Zara Hatke Zara Bachke Review: फैमिली एंटरटेनर है विक्की कौशल और सारा अली खान की फिल्म, मगर हटकर नहीं!
Zara Hatke Zara Bachke Review विक्की कौशल और सारा अली खान इस फिल्म में पहली बार साथ आये हैं। विक्की का अगर डीजे मोहब्बत में कैमियो छोड़ दें तो दोनों ही कलाकारों ने तीन साल बाद पर्दे पर वापसी की है। पढ़िए कैसी रही इनकी वापसी?
By Manoj VashisthEdited By: Manoj VashisthUpdated: Fri, 02 Jun 2023 12:12 PM (IST)
स्मिता श्रीवास्तव, मुंबई। छोटे शहर की कहानियों के जरिए निर्देशक और सह-लेखक लक्ष्मण उतेकर युवाओं की इच्छाओं, आकांक्षाओं, महत्वाकांक्षाओं और उनकी सोच को दर्शाते आए हैं। फिल्म लुकाछुपी और मिमी के बाद वह एक बार फिर रोमांटिक कामेडी फिल्म जरा हटके जरा बचके में छोटे शहर की कहानी लेकर आए हैं। सिनेमाघरों में रिलीज हुई इस फिल्म का मुद्दा घर से अलग होकर अपना आशियाना बनाने को लेकर है।
क्या है 'जरा हटके जरा बचके' की कहानी?
कहानी इंदौर में सेट है। योग प्रशिक्षक कपिल दुबे (विक्की कौशल) और सौम्या चावला दुबे (सारा अली खान) ने प्रेम विवाह किया है। सास-ससुर के साथ सौम्या के अच्छे संबंध पर हैं। कपिल के घर पर मामा (नीरज सूद), मामी (कनुप्रिया पंडित) और उनका बेटा ठहरे हुए हैं।
कपिल और सौम्या ने उन्हें अपना कमरा दे रखा है। मुसीबत की जड़ मामा-मामी ही हैं, जो वापस जाने का नाम ही नहीं ले रहे। छोटा घर और प्राइवेसी न होने की वजह से सौम्या अपना घर लेने के लिए कपिल पर दबाव बनाती है। अव्वल दर्जे का कंजूस कपिल उसकी बात मान लेता है।रियल एस्टेट एजेंट से मिलने के बाद उन्हें समझ आता है कि घर खरीदना महंगा सौदा है। उसी दौरान सौम्या को सरकार की जन आवास योजना का पता चलता है, जिसमें कम मूल्य पर गरीबों और जरूरतमंदों को पक्का घर दिया जाता है। पर उसके लिए कुछ शर्तें होती है।
मकान की खातिर उन्हें पूरा करने के लिए सौम्या कागजों पर दिखावे के लिए कपिल से तलाक लेती है। रिश्वत देने के लिए कपिल और सौम्या अपने गहने, जेवर बेचकर और उधार लेकर चार लाख रुपये जुटाते हैं। दोनों को उस समय करारा झटका लगता है, जब कुछ गड़बड़ियों की वजह से सूची जारी नहीं होती। इससे सौम्या और कपिल के संबंध खराब होते हैं। तनातनी के बीच दोनों को घर और रिश्तों की अहमियत का पता चलता है।
यह फिल्म अनिल धवन और जया भादुड़ी अभिनीत पिया का घर की याद दिलाती है। जिसमें मुंबई की चॉल में पूरा परिवार रहता है। नवविवाहित जोड़े को किचन में रहना पड़ता है। उन्हें अपनी प्राइवेसी नहीं मिलती। मैत्रेय बाजपेयी, रमीज इल्हाम खान, और लक्ष्मण उतेकर द्वारा लिखी गई कहानी में समकालीन माहौल के साथ इसी पहलू को उठाया गया है।
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कैसा है फिल्म का स्क्रीनप्ले?
घर की अहमियत को समझाने को लेकर क्लाइमैक्स में लेखक और निर्देशक ने पर्याप्त दृश्य रखे हैं। हालांकि, परिवार से अलगाव को लेकर वजह बहुत ठोस नहीं बन पाई है। सौम्या की अपनी सास-ससुर के साथ कोई अनबन नहीं है। सिर्फ मामा के घर पर रहने की वजह से उसे अलग घर चाहिए। घर लेने को लेकर कोचिंग में पढ़ाने वाली सौम्या का नजरिया भी कन्फ्यूजिंग है। पहले वह सोसाइटी में घर चाहती है, ताकि भविष्य में बच्चों को अच्छा माहौल मिले। फिर वह जन आवास में लेने को तैयार हो जाती है, जो आर्थिक रुप से पिछड़े गरीब लोगों के लिए है।कपिल की तरफ पड़ोस की लड़की का झुकाव भी बहुत लुभाता नहीं है। परिवार को दिखावे के लिए कपिल और सौम्या के आपसी लड़ाई के दृश्य बनावटी लगते हैं। हालांकि, फिल्म बीच-बीच में टुकड़ों में हंसाती है।
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