Thappad Movie Review: कई लोगों की सोच पर करारा 'थप्पड़' है तापसी और पावेल की फिल्म, जानें कहानी
Thappad Movie Review अगर आप आज थप्पड़ देखने का प्लान बना रहे हैं तो उससे पहले फिल्म की स्टोरी जान लीजिए।
By Nazneen AhmedEdited By: Updated: Fri, 28 Feb 2020 11:08 AM (IST)
पराग छापेकर, मुंबई। अच्छा सिनेमा क्या होता है अच्छा सिनेमा वो होता है जो कहीं ना कहीं दर्शकों के दिलों दिमाग पर असर डालता है। प्रोजेक्ट के दौड़ में मशगूल बॉलीवुड में सिनेमा की कमी सभी देख रहे हैं मगर गाहे-बगाहे कुछ ऐसी फिल्में आ जाती है इसे देखकर आप कह उठते हैं वाह क्या सिनेमा है।
अनुभव सिन्हा अपने कायाकल्प के बाद जिस तरह का सिनेमा बना रहे हैं वह वाकई तारीफे काबिल है! उनकी फिल्म ‘थप्पड़’ का शुमार अच्छे सिनेमा में जरूर होगा। मात्र एक विचार है शादीशुदा जिंदगी में कोई पति अपनी पत्नी को किसी भी कारण से किसी भी परिस्थिति में ‘थप्पड़’ मारने का हक नहीं रखता।अमूमन भारतीय समाज में पति अगर अपनी पत्नी को मार दे तो ना सिर्फ उसके सास-ससुर बल्कि लड़की के मां-बाप भी यह कहते नजर आते हैं कि पति पत्नी में थोड़ा बहुत लड़ाई झगड़ा तो चलता रहता है। और ‘थप्पड़’ यह कहती है कि कभी भी थप्पड़ मारना सही नहीं है, इसका अधिकार पति को नहीं है। थप्पड़ मारना न सिर्फ नैतिक रूप से गलत है बल्कि कानून भी गलत है।
इस विचार को निर्देशक अनुभव सिन्हा और उनकी सह लेखिका मृण्मई लागू ने बहुत ही खूबसूरती के साथ न सिर्फ कहानी में गढ़ा, बल्कि पटकथा और संवादों के माध्यम से दर्शकों को यह समझाने का सफलतम प्रयास किया कि आखिर गलत कहां है। फिल्म देखने के बाद सारे मर्दों को इस बात का एहसास होगा, साथ ही शर्मिंदगी भी... जाने अनजाने कैसे सदियों पुराना पुरुष जो हमारे भीतर बसा हुआ है गलतियां करता है और उन गलतियों का एहसास तक हम लोग नहीं कर पाते।
थप्पड़ अपने समय की बहुत महत्वपूर्ण फिल्म है इसे देखा जाना बहुत जरूरी है। तापसी पन्नू वैसे ही एक समर्थ अभिनेत्री हैं मगर ‘थप्पड़’ में उनका एक अलग ही आयाम सामने आया है अभिनय कि जिन ऊंचाइयों को वह छूती हैं उस उच्च स्तर पर वह अभी तक नहीं गई थीं।
उनके पति का किरदार निभा रहे पावेल ने अपनी पहली ही फिल्म से साबित कर दिया वह एक समर्थ कलाकार हैं। किरदार में कई सारी परतें थीं वह एक ऐसे पति का का किरदार निभा रहे हैं जो पॉजिटिव होते हुए भी गलत है और वह कहां गलत है इस बात का एहसास उसे नहीं है। इसे पर्दे पर उतारना वाकई मुश्किल काम था जो पावेल ने पूरी कुशलता से किया है। इसके अलावा दिया मिर्जा की मौजूदगी दृश्य को और मजबूत बना देती है। कुमुद मिश्रा रत्ना पाठक शाह जैसे कलाकार फिल्म को नई ऊंचाइयां देते हैं। उल्लेखनीय परफॉर्मन्स रहा काम वाली बनी गीतिका विद्या का। कुल मिलाकर ‘थप्पड़’ आज के दौर की एक महत्वपूर्ण फ़िल्म है जिसे देखना वाकई आपको एक अलग अनुभव देगा।
रेटिंग : 4 स्टार्स