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The Buckingham Murders Review: 'मर्डर मिस्ट्री' में रोमांच की कमी के बीच Kareena Kapoor का जबरदस्त अभिनय

The Buckingham Murders फिल्म क्रू के बाद करीना कपूर खान (Kareena Kapoor Khan) ने बतौर एक्ट्रेस सिल्वर स्क्रीन पर वापसी कर ली है। उनकी लेटेस्ट फिल्म द बकिंघम मर्डर्स आज से सिनेमाघरों में रिलीज हो गई। मर्डर मिस्ट्री पर आधारित इस मूवी का निर्देशन हंसल मेहता ने किया है। आइए जानते हैं कि समीक्षा के आधार पर ये मूवी कितनी खरी उतरती है।

By Ashish Rajendra Edited By: Ashish Rajendra Updated: Fri, 13 Sep 2024 02:28 PM (IST)
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रिलीज हुई करीना कपूर की नई फिल्म (Photo Credit-Jagran)
प्रियंका सिंह, मुंबई डेस्क। क्रू जैसी सफल कमर्शियल फिल्मों के बीच अभिनेत्री करीना कपूर (Kareena Kapoor) अलग तरह के सिनेमा के लिए भी समय निकाल रही हैं। उनकी फिल्म जाने जान भी उसी जोन में थी। अब सिनेमाघरों में रिलीज हुई द बकिंघम मर्डर्स (The Buckingham Murders) भी आम कमर्शियल फिल्मों से अलग है।

क्या है स्टोरी प्लॉट

कहानी है शुरू होती है ब्रिटेन में रहने वाली जसमीत भामरा उर्फ जैस (करीना कपूर) से, जिसके बेटे को एक मनोरोगी बिना किसी कारण गोली मार देता है। वह अब उस घर में नहीं रहना चाहती है, जहां उसके बेटे की यादें हैं। पुलिस डिपार्टमेंट में कार्यरत जैस ट्रांसफर लेकर बकिंघमशायर शहर चली जाती है।

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वहां पर पहुंचते ही उसे गायब हुए एक बच्चे का केस सौंप दिया जाता है। अपने बेटे की मौत से सदमे में जैस पहले तो केस लेने से मनाकर देती है, लेकिन कोई विकल्प न होने के कारण उसे छानबीन शुरू करनी पड़ती है।

ओटीटी टाइप की मूवी

फिल्म देखते समय सबसे पहला ख्याल यही आता है कि इसे डिजिटल प्लेटफार्म की बजाय सिनेमाघरों में क्यों रिलीज किया गया। फिल्म का न ही बहुत ज्यादा प्रमोशन किया गया था, न ही सितारों ने कोई इंटरव्यू हुआ। खैर, फिल्म की कहानी लेखक असीम अरोड़ा, राघव राज कक्कड़ और कश्यप कपूर ने लिखी है।

कहानी साधारण सी है कि बेटे के मौत से दुखी मां को दूसरे गायब हुए बच्चे का केस मिलता है और वह कैसे अपने अंतरद्वंद और तकलीफों से गुजरते हुए केस को सुलझाती है। लेकिन इस बीच विदेशी धरती पर सिख और मुसलमानों के बीच धार्मिक तनाव, समलैंगिकता, घरेलू हिंसा, काम की जगह पर पुरुषों का महिलाओं को खुद से कम समझने वाली छोटी सोच समेत कई चीजें कहानी में जोड़ने का प्रयास किया गया है, जो किसी अंजाम तक नहीं पहुंचता है।

यह क्राइम थ्रिलर फिल्म इन मुद्दों के बिना भी आगे बढ़ सकती थी। ऐसी फिल्मों में हर मोड़ पर रोमांच की जरुरत होती है, जब लगे कि कातिल ये भी हो सकता है। खैर, मध्यांतर के बाद निर्देशक हंसल मेहता इस कमी को ठीक कर देते हैं।

हंसल का शानदार डायरेक्शन

ज्यादातर वास्तविक कहानियों और मुद्दों पर फिल्में बनाने वाले हंसल ने इस फिल्म से नया प्रयोग किया है। यह फिल्म उनकी पिछले कामों से बेहद अलग है। बकिंघमशायर शहर भी एक किरदार की तरह है। फिल्म को वास्तविकता के करीब रखने के लिए फिल्म को हिंदी के साथ हिंग्लिश में रिलीज किया गया है, तो टिकट ध्यान से बुक करें, क्योंकि हिंग्लिश फिल्म में 80 प्रतिशत अंग्रेजी का प्रयोग है, जो हिंदी दर्शकों के फिल्म देखने का मजा किरकिरा कर सकता है।

कैसी रही कास्ट की एक्टिंग

फिल्म में कई खामियां भी हैं, जैसे दूसरे डीएनए मैच की रिपोर्ट पहले ही आ जानी चाहिए थी, क्योंकि सदस्य परिवार का करीबी ही होता है, जो शक के दायरे में भी था। हालांकि, फिल्म का क्लाइमेक्स चौंकाने वाला है।

अभिनय की बात करें, तो करीना कपूर ने बेहद सधा हुआ काम किया है।

बच्चे को खोने का दर्द, असहाय मां की तरह कुछ न कर पाने का गुस्सा, दोनों ही भावनाओं को भीतर रखकर, चेहरे के जरिए दर्शकों को महसूस कराने में वह कामयाब हुई हैं। दूसरे मृत बच्चे के पिता के रोल में शेफ रणवीर बरार साबित करते हैं कि वह खाने के ही नहीं अभिनय के मसालों को भी खूब समझते हैं।

उनकी पत्नी की भूमिका में प्रभलीन संधू को कई भावनाओं को जीने का मौका मिला है, जिसमें उन्होंने प्रभावशाली काम किया है। जैस के सीनियर अफसर की भूमिका में एश टंडन जंचते हैं। रेखा भारद्वाज का गाया गीत हल्की खनक सी... कहानी के साथ बखूबी घुल जाता है।

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