Thank You For Coming Review: अधूरी ख्वाहिश की कहानी में भूमि ने निभाई अपनी जिम्मेदारी, पढ़ें- कहां चूकी फिल्म?
Thank You For Coming Review थैंक यू फॉर कमिंग में भूमि पेडणेकर ने लीड रोल निभाया है। उनके साथ शहनाज गिल और कुशा कपिला सहयोगी भूमिकाओं में हैं। फिल्म की कहानी भूमि के किरदार के इर्द-गिर्द घूमती है। फिल्म का निर्देशन करण बूलानी ने किया है। रिया कपूर और एकता कपूर निर्माता हैं। अनिल कपूर ने भी फिल्म में छोटी सी भूमिका निभायी है।
By Manoj VashisthEdited By: Manoj VashisthUpdated: Fri, 06 Oct 2023 01:48 PM (IST)
प्रियंका सिंह, मुंबई। महिलाओं की यौन इच्छाओं और आशाओं पर कुछ कहानियां हिंदी सिनेमा में कही गई हैं। निर्माता रिया कपूर और एकता कपूर की जोड़ी महिला दोस्तों की जिंदगानी पर फिल्म वीरे दी वेडिंग बना चुकी हैं, जिसमें कई मुद्दों पर बात की गई थी।
अब उनके प्रोडक्शन में बनी फिल्म थैंक यू फार कमिंग की कहानी भी तीन महिला दोस्तों के आसपास है, लेकिन इस बार मुद्दा अलग और कन्फ्यूजिंग है।
क्या है थैंक यू फॉर कमिंग की कहानी?
फिल्म की कहानी दिल्ली की रहने वाली कनिका कपूर (भूमि पेडणेकर) से शुरू होती है। कनिका की परवरिश सिंगल मां (नताशा रस्तोगी) ने की है। घर में नानी (डॉली अहलूवालिया) भी है। कनिका को स्कूल में कांडू कनिका के नाम से बुलाया जाता है, क्योंकि वह कई ऐसी बातें कर जाती है, जिसकी उम्मीद उस उम्र में बच्चों से नहीं की जाती है।यह भी पढ़ें: OTT Female Centric Films- इन फिल्मों में लड़कियों ने छुड़ाये लड़कों के छक्के, इस वीकेंड देखने का बना लें प्लान
फूड ब्लॉगर कनिका परियों की कहानी की तरह अपने मिस्टर परफेक्ट की तलाश में है, लेकिन 32 साल की उम्र तक भी वह परफेक्ट लड़का नहीं मिला है, जो उसे यौन सुख दे सके। इस चक्कर में वह तीन लोगों के साथ रिश्ते बनाकर तोड़ चुकी है।
उसकी नानी का मानना है कि जिंदगी जीने की लिस्ट में शादी पर भी टिक मार्क होना जरूरी है। कनिका अरेंज मैरिज के लिए तैयार हो जाती है। सगाई वाले दिन नशे में चूर कनिका के साथ कुछ ऐसा होता है, जिसकी तलाश उसे कब से थी।
कैसा है स्क्रीनप्ले और अभिनय?
फिल्म का निर्देशन रिया कपूर के पति करण बूलानी ने किया है। सेलेक्शन डे सीरीज का निर्देशन कर चुके करण के लिए यह नया जोन था। ऐसे में उन्हें मजबूत कहानी की जरूरत थी, लेकिन राधिका आनंद और प्रशस्ति सिंह की लिखी यह कहानी कई मामलों में कमजोर साबित होती है। अहम मुद्दे की ओर जाने का असफल प्रयास करती कमजोर कहानी के साथ करण कहां तक फिल्म को खींच पाते। खासकर आज के दौर में जहां डिजिटल प्लेटफॉर्म महिलाओं के नजरिए से दमदार कहानियां परोस रहा है। कनिका पेशे से फूड ब्लॉगर है, लेकिन आत्मनिर्भर महिला होने की झलक कहीं से दिखाई नहीं देती है।वह शुरू से अंत तक वह केवल यौन सुख की तलाश ही करती रह जाती है। उसकी सहेलियां भी हर वक्त उसकी इस इच्छा पर ज्ञान देने के लिए उसके आसपास ही मौजूद रहती हैं। उन्हें भी कोई काम करते नहीं दिखाया गया है। फिल्म में किरदार तो बहुत हैं, लेकिन किसी के भी जिंदगी में फिल्म गहराई से नहीं जाती है।फिल्म के संवाद कहीं-कहीं इतने निम्न स्तर के हो जाते हैं कि वह महिला और पुरुष दोनों को ही आहत कर सकते हैं। फिल्म जब मध्यांतर तक पहुंचती हैं, तभी दिमाग में प्रश्न घूमने लग जाता है कि इस फिल्म को बनाने का औचित्य क्या है? इसका जवाब अंत में यह मिलता है कि कनिका को यौन सुख पाने के लिए किसी की जरूरत ही नहीं है, जो फिर सही-गलत के बीच प्रश्न बनकर रह जाता है। फिल्म में कनिका का हाईस्कूल की बच्ची को यह समझाना कि तुम जब सहज हो, तब किसी लड़के के साथ संबंध बनाना, उस नाजुक उम्र के लिए सही सलाह नहीं लगती है।इसे लेखक को और जिम्मेदारी के साथ लिखना चाहिए था। करण ने फिल्म में किस स्कूल का रेफरेंस लिया है, पता नहीं, क्योंकि कानों में स्टाइलिश बालियां और नीले-हरे रंग के बालों में दिखाई देती स्कूल की हेड गर्ल वास्तविक स्कूल की लड़कियों से कोसों दूर लगती है।
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