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Ulajh Review: सवालों में उलझकर रह गई जाह्नवी कपूर की फिल्म, अंत तक नहीं मिलते जवाब

जाह्नवी कपूर गुलशन देवैया और रोशन मैथ्यू अभिनीत उलझ एक जासूसी फिल्म है जिसके केंद्र में एक डिप्लोमेट है जो एक साजिश में फंस जाती है। जाह्नवी कपूर ने डिप्लोमेट की भूमिका निभाई है। फिल्म का निर्देशन सुधांशु सरिया ने किया है। फिल्म में कुछ घिसे-पिटे फॉर्मूलों पर कहानी को आगे खींचा गया है। अहम किरदार ठीक से गढ़े नहीं गये हैं।

By Jagran News Edited By: Manoj Vashisth Updated: Fri, 02 Aug 2024 01:38 PM (IST)
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उलझ थिएटर्स में रिलीज हो गई है। फोटो- इंस्टाग्राम
स्मिता श्रीवास्तव, मुंबई। पाकिस्‍तानी राजनेता की भारत यात्रा के दौरान हत्‍या की साजिश रचना। उसमें पाकिस्‍तानी एजेंसी आइएसआइ के साथ कुछ भारतीय नेताओं के गठजोड़ संबंध जैसे घिसे-पिटे फार्मूले पर टाइगर 3, योद्धा जैसी फिल्‍में आ चुकी हैं।

भारतीय अधिकारियों के साहसिक मिशन की कहानी दिखाने के लिए लेखकों को अब कुछ दूसरे पहलुओं पर ध्‍यान देना चाहिए, जो फिल्‍म को रोमांचक बनाने के साथ देश की छवि को भी चमका सकें।

उलझ फिल्‍म भले ही एक युवा डिप्‍टी हाई कमिश्नर को केंद्र में रखकर बनी है, लेकिन कहानी का बैकड्रॉप भारत और पाकिस्‍तान ही है। भारत और पाकिस्‍तान के जटिल संबंध जगजाहिर हैं।

ऐसे में फिल्‍म के एक दृश्‍य में, जब भारतीय विदेश मंत्री कहता है कि तुम्‍हें पाकिस्‍तान की नीयत पर कोई शक लगता है तो लेखक और निर्देशक की इस दृश्‍य संरचना पर बेहद अफसोस होता है। लगता है, जैसे उन्‍हें दोनों देशों के संबंधों का एहसास ही नहीं है।

क्या है 'उलझ' की कहानी?

कहानी यूं है कि इस्‍लामाबाद के प्रधानमंत्री शहजाद आलम (रुशाद राणा) आतंकी यासीन मिर्जा को भारत वापस भेजने का एलान करते हैं, ताकि दोनों देशों के बीच दोस्‍ती की पहल हो सके। भारत उन्‍हें स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर आमंत्रित करता है।

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हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में पढ़ी आइएफएस (भारतीय विदेश सेवा) सुहाना भाटिया (जाह्नवी कपूर) के दादा देश के पहले संयुक्त राष्‍ट्र के प्रतिनिधि थे। वहीं, पिता धनराज भाटिया (आदिल हुसैन) साउथ कोरिया, रूस और जर्मनी जैसे देशो में भारत के राजदूत रह चुके हैं।

उन्‍हें संयुक्त राष्‍ट्र का स्‍थायी प्रतिनिधि नियुक्त किया जाता है। काठमांडू में सुहाना की बुद्धिमत्‍ता की झलक दी जाती है। आइएफएस सुहाना को ग्रेट ब्रिटेन में दूसरे सबसे उच्‍च डिप्‍लोमेटिक पद पर तैनात किया जाता है। वह ब्रिटेन में भारतीय उच्चायोग की सबसे युवा डिप्‍टी हाई कमिश्‍नर बनती है।

धनराज इतनी कम उम्र में बेटी को इतने बड़ा पद मिलना असामान्‍य मानते हैं। सुहाना की तैनाती से उसका सहयोगी जैकब (मियांग चैंग) और सेबिन जोसेफ कुट्टी (रोशन मैथ्‍यू) खुश नहीं हैं। सुहाना की मुलाकात नकुल (गुलशन देवैया) से होती है। वह बिना जान पहचान सोचे समझे नकुल को दिल दे बैठती है।

लगता है, जैसे कॉलेज की लड़की हो। तभी कड़वे सच का सामना होता है। नकुल असल में पाकिस्तानी आइएसआइ एजेंट मुहम्‍मद हुमायूं अख्‍तर निकलता है। वह सुहाना के साथ अपना अंतरंग वीडियो दिखाकर उसे ब्‍लैकमेल करता है। उससे गोपनीय सूचनाएं निकलवाता है।

लोकलाज के भय से सुहाना उसकी मांगों को जैसे-तैसे पूरा करती है। सूचनाएं लीक होने पर भारतीय खुफिया एजेंसी रॉ उसकी जांच में जुटती है।

जांच का जिम्‍मा सुहाना को दिया जाता है। जैकब को शक होता है। वह पूछताछ करने उसके घर आता है, तभी नकुल की गोली का शिकार बनता है। सुहाना दिल्‍ली में नकुल के मिशन को रोक पाती है या नहीं, फिल्‍म इस संबंध में है।

कमजोर कहानी, बचकाना घटनाक्रम

परवेज शेख और सुधांशु सरिया द्वारा लिखी कहानी बेहद कमजोर है। पाकिस्तान पक्ष को जितना प्रगतिशील और उदार बताने की कोशिश हुई है, वह हजम नहीं होता। दोनों देशों के जटिल रिश्‍तों का अध्‍ययन बारीकी से करने की जरूरत थी।

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सुहाना का पात्र और उसके आसपास का परिवेश विश्‍वसनीय नहीं लगता। पद और पारिवारिक विरासत के अनुरूप उसकी ताकत और चतुरता नहीं दिखती। दिल्‍ली में जिस तरह सुहाना नंगे पांव भागती है। लगता ही नहीं कि उसके पद का कोई रसूख है।

जैकब की हत्‍या को ब्‍लास्‍ट बता दिया जाता है। भारत सरकार की तरफ से मामले को लेकर जांच की मांग नहीं होती। यह पहलू बहुत खटकते हैं। सुहाना जिस आजादी से नकुल के साथ घूमती फिरती और अंतरंग संबंध बनाती है, उससे लगता ही नहीं कि वह इतने महत्वपूर्ण पद पर तैनात है, जहां हर पल चौकस रहना होता है।

इतने सवाल छोड़ गई उलझ

रॉ का चित्रण भी बेहद कमजोर है। रॉ प्रमुख अपने कर्मचारियों के समक्ष कहता है कि यह क्‍या हो रहा है, उसे देखकर लगता है कि पिछली सदी के छठें दशक की फिल्‍म का दृश्‍य हो। इसी तरह सुहाना के पूर्व ब्‍वॉयफ्रेंड का सामान उसके कमरे में पड़ा है। उसका ब्रेकअप हो चुका है। पर वह मां को क्‍यों नहीं बताती?

सबसे अहम लीक सूचनाओं से भारत पर क्‍या असर पड़ा? ड्राइवर सलीम (राजेश तैलंग) की सच्‍चाई क्‍या थी, जैसे सवालों के जवाब ढूंढने पर भी नहीं मिलेंगे।

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फिल्‍मों का भार नि:संदेह जाह्नवी कपूर के कंधों पर है। फिल्‍म देखते हुए लगता है कि कहानी उन्‍हें ध्‍यान में रखते हुए लिखी गई है। उनके आसपास मंझे कलाकार हैं। हालांकि, उनके बीच वह कमजोर नजर आती हैं।

आइएफएस जैसी चतुराई और तीव्रता उनके पात्र में नजर नहीं आती। इमोशनल सीन में वह कमजोर दिखती हैं। गुलशन देवैया जब भी स्‍क्रीन पर आते हैं प्रभाव छोड़ जाते हैं। मियांग चैंग का पात्र अधूरा है। रौशन मैथ्‍यू मंझे कलाकार हैं। उनके पात्र को भी समुचित तरीके से गढ़ा नहीं गया है। बाकी फिल्‍म का बैकग्राउंड संगीत बहुत जोश या भय पैदा नहीं कर पाता।