Vijay 69 Review: 69 साल है खुद की उम्र, फिल्म के लिए सीखी स्वीमिंग, भीतर से झकझोर देगी Anupam Kher की ये फिल्म
अनुपम खेर की नई फिल्म विजय 69 ओटीटी प्लेटफॉर्म पर रिलीज हो चुकी है। इस फिल्म में अनुपम खेर एक चिड़चिड़े बुड्ढे का किरदार निभाया है जिसके सपने बहुत बड़े बड़े हैं। ये फिल्म सपनों को जीने और उम्र से अधिक जज्बे की कहानी है। आप इसे नेटफ्लिक्स पर देख सकते हैं। फिल्म में अनुपम खेर के अलावा चंकी पांडे भी मुख्य किरदार में हैं।
एंटरटेनमेंट डेस्क,मुंबई। विजय मैथ्यू (अनुपम खेर) को मिसेज बक्शी (गुड्डी मारुति) पानी में कूदते हुए देखती हैं। सबको लगता है कि विजय इस दुनिया में नहीं रहा। चर्च में विजय का 30 साल पुराना दोस्त फली (चंकी पांडे) उसे याद करते हुए बताता है कि कैसे विजय ने तीन बार गरबा नाइट्स डांस में ट्राफी जीती थी। हालांकि विजय मरा नहीं होता है। वह उस रात अपने किसी दोस्त के घर जाकर रुक जाता है। मिसेज बक्शी को कोई गलतफहमी हुई थी।
विजय जब वह पेज देखता है, जिसमें फली ने उसकी उपलब्धियों के बारे में लिखा है,तो वह गुस्से में कहता है कि उसने नेशनल स्विमिंग चैंपियनशिप में तैराकी में उसके कास्य पदक जीतने की बात क्यों नहीं बताई? फिर वह एक पेज पर अपनी उपलब्धियां लिखने बैठता है, लेकिन उसे अपनी कोई और उपलब्धि नहीं मिलती। विजय के मोहल्ले से आदित्य (मिहिर अहूजा) ट्रायथलान में भाग लेने वाला है, जिसमें डेढ़ किलोमीटर तैराकी, 40 किलोमीटर साइकलिंग और 10 किलोमीटर की दौड़ लगानी होती है। विजय भी उसमें हिस्सा लेता है, ताकि दुनिया से जाने के बाद लोग उसकी इस उपलब्धि को याद रखें।
फिल्म का निर्देशन चकाचक
जहां कमर्शियल फिल्में बिना अच्छी कहानी के बड़े बॉक्स ऑफिस कलेक्शन का दावा करते नहीं थक रही हैं,वहीं यह फिल्म साबित करती है कि अच्छी फिल्म बनाने के लिए बड़ा बजट नहीं, बल्कि अच्छी कहानी और साफ नीयत चाहिए। फिल्म की कहानी, पटकथा, संवाद लिखने वाले निर्देशक अक्षय रॉय न ही कहानी में कहीं से चूकते हैं, न ही निर्देशन में। बुढ़ापे में चीयरलीडर बनकर साथ देने वाले हमसफर की कमी, सच्चे दोस्तों की जरुरत, खुद की पहचान को दोबारा खोजने का संघर्ष ऐसी कई बातों को छूते हुए फिल्म आगे बढ़ती है।यह भी पढ़ें: Vijay 69 Trailer: बुढ़ापे में अपने सपनों को जीने निकले Anupam Kher, ट्रायथलॉन जीतकर बनाना चाहते हैं रिकॉर्ड
फिल्म में दिल छू लेने वाले डायलॉग्स
विजय का ताबूत के भीतर सोकर सोचना कि जिंदगी में क्या किया झकझोरता है। मीडिया को कार्टून की तरह पेश करने वाले सीन बताते हैं कि फिल्म इंडस्ट्री के लेखकों और निर्देशकों को इस क्षेत्र पर काफी रिसर्च करने की जरूरत है।फिल्म के संवाद 69 का हो गया तो क्या सपने देखना बंद कर दूं? 69 का हूं तो क्या सुबह उठकर अखबार पढ़ूं? 69 का हूं तो क्या दवाइयां खाकर सो जाऊं और एक दिन मर जाऊं? जैसे संवाद याद दिलाते हैं कि उम्र को महज एक आंकड़ा ही समझें। अक्षय ने फिल्म में विजय के पात्र को किसी सुपरहीरो की तरह नहीं दिखाया है। उम्र संबंधी समस्याओं के साथ उन्होंने इस पात्र को गढ़ा है।