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Tikdam Review: बर्फ गिराओ, पापा लाओ! तिकड़मी बच्चों की इमोशनल कहानी में अमित सियाल को पूरे नम्बर

तिकड़म उन फिल्मों में शामिल है जिनकी कहानियों में एक मासूमियत और साफगोई की अंतर्धारा रहती है। इन्हें देखते हुए कभी चेहरे पर मुस्कान आती है तो कभी उदासी छा जाती है। सिचुएशंस से भावनात्मक जुड़ाव भी बांधकर रखता है। तिकड़म में अमित सियाल लीड रोल में हैं और इस बार उन्होंने ओटीटी की सारी नेगेटिविटी को धो दिया है।

By Jagran News Edited By: Manoj Vashisth Updated: Fri, 23 Aug 2024 02:14 PM (IST)
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तिकड़म जिओ सिनेमा पर आ गई है। फोटो- इंस्टाग्राम

प्रियंका सिंह, मुंबई। जागरण फिल्म फेस्टिवल 2023 में स्पेशल मेंशन फिल्म का अवॉर्ड पाने वाली फिल्म तिकड़म जिओ सिनेमा पर रिलीज हो गई है। 

क्या फिल्म की कहानी?

कहानी शुरू होती पर्यटन स्थल सुखताल में एक होटल में काम कर रहे प्रकाश (अमित सियाल) से, जो कम सैलरी में भी अपने बच्चों के साथ खुश है। वह दोगुनी सैलरी मिलने पर भी अपने बच्चों और माता-पिता को छोड़ने के लिए तैयार नहीं है।

सुखताल में कई साल से बर्फ नहीं पड़ रही है, ऐसे में होटल बंद हो जाता है। खुद फटे जूतों से काम चला रहा प्रकाश अपने बच्चों को ख्वाहिशों को पूरा नहीं कर पाता है। उसे होटल की तरफ से मुंबई में काम मिल जाता है।

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जब उसके बच्चों चीनी (आरोही साउद) और समय (अरिष्ट जैन) को पता चलता है कि पिता नौकरी करने के लिए शहर जा रहे हैं तो वह अपने स्कूल के दोस्त भानु (दिव्यांश द्विवेदी) के साथ मिलकर सुखताल में बर्फ गिरवाने के कई तिकड़म करते हैं, ताकि जो पिता पर्यटन कम होने के कारण अपनी नौकरी खोकर घर से दूर दूसरे शहरों में गए हैं, वे वापस आ सकें। उनका नारा होता है बर्फ गिराओ, पापा लाओ।

पिता और बच्चों का भावुक बंधन

फिल्म की कहानी अनिमेश वर्मा की है, जबकि इसकी पटकथा और संवाद पंकज निहलानी और विवेक आंचलिया ने लिखे हैं। फिल्म की सबसे खूबसूरत बात इसकी सादगी ही है, जो बिना किसी शोरशराबे के बच्चों के जरिए अहम संदेश देती है। पिता और बच्चों के बीच के अटूट बंधन को भावनाओं की चाशनी में डूबोकर दिखाती है।

विवेक की यह पहली फीचर फिल्म हैं, उनकी पकड़ निर्देशन पर मजबूत है। कहीं भी उन्होंने फिल्म में बेवजह के लंबे और धीमे सीन नहीं रखे हैं। ना ही उन्होंने सुखताल में बर्फ गिरवाने के लिए कोई चमत्कार दिखाया है।

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बर्फ इसलिए नहीं गिर रही है, क्योंकि ग्लोबल वार्मिंग बढ़ गई है। इसलिए पेड़ बचाओ, प्लास्टिक पर बैन, प्रदूषण पर रोक जैसे कई मुद्दों पर बच्चों से बात करते हुए फिल्म हल्के-फुल्के तरीके से आगे बढ़ जाती है। बच्चे केवल पिता को रोकने के लिए ही तिकड़म नहीं लगाते हैं, बल्कि पर्यावरण को बचाने के लिए भी कई तिकड़म लगाते हैं, जो देखने में मजेदार लगते हैं।

पिता कहता है कि चिड़िया खाना लाने के लिए बाहर जाती, वैसे मुझे भी जाना पड़ेगा। इस पर बच्चों का कहना कि चिड़िया हर रात वापस आती है, आप आओगे हर रात वापस? या चीनी का अपने पिता को कपड़े सूटकेस में रखने से रोकना... यह मासूमित से भरपूर दृश्य भावुक करते हैं।

कुछ चीजें खटकती भी हैं, जैसे चीनी जिस भाषा में बात करती है, वह उसके भाई के सिवाय किसी को समझ नहीं आती है। वह लिखती सही है, फिर बात ऐसे क्यों करती है, उसकी इस दिक्कत को लेकर पिता में कोई परेशानी नहीं दिखती है।

अमित सियाल ने नेगेटिव छवि को किया दूर

अभिनय में अभिनेता अमित सियाल पूरे नंबर पाने के हकदार हैं। एकल पिता होने की जिम्मेदारियों, माता-पिता के अच्छे बेटे, पेशेवर जीवन में ईमानदार, हर रूप में वह फिट लगे हैं। उन्हें देखकर यकीन कर पाना कठिन है कि वह नेगेटिव भूमिकाओं के लिए जाने जाते हैं। तीनों बच्चे आरोही साउद, समय और दिव्यांश द्विवेदी छोटा पैकेट बड़ा धमाका हैं।

सख्त मां और दादी के रोल में नयन भट्ट का काम बेहतरीन हैं। दादू के रोल में अजीत सर्वोत्तम केलकर जंचते हैं। खासकर जब वह अपने पोते-पोती को कहानियां सुनाते-सुनाते जीवन की असली बातें समझा जाते हैं, उससे घर में बुजर्गों के होने की अहमियत समझ आती है।

सुखताल की खूबसूरती को सिनेमैटोग्राफर पार्थ सयानी ने कैमरे में कैद करने में कोई कमी नहीं रखी है। बादल के आगे चल जाकर झांके, चंदा के ऊपर एक झूला बांधे..., जिंदगी है ये खेल एक प्यारे..., क्या ना उठा ले चींटी जो झुंड हो साथ इकठ्ठा... यह सभी गाने फिल्म की कहानी को न केवल दिलचस्प बनाते हैं, बल्कि बिना संवादों के केवल गीत के जरिए उसे आगे भी बढ़ाते हैं।