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Thalaivii Review: कंगना के दमदार अभिनय ने जीता दिल, प्रभावी डायलॉग्स ने बनाया फिल्म को बेहतरीन

तमिलनाडु की पूर्व मुख्यमंत्री जयललिता की जिंदगी पर बनी फिल्म ‘थलाइवी’ सिनेमाघरों में रिलीज हुई है। फिल्म का निर्देशन विजय ने किया है। तीन भाषाओं में रिलीज हुई इस फिल्म की शुरुआत विधानसभा के भीतर हुए उस घटनाक्रम से होती है

By Pratiksha RanawatEdited By: Updated: Sat, 11 Sep 2021 07:20 AM (IST)
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कंगना रनोट की तस्वीर, फोटो साभार: Instagram
प्रियंका सिंह। तमिलनाडु की पूर्व मुख्यमंत्री जयललिता की जिंदगी पर बनी फिल्म ‘थलाइवी’ सिनेमाघरों में रिलीज हुई है। फिल्म का निर्देशन विजय ने किया है। तीन भाषाओं में रिलीज हुई इस फिल्म की शुरुआत विधानसभा के भीतर हुए उस घटनाक्रम से होती है, जहां करुणानिधि (नासर) की पार्टी के नेता जयललिता (कंगना रनोट) की साड़ी खींचकर भरी सभा में उनका अपमान करते हैं। वे कसम खाती हैं कि अब विधानसभा में मुख्यमंत्री बनकर ही लौटेंगी। वहां से कहानी अतीत में जाती है, जब युवा जया उर्फ जयललिता को उनकी मां संध्या (भाग्यश्री) टॉप की हीरोइन बनाने की कोशिशों में लगी हैं।

जया को सुपरस्टार एमजीआर (अरविंद स्वामी) के साथ फिल्म मिल जाती है। जया और एमजीआर की जोड़ी हिट हो जाती है। दोनों को एकदूसरे के प्रति लगाव भी हो जाता है। एमजीआर अभिनय छोड़कर राजनीति में सक्रिय हो जाते हैं। करुणानिधि की पार्टी छोड़ने के बाद वह खुद की पार्टी बनाकर मुख्यमंत्री बनते हैं। राजनेता का कर्तव्य निभाने के लिए वह जया से दूर हो जाते हैं। एक वक्त ऐसा आता है, जब जया एमजीआर की पार्टी में प्रोपेगेंडा (प्रचार करने वाली) सेक्रेटरी के तौर पर शामिल हो जाती हैं। वहां से जया का राजनीति का सफर शुरू होता है।

जैसा कि ज्यादातर बायोपिक्स में होता है, सकारात्मक पहलुओं को ही आगे रखा जाता है। यह फिल्म भी अपवाद नहीं है। जयललिता से जुड़े किसी भी विवाद का जिक्र फिल्म में नहीं है। उन्हें अम्मा और थलाइवी बनाने वाले प्रसंग ज्यादा रखे गए हैं। फिल्म के पहले हाफ में कहानी जयललिता से ज्यादा एमजीआर की लगती है। उनके फिल्मी करियर और एमजीआर के साथ उनके रिश्तों पर ज्यादा फोकस है, लेकिन इंटरवल के बाद कहानी जब जयललिता के राजनेता बनने की ओर बढ़ती है, तो रफ्तार पकड़ती है। निर्देशक विजय ने हर सीन में बारीकी से काम किया है। फिल्म इंडस्ट्री और राजनीति में पुरुषों के वर्चस्व के बीच एक महिला को खुद को साबित करने के लिए कितनी मेहनत करनी पड़ती है और अपने आत्मसम्मान के लिए लड़ना पड़ता है, इसे विजय पर्दे पर दर्शाने में कामयाब रहे हैं।

पिछली सदी के छठे और सातवें दशक में गढ़ी कहानी के लिए सेट का परिवेश समुचित तरीके से गढ़ा गया है। फैशन डिजाइनर नीता लुल्ला ने उस दौर के फैशन को जीवंत किया है। कंगना का अभिनय प्रभावशाली है। उन्होंने भरी सभा में महिला के अपमान, अपने गुरु, मार्गदर्शक एमजीआर के प्रति नि:स्वार्थ प्रेम की भावना, उस दौर की हीरोइन के अंदाज और राजनेता बनने के जुनून को बखूबी पर्दे पर उतारा है। जयललिता के बढ़े हुए वजन का हिस्सा फिल्म में छोटा है, लेकिन कंगना उसमें भी प्रभावित करती हैं। अरविंद स्वामी भी एमजीआर के प्रभावशाली व्यक्तित्व को दर्शाने में कामयाब रहे। फिल्म का सबसे दिलचस्प किरदार रहा राज अर्जुन का। एमजीआर के नजदीकी आरएमवी के किरदार में राज ने कई दृश्यों को अपना बना लिया। करुणानिधि की छोटी-सी भूमिका में नासर जंचे हैं। मां के किरदार में भाग्यश्री का काम अच्छा है। मधु के हिस्से खास सीन नहीं आए हैं। फिल्म के प्रभावशाली डायलाग, जैसे - फिल्म औरत के बिना फीकी लगती है, लेकिन जब वह औरत किसी पोजिशन पर आती है, तो सबको मिर्ची लगती है... या महाभारत का दूसरा नाम जया है... का श्रेय डायलाग राइटर रजत अरोड़ा को जाता है।

प्रमुख कलाकार : कंगना रनोट, अरविंद स्वामी, राज अर्जुन, भाग्यश्री

निर्देशक : विजय

अवधि : दो घंटे 33 मिनट