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Tooth Pari When Love Bites Review: असरहीन और धारहीन है ये वैम्पायर स्टोरी, रोमांच में चूकी कहानी

Tooth Pari When Love Bites Review वैम्पायर कहानियां दर्शकों को लुभाती हैं मगर इन्हें पश्चिमी परिप्रेक्ष्य में ही देखने की आदत होने के कारण भारतीयकरण ज्यादा असर नहीं छोड़ पाते। नेटफ्लिक्स की ताजा सीरीज भी ऐसी कुछ दिक्कतों से जूझती है।

By Manoj VashisthEdited By: Manoj VashisthUpdated: Thu, 20 Apr 2023 08:56 PM (IST)
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Tooth Pari When Love Bites Review Staring Shantanu Maheshwari Tanya Maniktala. Photo- Instagram
नई दिल्ली, जेएनएन। भारत मनोरंजन जगत में वैम्पायर की कहानियों को ज्यादा भुनाया नहीं गया है। एकता कपूर के धारावाहिक प्यार की यह एक कहानी ट्वाइलाइट और वैम्पायर डायरीज से प्रेरित रही हैं। हालांकि, इन कहानियों का जिस तरह से भारतीयकरण किया गया, वो बहस का विषय है। 

मगर, यह ख्याल ही अपने आप में एक्साइट करने वाला है कि इंसानी खून पर जिंदा रहने वाले पश्चिम के मिथकीय प्राणी वैम्पायर को भारतीय परिप्रेक्ष्य में कैसे दिखाया जाए?

ट्वाइलाइट और वैम्पायर डायरीज जैसे शोज में उनका पहनावा, तौर-तरीके, रस्मों-रिवाज और सदियों तक जिंदा रहने के कारण होने वाली दिक्कतें... सब पश्चिमी परिवेश और सभ्यता के हिसाब से रहा। इसीलिए सोच के स्तर तक इसका भारतीयकरण एक्साइट करता है।

ओटीटी स्पेस के प्रचार के साथ वैम्पायर डायरीज जैसी कहानियों को भारत में भी खूब दर्शक मिले तो निर्देशक प्रतिम दासगुप्ता के जहन में इंडियन वैम्पायर स्टोरी का पनपना लाजिमी है। वो इस कहानी को कोलकाता ले गये हैं। आठ एपिसोड्स में फैली यह वैम्पायर स्टोरी एक प्रयोग के तौर पर देखी जा सकती है। हालांकि, वैम्पायर कहानियों में मनोरंजन की खुराक ढूंढने वाले दर्शक के लिए टूथ परी निराश कर सकती है।

क्या है टूथ परी की कहानी

दूसरी वैम्पायर कहानियों की तरह टूथ परी भी प्रेम कहानी है। यह अपनी देसी ट्वाइलाइट है। टूथ फेयरी और वैम्पायर कथा का मिश्रण है। कहानी के केंद्र में दो मुख्य किरदार हैं- शर्मीला डेंटिस्ट रॉय और वैम्पायर वंश की रूमी। एक दिन रूमी अपना दांत फिक्स करवाने रॉय के पास आती है।

रूमी को देखकर रॉय का दिल धड़कने लगता है। दोनों प्यार करने लगते हैं। रॉय, रूमी को अपने परिवार से मिलवाने ले जाता है। रूमी परिवार को इतना पसंद आती है कि दोनों की शादी करवाने की योजनाएं बनने लगती हैं, इस बात से बेखबर कि रूमी वैम्पायर है, जिन्हें जिंदा रहने के लिए ताजा इंसानी खून चाहिए। 

पुलिस अफसर कार्तिक पाल को रूमी को खोया हुआ दांत मिलता है। अपने पिता की कहानियों पर उसका यकीन मजबूत हो जाता है कि वैम्पायर होते हैं। लूना लूका रेवती इंसानों की तंत्र-मंत्र करने वाली जमात की मुखिया है। यह जमात वैम्पायरों की दुश्मन है। अब इन दोनों की प्रेम कहानी का अंजाम क्या होगा? परिवार को पता चलेगा कि रूमी वैम्पायर है तो उनकी प्रतिक्रिया क्या होगी? रूमी अपनी भूख कैसे मिटाएगी? तमाम सवालों के जवाब आठ एपिसोड्स का खाका तैयार करते हैं।

कैसे हैं कथा, पटकथा और अभिनय

प्रतिम दासगुप्ता ने अपनी कल्पना से वैम्पायर की जो दुनिया बनायी और बसायी है, वो दिलचस्प है। भारतीय परम्पराओं और संवेदनाओं के बीच कहानी को जिस तरह आकार दिया गया है, वो प्रभावित करता है। मगर, सीरीज किरदारों के जरिए रोमांच को कायम नहीं रख पाती। आसानी से होने वाले पूर्वाभास ने कहानी के सस्पेंस का कई जगह दम निकाला है।

शांतनु ने शर्मीले और सहमे रहने वाले डेंटिस्ट के किरदार में ठीक काम किया है। हालांकि, इस किरदार की परतों को उघाड़ने की काफी सम्भावना थी। पश्चिम की वैम्पायर कहानियों में अगर किरदारों का चित्रण देखें तो रहस्य की एक परत चढ़ी रहती है, जो दर्शक को एक्साइट रखती है, मगर तान्या की अदाकारी में वो गायब है। हालांकि, कहानी की सीमा में उन्होंने अपने जिम्मेदारी ठीक से निभायी है। तिलोत्तमा शोम अपने किरदार में जंचती हैं। अन्य कलाकारों ने भी सहयोग करते नजर आते हैं। 

कथाभूमि कोलकाता की होने की वजह से भाषा बंगाली और हिंदी है। प्रतिम दासगुप्ता ने वैम्पायर की जो काल्पनिक दुनिया दिखायी है, वो टुकड़ों में असर छोड़ती है। 

कलाकार- शांतनु माहेश्वरी, तान्या मानिकतला, रेवती, सिकंदर खेर, तिलोत्तमा शोम आदि।

निर्देशक- प्रतिम दासगुप्ता

प्लेटफॉर्म- नेटफ्लिक्स

अवधि- 40-45 मिनट के आठ एपिसोड्स।

रेटिंग- **1/2