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Yudhra Review: एक्शन दमदार कहानी बेकार, 'युध्रा' में Siddhanth Chaturvedi का चमकता किरदार

Yudhra Movie Review अभिनेता सिद्धांत चतुर्वेदी (Siddhanth Chaturvedi) की एक्शन थ्रिलर फिल्म युध्रा सिनेमाघरों में रिलीज हो गई है। लंबे वक्त से फैंस इसका इंतजार कर रहे थे। एक्टर राघव जुयाल (Raghav Juyal) ने एक बार फिर से खलनायक की भूमिका में दमखम दिखाया है। लेकिन कुछ कारणों से युध्रा फीकी लगती है। आइए इस लेख में मूवी का फुल रिव्यू पढ़ते हैं।

By Smita Srivastava Edited By: Ashish Rajendra Updated: Fri, 20 Sep 2024 02:04 PM (IST)
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सिद्धांत चतुर्वेदी युध्रा मूवी रिव्यू (Photo Credit-Jagran)

स्मिता श्रीवास्तव, मुंबई डेस्क। श्रीदेवी अभिनीत फिल्‍म मॉम का निर्देशन कर चुके रवि ने अब विशुद्ध एक्‍शन फिल्‍म युध्रा (Yudhra) बनाई है। एक्‍शन फिल्‍मों में नायक के अतीत या वर्तमान की कोई घटना उसे खलनायक को टक्‍कर देने के लिए गढ़ी जाती है।

इस ड्रामे के बीच ढेर सारे एक्‍शन के साथ रोमांस, नाच गाना, धोखेबाजी, पुलिस में व्‍याप्‍त भ्रष्‍टाचार और प्रतिशोध जैसे पहलुओं को शामिल किया जाता है। श्रीधर राघवन द्वारा लिखी गई युध्रा की कहानी में यह सारे मसाले हैं। हालांकि यह मसाले कहीं कम कहीं ज्‍यादा होने की वजह से बेमजा हो गए हैं।

क्या है युध्रा की कहानी

कहानी का आरंभ समुद्र के जहाज पर युध्रा (Siddhant Chaturvedi) को गोली लगने से होता है। वहां से उसके अतीत की परतें खुलना आरंभ होती है। नारकोटिक्स ब्‍यूरो में कार्यरत उसके ईमानदार पिता और मां एक दुर्घटना में मारे जाते हैं। उसके पिता के करीबी दोस्‍त और सहकर्मी कार्तिक राठौड़ (गजराज राव) उसकी परवरिश करते हैं। पिता के करीबी दोस्‍त रहमान सिद्दीकी (राम कपूर) युध्रा को बेटे समान मानते हैं। रहमान की बेटी निखत (Malvika Mohanan) और युध्रा बचपन से दोस्‍त होते हैं।

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युध्रा बचपन से काफी गुस्‍सैल स्‍वभाव का है। गुस्‍सा आने पर वह अपना आपा खो बैठता है। युध्रा को खतरों से खेलने की आदत को देखते हुए उसके गुस्‍से को स‍ही दिशा देने के लिए रहमान उसे पुणे में नेशनल कैडेट ट्रेनी अकेडमी (एनसीटीए) में भर्ती करा देते हैं। पुणे में ही निखत मेडिकल की पढ़ाई कर रही होती है। एक घटना की वजह से युध्रा का कोर्ट मार्शल कर दिया जाता है। युध्रा को रहमान बताता है कि उसके माता-पिता दुघर्टना में नहीं बल्कि साजिश के तहत मारे गए थे।

तब भी युध्रा उनके हत्‍यारों के बारे में कुछ नहीं पूछता। खैर, रहमान उसे अपने पिता के ड्रग माफिया के सफाए के अधूरे मिशन को पूरा करने के लिए जेल में देश का सबसे बड़ा नेटवर्क चलाने वाले ड्रग माफिया फिरोज (राज अर्जुन) के करीब जाने का रास्‍ता बताता हैं। युध्रा अपने मिशन में कामयाब रहता है। जेल से निकलने के बाद फिरोज के दुश्‍मन को उसके रास्‍ते से हटाकर युध्रा उसका विश्‍वास जीत लेता है। फिरोज के बेटे शफीक (Raghav Juyal) को युध्रा पसंद नहीं है।

युध्रा बहुत बड़े ड्रग के खेप की जानकारी रहमान को देता है। उसके बाद रहमान से उसका संपर्क टूट जाता है। वहां से कहानी वर्तमान में आती है। युध्रा कैसे जीवित बचता है? रहमान के गायब होने की क्‍या वजह है? फिरोज का युध्रा के अतीत से क्‍या संबंध है? युध्रा के माता-पिता के असली कातिल कौन हैं? कार्तिक का सच क्‍या है? ऐसे कई सवालों के जवाब फिल्‍म में मिलेंगे।

डायरेक्शन रहा ढीला

रवि द्वारा निर्देशित युध्रा की कहानी में बिखराव बहुत है। कहानी शुरुआत से बहुत तेजी से आगे जरूर बढ़ती है, लेकिन आप पात्रों से जुड़ाव महसूस नहीं करते। युध्रा क्‍यों आपने माता-पिता के बारे में एक बार भी जानने की कोशिश नहीं करता? ड्रग माफिया सिकंदर को युध्रा द्वारा मारने का प्रसंग बचकाना है। फिरोज को जितना खूंखार बताया गया है उतना वह लगता नहीं है। फिरोज और युध्रा के बीच टकराव के दृश्‍य प्रभावशाली नहीं बन पाए हैं कि आप एकटक उसे देखते रहें।

गजराज का पात्र अंत में चौंकाता नहीं बल्कि कई सवालों के जवाब अनुत्‍तरित छोड़ जाता है। शफीक क्‍यों युध्रा को नापसंद करता है यह स्‍पष्‍ट नहीं है। एक दृश्‍य में हैकर कहता है कि पासवर्ड को खोलना नामुमकिन है यह सुनकर हंसी आती है। युध्रा के कोर्ट मार्शल के पीछे गढ़ा प्रसंग बेहद कमजोर है। निखत और युध्रा की प्रेम कहानी भी लुभावनी नहीं बन पाई है।

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चूंकि यह कमर्शियल मसाला फिल्‍म है तो कहानी में कोई लाजिक खोजने की कोशिश कतई नहीं करें। गाने कहानी को विस्‍तार देते हैं लेकिन यहां पर जबरन ठूंसे लगते हैं। फिल्‍म के संवाद भी प्रभावी नहीं बन पाए हैं। पर हां फिल्‍म का एक्‍शन शानदार है।

कैसी रही स्टार कास्ट की एक्टिंग

पहली बार एक्‍शन अवतार में आए सिद्धांत चतुर्वेदी ने युध्रा के गुस्‍सैल स्‍वभाव को बखूबी जीते हैं। एक्‍शन करते हुए वह जंचते हैं। दक्षिण भारतीय अभिनेत्री मालविका मोहनन की यह पहली विशुद्ध कमर्शियल हिंदी फिल्‍म है। हालांकि इससे पहले वह माजिद मजीदी की फिल्‍म बियांड द क्लाउड में अपने अभिनय के लिए सराहना बटोर चुकी हैं।

यहां पर रोमांस, आपसी तकरार, इश्‍क लड़ाने के दृश्‍यों के साथ उनके हिस्‍से में थोड़ा सा एक्‍शन आया है उसमें वह प्रभावित करती हैं। राम कपूर अपने किरदार के लिए सटीक कास्टिंग हैं। फिरोज की भूमिका में राज अर्जुन के किरदार को खौफनाक बनाने की जरूरत थी। फिल्‍म किल के बाद फिर नकारात्‍मक किरदार में आए राघव इस भूमिका में अपना प्रभाव छोड़ते हैं। कार्तिक की भूमिका में गजराज सामान्‍य हैं। उनके किरदार को बेहतर तरीके से गढ़ने की आवश्यकता थी। शिल्‍पा शुक्ला की प्रतिभा का लेखक निर्देशक समुचित उपयोग नहीं कर पाए हैं।

फिल्‍म की सिनेमेटोग्राफी शानदार है। शुरुआत में कहानी मुंबई, पुणे जैसे शहरों में जाने के बाद ड्रग का एंगल आने के बाद शंघाई, पुर्तगाल जाती है। उस दौरान कई खूबसूरत लोकेशन देखने को मिलती है। फिल्‍म का गीत संगीत सिनेमाघर से निकलने के बाद याद नहीं रहता।