांएं तरला से उनकी बेटियों के लिए खाना बनाने का ट्यूशन देने के लिए कहती हैं। कुकिंग क्लास से शुरू हुआ तरला का सफर टीवी पर कुकिंग शो तक पहुंच जाता है। क्या यह सफर आसान था? यकीनन नहीं।