Thai Massage Review: मुद्दा है अच्छा लेकिन कहानी वीक, कन्फ्यूज कर देगी दिव्येंदु शर्मा और गजराज राव की फिल्म
Thai Massage Review राजपाल यादव दिव्येंदु शर्मा और गजराज राव स्टारर फिल्म थाई मसाज सिनेमाघरों में रिलीज हो रही है। इस फिल्म में इन स्टार्स ने काफी अच्छा मुद्दा उठाने की कोशिश की है हालांकि ये फिल्म पूरी तरह से दर्शकों को निराश करती है।
By Tanya AroraEdited By: Updated: Fri, 11 Nov 2022 12:28 AM (IST)
प्रियंका सिंह, मुंबई।Thai Massage Review: बुजुर्गों के नजरिए से बनीं फिल्मों में निर्देशक मंगेश हाडवले निर्देशित थाई मसाज भी शामिल हो गई है। फिल्म की कहानी शुरू होती है उज्जैन में रहने वाले आत्माराम दुबे (गजराज राव) से, जो बैंक में टाइपिस्ट थे। अब रिटायर होकर घर के कामों में हाथ बंटाने के साथ ही टाइपराइटर से स्केच बनाना सिखाते हैं। उनका अपना ब्लॉग भी है। उनका पूरा परिवार उनसे 70वें जन्मदिन की पार्टी के लिए घर पर जमा है। बच्चों की मस्ती में आत्माराम की पत्नी की फोटो फ्रेम गिरकर टूट जाती है। उस फ्रेम के पीछे आत्माराम का पासपोर्ट चिपकाया हुआ है। पासपोर्ट में थाईलैंड का विजा और विदेशी महिला के साथ उनकी तस्वीर मिलती है। तीन साल पहले आत्माराम परिवार से तीर्थयात्रा का बहाना करके थाईलैंड चले गये थे।
आत्माराम की पत्नी लंबे समय तक बीमार रहने के बाद एक साल पहले ही गुजरी है। आत्माराम की अंतरंग इच्छाएं अधूरी हैं। वह एक बार यौन संबंध बनाना चाहता है, लेकिन वह इरेक्टाइल डिसफंक्शन (यौन संबंधी रोग) से पीड़ित है। इलाज के लिए संतुलन कुमार (दिव्येन्दु) उसे एक पहलवान के पास ले जाता है, जो 85 की उम्र में बच्चा पैदा करके रिकॉर्ड बना चुका है। उसके बताये नुस्खे को आजमाकर आत्माराम अपनी अंतरंग इच्छाएं पूरी करने के लिए थाईलैंड पहुंचता है।
फिल्म की कहानी, पटकथा और निर्देशन तीनों का जिम्मा मंगेश हाडवले ने उठाया है। उन्हें अपनी फिल्मों चलो जीते हैं और देख इंडियन सर्कस के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार मिल चुका है, लेकिन उनकी यह फिल्म निराश करती है।
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एक बुजुर्ग के नजरिए से उसकी दबी इच्छाओं पर बात करने का उनका प्रयास अच्छा है, लेकिन उसे दर्शाने का तरीका ऊबाऊ है। आत्माराम के चरित्र को छोड़कर फिल्म के बाकी चरित्रों पर मंगेश ने ध्यान देना जरूरी नहीं समझा। संतुलन कुमार का चरित्र, फिल्म में क्यों है, कहां से टपक पड़ता है, पत्नी से उसकी क्यों अनबन है, वह आत्माराम की मदद या उसका मजाक क्यों बना रहा है, उसके पीछे कोई कारण स्पष्ट नहीं है। बेटे का पिता की इच्छाओं के बारे में पता चलने के बाद नाराज होना और फिर बैकग्राउंड में चल एक लंबे से संवाद को बोलते हुए उसकी समस्या को समझ लेना पचता नहीं है। इरेक्टाइल डिसफंक्शन की समस्या को प्याज खाकर ठीक करने वाला प्रसंग बेहद बचकाना लगता है। इस बीमारी से जूझ रहे लोगों के प्रति संवेदनशीलता दिखाने की आवश्यकता थी।
जीवनसाथी के बिना बुढ़ापे के अकेलेपन, मन में यौन संबंध की प्रबल इच्छा को समाज के डर से दबाए रखने वाले बुजुर्ग का चरित्र शिद्दत से निभाया है। वह फिल्म में हंसाते जरूर हैं, लेकिन भावुक दृश्यों में रुलाते नहीं हैं। संतुलन का चरित्र ही आधा-अधूरा है, तो दिव्येन्दु भला कहां तक अपने अभिनय से उसे संभाल पाते। राजपाल यादव जैसे कॉमेडी में माहिर कलाकार का प्रयोग मंगेश नहीं कर पाए। फिल्म कई जगहों पर खटकती है, जैसे आत्माराम का अपना ब्लॉग है, लेकिन कंप्यूटर पर अंतरंग वीडियो को शुरू करने के बाद वह उसे बंद नहीं कर पाता है। उम्र का तकाजा होता है... इस उम्र में इच्छाएं पनप रही होती, तो इच्छाएं उम्र अनुसार होनी चाहिए... यह संवाद भी खास प्रभावित नहीं करते हैं। फिल्म का कोई गाना फिल्म खत्म होने के बाद याद नहीं रहता है।
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फिल्म – थाई मसाजमुख्य कलाकार – गजराज राव, दिव्येन्दु शर्मा, राजपाल यादवनिर्देशक – मंगेश हाडवलेअवधि – 122 मिनटरेटिंग – डेढ़यह भी पढ़ें: Banaras Movie Review: कांतारा के बाद आई एक और कन्नड़ फिल्म 'बनारस', टाइम ट्रैवल पर बेस्ड है मूवी, पढ़ें रिव्यूयह भी पढ़ें: Phone Bhoot Review: कटरीना की फिल्म में न डर है और न कॉमेडी, यहां पढ़ें 'फोन भूत' का पूरा रिव्यू