The Buckingham Murders Review: 'मर्डर मिस्ट्री' में रोमांच की कमी के बीच Kareena Kapoor का जबरदस्त अभिनय
The Buckingham Murders फिल्म क्रू के बाद करीना कपूर खान (Kareena Kapoor Khan) ने बतौर एक्ट्रेस सिल्वर स्क्रीन पर वापसी कर ली है। उनकी लेटेस्ट फिल्म द बकिंघम मर्डर्स आज से सिनेमाघरों में रिलीज हो गई। मर्डर मिस्ट्री पर आधारित इस मूवी का निर्देशन हंसल मेहता ने किया है। आइए जानते हैं कि समीक्षा के आधार पर ये मूवी कितनी खरी उतरती है।
प्रियंका सिंह, मुंबई डेस्क। क्रू जैसी सफल कमर्शियल फिल्मों के बीच अभिनेत्री करीना कपूर (Kareena Kapoor) अलग तरह के सिनेमा के लिए भी समय निकाल रही हैं। उनकी फिल्म जाने जान भी उसी जोन में थी। अब सिनेमाघरों में रिलीज हुई द बकिंघम मर्डर्स (The Buckingham Murders) भी आम कमर्शियल फिल्मों से अलग है।
क्या है स्टोरी प्लॉट
कहानी है शुरू होती है ब्रिटेन में रहने वाली जसमीत भामरा उर्फ जैस (करीना कपूर) से, जिसके बेटे को एक मनोरोगी बिना किसी कारण गोली मार देता है। वह अब उस घर में नहीं रहना चाहती है, जहां उसके बेटे की यादें हैं। पुलिस डिपार्टमेंट में कार्यरत जैस ट्रांसफर लेकर बकिंघमशायर शहर चली जाती है।ये भी पढ़ें- Tanaav 2 Review: कश्मीर में आया सीरिया से नया दुश्मन, घाटी के अंदरूनी 'तनाव' पर मानव विज का दमदार पंच
वहां पर पहुंचते ही उसे गायब हुए एक बच्चे का केस सौंप दिया जाता है। अपने बेटे की मौत से सदमे में जैस पहले तो केस लेने से मनाकर देती है, लेकिन कोई विकल्प न होने के कारण उसे छानबीन शुरू करनी पड़ती है।
ओटीटी टाइप की मूवी
फिल्म देखते समय सबसे पहला ख्याल यही आता है कि इसे डिजिटल प्लेटफार्म की बजाय सिनेमाघरों में क्यों रिलीज किया गया। फिल्म का न ही बहुत ज्यादा प्रमोशन किया गया था, न ही सितारों ने कोई इंटरव्यू हुआ। खैर, फिल्म की कहानी लेखक असीम अरोड़ा, राघव राज कक्कड़ और कश्यप कपूर ने लिखी है।
कहानी साधारण सी है कि बेटे के मौत से दुखी मां को दूसरे गायब हुए बच्चे का केस मिलता है और वह कैसे अपने अंतरद्वंद और तकलीफों से गुजरते हुए केस को सुलझाती है। लेकिन इस बीच विदेशी धरती पर सिख और मुसलमानों के बीच धार्मिक तनाव, समलैंगिकता, घरेलू हिंसा, काम की जगह पर पुरुषों का महिलाओं को खुद से कम समझने वाली छोटी सोच समेत कई चीजें कहानी में जोड़ने का प्रयास किया गया है, जो किसी अंजाम तक नहीं पहुंचता है।
यह क्राइम थ्रिलर फिल्म इन मुद्दों के बिना भी आगे बढ़ सकती थी। ऐसी फिल्मों में हर मोड़ पर रोमांच की जरुरत होती है, जब लगे कि कातिल ये भी हो सकता है। खैर, मध्यांतर के बाद निर्देशक हंसल मेहता इस कमी को ठीक कर देते हैं।